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संजीव कुमार की कंजूसी से सभी वाकिफ थे, लेकिन उनके लाखों रुपये पचा गए इंडस्ट्री के लोग

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संजीव कुमार (9 July 1938 – 6 Nov 1985) ने 25 साल सिनेमाई दुनिया को दिए थे. 25 साल का उनका ये सफ़र बॉलीवुड के किसी सुपरहिट मसाला फ़िल्म से कम नहीं था. इसमें दर्शकों को लगातार चौंकाते रहने वाला अभिनय का रेंज रहा हो, बॉक्स ऑफिस में धमाल मचाती फ़िल्में रही हों या फिर खूबसूरत माशूकाओं का साथ रहा हो, संजीव कुमार का जलवा किसी सुपरस्टार से कम नहीं था.

 

ये भी कहा जा सकता है कि जीवन के सफ़र में भी बतौर कलाकार संजीव कुमार हमेशा इम्तिहान देते ही नज़र आए. बेहद कम उम्र में पिता की मौत, उसके बाद परिवार चलाने के लिए मां का संघर्ष, थिएटर से लगाव, परिवार की ज़िम्मेदारी और फ़िल्मों में काम पाने का संघर्ष, यानी संजीव कुमार हमेशा संघर्ष करते रहे. इन सबके बावजूद उनके चेहरे की स्माइल हमेशा बनी रही और उनके अभिनय की ख़ास शैली में इस मोहक मुस्कान का अहम योगदान रहा.

 

उन्होंने बी ग्रेड की फ़िल्मों से शुरुआत करते हुए महज़ अभिनय के बलबूते वह स्टारडम हासिल कर लिया था, जिसके चलते मल्टीस्टारर फ़िल्मों में भी वो सबसे अधिक मेहनताना वसूलने लगे थे.

 

संजीव कुमार को ये कामयाबी किसी झटके से नहीं मिली थी. उन्होंने इसे क़दम दर क़दम चलकर हासिल किया था. बिलकुल अपने दम पर. इसमें उनके साथ बचपन से ही अभिनय की तालीम का बड़ा योगदान रहा.

 

इस तालीम को हासिल करने के लिए संजीव कुमार की मां ने अपने जेवर गिरवी रखे थे तब जाकर शशधर मुखर्जी के एक्टिंग स्कूल की फीस जमा हो पायी थी. उनकी मां चाहती थी कि बेटा पढ़ लिख कर डॉक्टर या वकील बने लेकिन संजीव कुमार के मन को अभिनय में रमा देखकर उन्होंने ये फ़ैसला लिया था.

1960 से 1985 के बीच संजीव कुमार ने 153 फिल्मों में काम किया. इसमें ‘दस्तक’ और ‘कोशिश’ के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. बी-ग्रेड की फ़िल्मों में काम करके यहां तक पहुंचना आसां नहीं होता लेकिन संजीव कुमार ने इस मुकाम को हासिल कर दिखाया.

संजीव कुमार को लोग अक्सर कंजूस कहा करते थे, लोग अक्सर कहते थे कि इतनी कामयाबी के बाद भी वो एक घर तक ना खरिद पाए, लोग अक्सर उनकी कंजूसी पर चर्चा करते थे ।

 

लेकिन संजीव कुमार की कंजूसी से उलट ‘हनीफ़ जावेरी’ ने अपनी प्रसिद्ध किताब ‘ An Actor’s Actor : An Authorized Biography of Sanjeev Kumar’ से कई नामचीन प्रोडयूसरों और एक्टरों ने बिना हिसाब-किताब के संजीव कुमार से पैसे लेने की बात स्वीकार की है. हनीफ़ ज़ावेरी ने लिखा है कि संजीव कुमार के निधन के बाद बोनी कपूर उनके परिवार वालों को (2 लाख) पैसा लौटाने गए थे, जबकि परिवार वालों को पता भी नहीं था कि बोनी ने संजीव कुमार से पैसे लिए हुए थे.

संजीव कुमार के सचिव जमनादास ने तब डायरी खोलकर परिवार वालों को बताया कि संजीव कुमार से उनके दोस्त अभिनेता और निर्माता निर्देशकों ने उधार के 94,36,000 रुपये लिए हुए थे.

 

ये रकम आज भी कम नहीं है लेकिन 1985 में ये रकम कितनी बड़ी रही होगी इसका अंदाज़ा आप लगा सकते हैं. तब बैंकों में पांच साल में पैसा दोगुना हो जाता था, हालांकि मौजूदा समय में आठ साल से भी ज़्यादा का वक़्त लगता है और इस हिसाब से भी आप जोड़ें तो आज की तारीख में ये पैसा 90 से 100 करोड़ के बीच होता.

संजीव कुमार के परिवार वालों ने इन लोगों से पैसे वापस हासिल करने की कोशिश की तो किसी ने पैसे नहीं लौटाए. परिवार वाले सुनील दत्त के पास गए कि उनकी कोशिशों से पैसा वापस मिल जाए.

 

सुनील दत्त की इंडस्ट्री में काफ़ी साख थी लेकिन उन्हें इंडस्ट्री के तौर तरीके बेहतर ढंग से मालूम थे, तो उन्होंने परिवार वालों से यही कहा कि मैं पूरी कोशिश तो करूंगा लेकिन पैसा वापस आने की उम्मीद कम ही है. संजीव कुमार के परिवार वालों के पास लेनदारों की वो सूची आज भी मौजूद है. बोनी कपूर को छोड़कर और सभी लोग उनका सारा पैसा डकार गए।

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