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कहीं खो गयी वो चिठ्ठियाँ

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जिंदगी के एहसास जो शायद हममे से बहुतों ने महसूस नहीं किए होंगे पुराने ज़माने में ऐसी चिट्ठियां हुआ करती थी।

चिट्ठी लिखने की परम्परा तो बहुत पुरानी है, पुराने ज़माने से ही लोग चिट्ठियों के माध्यम से ही सूचनाओं का आदान प्रदान करते आये है । एक जमाना था जब पोस्टमेन को देखकर खुश होते थे पर आजकल वह नज़र ही नहीं आता। जमाना बदला, तकनीकें बदली, फिर आये दूरभाष यन्त्र तब चिट्ठियाँ भेजी जानी थोड़ी कम हो गयी थी; क्यूंकि कुछ लोगो क पास टेलीफोन आ गया था ।

कहीं खो गयी है वो चिठ्ठियाँ जिसमें लिखने के सलीके छुपे होते थे कुशलता की कामना से शुरू होते थे।

बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते थे…!!

और बीच में लिखी होती थी “जिंदगी”

नन्हें के आने की खबर

माँ की तबियत का दर्द

और पैसे भेजने का अनुनय

फसलों के खराब होने की वजह…!!

कितना कुछ सिमट जाता था एक

नीले से कागज में…. ..

जिसे नवयौवना भाग कर सीने से लगाती…… ❤️

और अकेले में आंखो से आंसू बहाती !….

माँ की आस थी पिता का संबल थी

बच्चों का भविष्य थी और

गाँव का गौरव थी ये चिट्ठियां……

डाकिया चिठ्ठी लायेगा कोई बाँच कर सुनाएगा….

देख देख चिठ्ठी को कई कई बार छू कर चिठ्ठी को…

अनपढ भी एहसासों को पढ़ लेते थे…!!

अब तो स्क्रीन पर अंगूठा दौडता हैं….

और अक्सर ही दिल तोडता है

मोबाइल का स्पेस भर जाए तो

सब कुछ दो मिनट में डिलीट होता है…

सब कुछ सिमट गया है 6 इंच में

जैसे मकान सिमट गए फ्लैटों में

जज्बात सिमट गए मैसेजों में

चूल्हे सिमट गए गैसों में……

और इंसान सिमट गए पैसों में ..

बचपन से ही चिट्ठी लिखना मेरा सगल रहा है। इसका भी कारण यह कि मैं जब कक्षा 6 में गया तो पहली बार फाउंटेनपेन हाथ आया और मैं अपने मुहल्ले का एकलौता पढ़ा लिखा लड़का, जो गोपनीयता बरकरार रखते हुए , एक ही घर के अनेकों लोगों के पत्र जो बाहर रहने वाले एक ही आदमी के नाम अलग अलग समस्याओं, शिकायतों, मांगों के होते थे, उसी भाव में लिख देता था।

स्कूल के दोस्तों की लव स्टोरी उनकी प्रेमिका के लिए लिखता था। और अपने रिश्तेदरों को भी अंतरदेशी भेजता था। बाबा, काका, चाचा, मामा, रिश्ते में थे , सबके पत्र लिख लिख कर मैंने यहीं से मेरे मन में लेखक बनने के वसूल, सूत्र की गोपनीयता का नियम सीखा और पारिश्रमिक के रुप में तिलई, गाटा, लकड़िया मिठाई आदि पाया करता था। यही मेरी पत्रकारिता की कार्यशाला थी। इन्हीं लोगों ने मुझे लिखने की सामग्री दिया, और भावों को व्यक्त करने के लिए शब्दों की तलाश ने ज्यादा से ज्यादा पढ़ने को प्रेरित किया। आज भी मैं नियमित जन समस्याओं को लेकर ब्लॉग लिखता हूं।

अपने करियर में मुझे पता नहीं मैंने कितनी चिट्ठीयाँ लिखी है। शायद हजारों की संख्या में। पर ये सभी ओफिशियल चिट्ठियाँ थीं और काम के सिलसिले में लिखी गई थीं और मुझे लिखने में कोई मज़ा नहीं था, जरूरी थीं इसलिए लिखी गई, पर जब से ईमेल की सुविधा उपलब्ध हुई मेरी चिट्ठी लिखने की आदत प्राय: समाप्त हो गई, और मुझे भी किसी से चिट्ठी नहीं मिलती। आजकल सबके पास मोबाईल फोन है, Whatsapp है, और मैंने पिछ्ले कई साल से किसी को चिट्ठी नहीं लिखी, न ही ज्यादा ईमेल किया।

पहले कोई खुशखबरी, किसी की मरने की खबर आदि पर एक दूसरे के यहां चिट्ठियां ही भेजी जाती थी ।परन्तु वर्तमान समय में मोबाइल फ़ोन ने हर चीज़ में अपनी प्राथमिकी दर्ज करली है। चिट्ठियों का स्थान भी Whatsapp (hike, line, telegram,messenger जैसी और भी अन्य) नामक सन्देश आदान -प्रदान करने वाली एप्प ने ले लिया है, अब तो चाहे होली हो या दीवाली, ईद हो या क्रिसमस, राखी हो या किसी का जन्मदिन , हारी हो या बीमारी, एक दूसरे को से ही सन्देश भेज दिया जाता है। और आजकल की इस भागदौड़ भरी जिंदगी में लोगो के पास इतना टाइम भी नहीं है कि मैसेज भी खुद से टाइप करके भेजे, नहीं !! होली दिवाली पर तो एक दूसरे के आये हुए सन्देश ही आगे भेज दिए जाते हैं।

चिट्ठी लिखने की परम्परा तबसे है जब डाक विभाग भी नहीं था। डाकिये का कार्य कबूतर करते थे। या फिर राजा महाराजा लोगों के हरकारे (व्यक्तिगत संदेश वाहक)। ये प्रथा तबसे होगी जब लिखने की खोज हुई थी। उससे भी पहले मुनादि द्वारा संदेश भेजे जाते थे। जंगलों में क़बीले वाले ढोल की आवाज़ से दूर के क़बीले को संदेश पहुँचाते थे। उससे पहले कोई जानकारी नहीं है।

भारत में डाक प्रथा का प्रचलन मुग़ल सम्राट अकबर (Akbar) के समय (16वीं शताब्दी) में हुआ था। अकबर ने एक पोस्टल सर्विस स्थापित की थी, जिसका उद्देश्य सरकारी दस्तावेज़, सूचनाएँ और समाचार आदि को तेजी से और सुरक्षित रूप से पहुँचाना था। यह मुगलों के शासनकाल में, एक एकीकृत संचार प्रणाली की नींव रखी गई थी। हालांकि बाबर और अकबर ने डाक व्यवस्था की स्थापना में भी योगदान दिया था, परंतु शेर शाह सूरी का भारत में डाक प्रणाली के विकास में सड़कों के तीव्र विकास और प्रशासनिक सुधारों के कारण महत्वपूर्ण योगदान था।

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