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किशनलाल व्यक्ति नही एक ‘मानसिकता’ है

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सोशल मीडिया x पर सनातनी हिन्दू राकेश अपने x हैंडल पर लिखते है,  चुनाव का दिन था, किशनलाल तय नही कर पा रहा था कि किसे वोट दे। उसे दे जिसे पिछली बार मुफ्त बिजली, पानी के लिए दिया था। या देश, सुरक्षा के लिए दूसरे को दे।

किशनलाल कश्मकश में डूबा था। एक तरफ उसे वर्तमान सरकार में मुफ़्त बिजली थी… (अब उसे कौन समझाए मुफ्त कुछ नही होता, बस इधर का पैसा उधर। जैसे जादू कुछ नही होता बस हाथ की सफाई हैं।)

तो वही दूसरी तरफ पानी भी फ्री। (अब उसे कौन समझाए फ्री में पानी भी गन्दा आ रहा हैं। फ्री का माल फ्री जैसा ही मिलेगा।)

और तो और बस किराया फ्री।

इसी कश्मकश में किशनलाल पोलिंग बूथ तक आ पहुंचा। अंत मे उसने फैसला लिया कि, वो मुफ़्तख़ोरी को ही वोट देगा। उसने बटन मुफ्तखोरों पर दबा दिया।

चुनाव परिणाम आ चुका था। किशनलाल ने जिसे वोट दिया, वही पार्टी जीत चुकी थी। किशनलाल खुश था, की जिसे वोट दिया वही जीता। अब मेरा विधायक है। मेरी सरकार है। मेरा वोट बेकार नही गया।

जीता हुआ विधायक जीत की खुशी में ढोल नगाड़ों के साथ विजयी जुलूस निकाल रहा था। जुलूस में जहां देखो वहां तक सिर्फ टोपियां ही नजर आ रही थी। बीच मे गगनचुंबी नारे की गूँज ‘ राष्ट्रवाद मुर्दाबाद’, ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’, ‘जिन्ना वाली आजादी’ साफ सुनाई दे रही थी।

विजयी विधायक का जुलूस किशनलाल के सामने से गुजरा। वोट दिए विधायक की जीत की खुशी में कब किशनलाल के पांव खुद ब खुद जुलूस की और मुड़ गए, उसे पता ही न चला। ढोल और नगाड़ो की थाप में उसके पाँव कब थिरकने लगे उसे भान ही न रहा।

किशनलाल जीत की खुशी में इतना मगन हो गया, की उसे ‘राष्ट्रवाद मुर्दाबाद’ ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’, ‘जिन्ना वाली आजादी’ जैसे नारे भी सुनाई नही दिए।

मस्ती में झूमता हुआ, वोट की खुशी में थिरकता हुआ किशनलाल बस देखते ही बनता था। तभी भीड़ में एक शख्स तेजी से दौड़ता हुआ किशनलाल के पास आया। किशन भाई गाँव से फोन आया है, इमरजेंसी है।

किशनलाल ने जैसे ही फोन कान में लगाया, उधर की आवाज सुनकर उसके हाथों से फोन छूट गया। किशनलाल धम्म से जमीन पर गिर पड़ा। पास वालो ने पानी पिलाया, तब किशनलाल रोते हुए, बोला, उसके जवान बेटे को कल रात कुछ ‘डरे हुए लोगो’ ने गला रेतकर मार डाला। वे सब उसी पार्टी के कार्यकर्ता थे, जिसे किशनलाल वोट डालकर आया था।

किशनलाल सम्भलता उसके पहले ही फोन की घण्टी फिर घन घनाकार बज उठी। गांव से फोन था। किशनलाल की मुँहबोली विधवा बहन के साथ दूसरे गांव में ‘कुछ डरे हुए’ लोगो ने जबरदस्ती की। लाज के डर से उसने आत्महत्या कर ली। उसका भी पार्थिव शरीर गाँव पहुंच रहा है।

किशनलाल तुरन्त बस पकड़कर गांव पहुंचा। जवान बेटे की लाश देखकर फफक फफकर रोने लगा। उसने तय किया की वो अपने बेटे और बहन के हत्यारों को सजा दिलाकर रहेगा।

वो तुरन्त दौड़ता हुआ, विधायक जी के घर पहुंचा। विधायक को सारी बात बताई और कहा:- विधायक जी मेरे बेटे और बहन के हत्यारे आपकी पार्टी के कार्यकर्ता है। उन पर कड़ी करवाई कीजिए।

विधायक ने मुस्कुराते हुए कहा:

  • देख किशनलाल तूने मुझे बिजली फ्री के लिए वोट दिया था। चल तेरा एक साल तक बिल माफ।
  • दूसरा पानी फ्री तो चल 6 माह तक बिल्कुल फ्री।
  • तीसरा बस फ्री के लिए दिया था, चल 3 महीने तक और फ्री।
  • ले तूने मुझे जिस मुफ़्तख़ोरी के लिए वोट दिया था। उससे दुगुना फ्री दे दिया।

किशनलाल गुस्से में चिल्लाया नही मुझे नही चाहिए ये सब मुझे मेरे पुत्र और बहन के कातिलों को सजा चाहिए। मेने आपको वोट देकर जिताया है।

किशन की बात सुनकर विधायक जोर से हँसा:- हाहाहा… तूने जिताया? तेरे जैसे किशनलाल सिर्फ मेरी जीत का अंतर बढ़वाते है, जितवाते नही। और तेरा क्या भरोसा तू तो देश, धर्म, अपनी, परिवार की सुरक्षा का नही हुआ। जरा सी मुफ़्तख़ोरी में वोट बेच दिया। कल को तू मेरे साथ भी ऐसा ही करेगा।

लेकिन मेरे वोटर 70 सालो से मेरे साथ है। मे तेरे जैसे मुफ्तखोरों के लिए अपने कट्टर वोटर पर कोई करवाई नही करूंगा। तुम जा सकते हो।

किशनलाल की आँखों मे आँसू झर झर बहने लगे। एक एक पाँव उठाना जैसे पहाड़ सा भारी लग रहा था। वो लगातार सोच रहा था। गर उसने भगवा प्रत्याशी को वोट दिया होता, तो डरे हुए लोगो की औकात नही थी, की मेरे बेटे और बहन को हाथ लगा सके। मुझसे बड़ी गलती हो गई। आज भगवा विधायक होता तो जरूर सुनवाई होती।

उधर बेटे बहन की चिता साथ जल रही थी। किशनलाल ने जेब से बिजली, पानी फ्री वायदे (जो हमेशा उसके जेब मे रहता) निकाला और चिता की अग्नि में फेंक दिया।

वो समझ चुका था, की वोट छोटी छोटी फ्री, मुफ़्तख़ोरी देखकर नही बल्कि जान, धर्म और राष्ट्र देखकर दिया जाता है।
दोस्तो ये किशनलाल काल्पनिक नही हकीकत हैं। अतः देश, धर्म, सुरक्षा देखकर वोट कीजिए। किशनलाल मत बनिए। राष्ट्रवाद को वोट दीजिए।

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