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भारतीय कुश्ती के सबसे महान “गामा पहलवान”

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गामा पहलवान ने बेंजामिन रोलर के साथ कुश्ती लड़ते हुए उन्हें 15 मिनट में 13 बार फेंका था। पश्चिमी देशों के अपने दौरे के दौरान, गामा ने दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पहलवानों को हराया। जैसे कि- फ्रांस के मॉरिस देरिज़, संयुक्त राज्य अमेरिका के डॉक” बेंजामिन रोलर, स्वीडन के जॅसी पीटरसन (विश्व चैंपियन) और स्विट्जरलैंड के जोहान लेम (यूरोपियन चैंपियन) ।

अपनी सेवानिवृत्ति के बाद गामा पहलवान ने अपने भतीजे भोलू पहलवान को प्रशिक्षित किया। जिन्होंने लगभग 20 वर्षों तक पाकिस्तानी कुश्ती के चैंपियन रहे। 1940 में, हैदराबाद के निजाम के निमंत्रण पर गामा ने उनके सभी पहलवानों को हराया फिर निजाम ने उन्हें पहलवान बलराम हेरमन सिंह यादव से लड़ने के लिए भेजा, जो कभी अपने जीवन में पराजित नहीं थे। एक लंबे समय तक चली कुश्ती के बाद गामा उसे हरा नहीं पाए। आखिरकार यह मुकालबा ड्रा हो गया और कोई भी पहलवान नहीं जीता।

वर्ष 1927 तक गामा को किसी ने चुनौती नहीं दी थी। हालांकि, शीघ्र ही यह घोषणा की गई कि गामा और ज़िबेस्को एक बार फिर से एक-दूसरे का सामना करेंगे। जनवरी 1928 में पटियाला में मुकाबला हुआ और गामा ने एक मिनट के अंदर ज़िबेस्को को हरा दिया और विश्व कुश्ती चैंपियनशिप के विजेता बने। मुकाबले के बाद ज़िबेस्को ने गामा को “टाइगर” के रूप में संबोधित किया।

वर्ष 1922 में, इंग्लैंड के ‘प्रिंस ऑफ़ वेल्स’ ने भारत की यात्रा के दौरान गामा पहलवान को चाँदी का एक बेशक़ीमती ‘गदा’ (ग़ुर्ज) उपहार स्वरूप प्रदान किया था। इंग्लैंड से भारत लौटने के बाद गामा और रहीम बख्श सुल्तानीवाला के बीच इलाहाबाद में कुश्ती हुई। यह कुश्ती काफ़ी देर तक चली और गामा ने इस कुश्ती को जीतकर रुस्तम-ए-हिंद का ख़िताब प्राप्त किया।

गामा पहलवान ने 50 साल में लगभग तकरीबन 5000 से अधिक मुकाबले लड़े और वह इनमें से किसी भी मुकाबले में नहीं हारे थे, इसलिए वह भारतीय कुश्ती के सबसे महान पहलवान कहे जाते हैं। महान गामा पहलवान ने बड़ौदा के सयाजीबाग में बने एक संग्रहालय के शिलालेख में 1200 किलो का पत्थर उठाया था। उन्होंने बिना किसी ट्रेनिंग के विदेशों के बड़े-बड़े पहलवानों को धूल चटाई है।

गामा पहलवान ने अपने जीवन में दो बार निकाह किया एक वज़ीर बेगम के साथ और एकअन्य। उनके 5 पुत्र और 4 पुत्रियां थीं। उनकी पोती नवाज़ शरीफ की पत्नी हैं। जब कुश्ती में गामा के कौशल की कहानी दतिया के महाराजा श्री भवानी सिंह बहादुर तक पहुंच गई, तब उन्होंने उन्हें प्रशिक्षण देने के लिए अपने साथ रख लिया, और इस प्रकार गामा पहलवान की पेशेवर कुश्ती यात्रा शुरू हुई।

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