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विल डुरांट अपनी किताब ‘स्टोरी ऑफ़ सिविलाइजेशन’ के लिए जाने जाते हैं। इन्होंने 1930 में एक किताब लिखी थी ‘द केस फॉर इंडिया’। निष्पक्ष रूप से लिखी इस किताब में उन्होंने विस्तार से बताया कि भारत ब्रिटिश शासन से पहले कैसा था? ब्रिटिशों ने कैसे भारत को लूटा और कैसे भारत की आत्मा की ही हत्या कर डाली?संस्कृत के बारे में उन्होंने ऐसा क्यों कहा होगा? ऐसा क्या पाया होगा कि उन्हें यूरोपियन भाषाओं की जननी संस्कृत नज़र आई। किताब के पहले पेज पर उन्होंने भारत के लिए निजी रूप से एक ‘सम्बोधन’ प्रेषित किया है ।
इस अध्याय में कहना चाहता हूँ कि भारत के बारे में पुख्ता ढंग से लिखने के मामले में मैं अपने आपको बहुत ही अक्षम पा रहा हूँ। किताब लिखने से पूर्व मैंने दो बार भारत के पूर्व और पश्चिम की यात्राएं की। उत्तर से लेकर दक्षिण में बसे शहर देखे। इसके बाद भारत के बारे में उपलब्ध जानकारी के बारे में बहुत पढ़ने के बाद मैं किताब लिखने के लिए तैयार हुआ। अध्ययन के बाद मैंने पाया कि पांच हज़ार साल पुरानी सभ्यता के सामने मेरा ज्ञान बहुत तुच्छ और टुकड़े भर का है। उस सभ्यता के सामने, जिसका दर्शन, साहित्य, धर्म और कला का विश्व में कोई सानी नहीं है। इस देश की अंतहीन धनाढ्यता इसकी धवस्त हो चुकी शान और ‘स्वतंत्रता के लिए शस्त्रहीन संघर्ष’ से अब भी झांकती है।
ये सब मैं इसलिए लिख पा रहा हूँ क्योंकि भारत को मैंने बहुत गहराई से महसूस किया है। मैंने यहाँ मेहनती और महान लोगों को अपने सामने भूख से मरते देखा। ये लोग अकाल ये जनसँख्या वृद्धि से नहीं मर रहे थे। इनको ब्रिटिश शासन तिल-तिल कर मार रहा था। ब्रिटेन ने भारत के लोगों के साथ घिनौना अपराध किया है जो इतिहास में दर्ज हो चुका है। ब्रिटिश भारत को साल दर साल मारते रहे और इसके लिए उन्होंने हिन्दू शासकों का ही सहारा लिया। एक अमेरिकन होते हुए मैं ब्रिटिशों के इस अत्याचार की निंदा करता हूँ।
किताब में विल डुरांट ने जिक्र किया है कि भारत कोई छोटा-मोटा द्वीप नहीं है। ये एक विशाल देश है। जब ब्रिटिश भारत आए तो ये देश राजनीतिक रूप से कमज़ोर और आर्थिक रूप से बहुत सक्षम था। मैंने तिरुचिरापल्ली में एक गाइड से सवाल किया कि सैकड़ों साल पहले राजा इतने भव्य मंदिर कैसे बना लेते थे। धन की व्यवस्था कैसे की जाती थी? उस गाइड ने कहा राजा आर्थिक रूप से इतने सक्षम होते थे कि जनता पर बोझ डाले बिना ये काम कर सके। राजा टैक्स लेते थे लेकिन ब्रिटिशों की तरह भारी कर नहीं लगाया जाता था।
जब ब्रिटिश भारत आए तो देश में शिक्षा का एक सुगठित ढांचा हुआ करता था। बच्चे गुरुकुल में पढाई करते थे। ब्रिटिशों ने इस प्राचीन शिक्षा व्यवथा को ध्वस्त कर दिया। इसके बदले में उन्होंने व्यावसायिक स्कूलों को बढ़ावा दिया। ब्रिटिश शासन के समय भारत के सात लाख से भी ज्यादा गांवों में एक लाख से कम स्कुल बचे थे। अंग्रेजों ने देश की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था का आधा हिस्सा तो आते ही तबाह कर दिया था। इसके बाद भारत में शिक्षा आमजन के लिए आसानी से सुलभ नहीं रही।
“भारत से ही हमारी सभ्यता की उत्पत्ति हुई थी। संस्कृत सभी यूरोपियन भाषाओं की माँ है। हमारा समूचा दर्शन संस्कृत से उपजा है। हमारा गणित इसकी देन है। लोकतंत्र और स्वशासन भी भारत से ही उपजा है।” —- विल डुरांट (1885-198
देखिये भारत को अमरीकी इतिहासकार और दार्शनिक विल डूरान्ट की नजरों से
The Story of Civilization, 11 volumes, Will Durant is one of the most popular writers of world. He is an American, and is considered to be most unbiased thinker. This book was banned by British Government.
William James Durant, November 5, 1885 – November 7, 1981) was an American writer, historian, and philosopher.
He is best known for The Story of Civilization, 11 volumes written in collaboration with his wife Ariel Durant and published between 1935 and 1975.
He was earlier noted for The Story of Philosophy (1924), described as “a groundbreaking work that helped to popularize philosophy”.
He conceived of philosophy as total perspective, or, seeing things sub specie totius, a phrase inspired by Spinoza’s sub specie aeternitatis. He sought to unify and humanize the great body of historical knowledge, which had grown voluminous and become fragmented into esoteric specialties, and to vitalize it for contemporary application.
Will and Ariel Durant were awarded the Pulitzer Prize for General Non-Fiction in 1968 and the Presidential Medal of Freedom in 1977.
Will Durant की पुस्तक The Case for India – 1930 से उद्धृत कुछ अंश:
हजारों साल से भारत विश्व पर आर्थिक वर्चस्व बनाए रखा था
1750 में समुद्री डकैत आए तो उन्होने अर्थ धर्म समाज सबको नष्ट किया, कानून बनाकर चले गए, और दे गए मानसिक गुलामी।
कुछ लोगों का मानना है कि अंग्रेजों ने शूद्रों को शिक्षा का अधिकार दिलवाया, वर्ण ब्राह्मणों ने तो उनको हजारों साल से उनको शिक्षा से दूर रखा था।
इन विद्वानों को ये नहीं पता शायद, या पता भी हो तो ये अपने समर्थकों की आँख मे धूल झोंकते होंगे कि जब तक शिक्षा ब्राह्मणों के हांथ मे थी तब तक भारत मे शिक्षा लेने ग्रहण करने का हर कोई अधिकारी था। जबकि ब्रिटेन मे उस समय मात्र नोबल परिवारों को ही शिक्षा तक पहुँच थी।
1830 मे अंग्रेजों द्वारा संकलित डाटा ये बताता है कि ब्राह्मणी शिक्षा व्यवस्था मे स्कूल जाने वाले शूद्र छात्रों की संख्या ब्राह्मण छात्रों से चार गुणी थी।
लेकिन लूट और मनी ड्रेन और भारत की ग्रामीण उद्योगों के नष्ट होने की वजह से जब करोडोंलोग बेरोजगार बेघर हुये, तो उनकी प्रारम्भिक आवस्यकता रोटी कपड़ा और मकान होगा कि शिक्षा??
गणेश सखाराम देउसकर ने 1904 मे लिखा कि 1875 से 1900 के बीच 22 करोड़ भारतीयों मे से 2 करोड़ लोग अन्न के अभाव मे प्राण त्याग देते हैं क्योंकि अनाज कि कमी नहीं थी बल्कि उनकी जेब मे अनाज खरीदने का पैसा नहीं था।
इसी संदर्भ मे एक प्रसिद्ध लेखक Will Durant का 1930 का एक लेख प्रस्तुत कर रहा हूँ।
“मैनें अपनी आँखों से लोगों को भूंख से मरते देखा है। और ये दुर्दशा और भुखमरी overpopulation या अंधविस्वास के कारण नहीं है, जैसा कि उनके benificiery (अंग्रेज) दावा करते हैं।
बल्कि आज तक के इतिहास में एक देश द्वारा दूसरे देश का सबसे घोर और अपराधिक शोषण के कारण है। मैं बताना चाहता हूँ कि इंग्लैंड ने भारत का खून सैकड़ों साल जिस तरह से चूसा है उसके कारण भारत आज मृत्यु के कगार पर खड़ा है।” पेज 1-2
“भारत पर ब्रिटिश की जीत एक व्यापारी कंपनी का आक्रमण और उन्नत सभ्यता का विनाश था, जिसका (कंपनी का) न कोई आदर्श था, न आर्ट के प्रति कोई सम्मान था, वह मात्र भौतिक उपलब्धि की लालच में मदान्ध लोगों का बन्दूक और तलवार के दम पर अव्यवस्थित और असहाय लोगों के ऊपर आक्रमण था जो उत्कोच देकर और हत्याएं करके राज्यों पर अधिकार जमा कर चोरी करने से शुरुवात करते हैं और तत्पश्चात इस अपराध को वैधानिक जामा पहनकर पिछले 173 साल से बुरी तरह लूट (plunder) रहे हैं, और ये आज भी जारी है जब हम इन घटनाओं को लिख और पढ़ रहे हैं ।” पेज -7
“जो लोग आज हिंदुओं की अवर्णनीय गरीबी और असहायता आज देख रहे हैं, उन्हें यह विस्वास ही न होगा ये भारत की धन वैभव और संपत्ति ही थी जिसने इंग्लैंड और फ्रांस के डकैतों (Pirates) को अपनी तरफ आकर्षित किया था। इस “धन सम्पत्ति” के बारे में Sunderland लिखता है:—
“ये धन वैभव और सम्पत्ति हिंदुओं ने विभिन्न तरह की विशाल (vast) इंडस्ट्री के द्वारा बनाया था।
किसी भी सभ्य समाज को जितनी भी तरह की मैन्युफैक्चरिंग और प्रोडक्ट के बारे में पता होंगे, – मनुष्य के मस्तिष्क और हाथ से बनने वाली हर रचना (creation), जो कहीं भी exist करती होगी, जिसकी बहुमूल्यता या तो उसकी उपयोगिता के कारण होगी या फिर सुंदरता के कारण, – उन सब का उत्पादन भारत में प्राचीन कॉल से हो रहा है।
भारत यूरोप या एशिया के किसी भी देश से बड़ा इंडस्ट्रियल और मैन्युफैक्चरिंग देश रहा है।
इसके टेक्सटाइल के उत्पाद — लूम से बनने वाले महीन (fine) उत्पाद, कॉटन, ऊन लिनेन और सिल्क — सभ्य समाज में बहुत लोकप्रिय थे।
इसी के साथ exquisite जवेल्लरी और सुन्दर आकारों में तराशे गए महंगे स्टोन्स, या फिर इसकी pottery, पोर्सलेन्स, हर तरह के उत्तम रंगीन और मनमोहक आकार के ceramics; या फिर मेटल के महीन काम – आयरन स्टील सिल्वर और गोल्ड हों।इस देश के पास महान आर्किटेक्चर था जो सुंदरता में किसी भी देश की तुलना में उत्तम था।
इसके पास इंजीनियरिंग का महान काम था।
इसके पास महान व्यापारी और बिजनेसमैन थे।
बड़े बड़े बैंकर और फिनांसर थे।
ये सिर्फ महानतम शिप (जहाज, जलयान) बनाने वाला राष्ट्र मात्र नहीं था बल्कि दुनिया में सभ्य समझे जाने वाले सारे राष्ट्रों से व्यवसाय और व्यापार करता था। ऐसा भारत देश मिला था ब्रिटिशर्स को जब उन्होंने भारत की धरती पर कदम रखा था ।” पेज- 8-9
ये थी भारत की आर्थिक मैन्युफैक्चरिंग इंडस्ट्रियल और कमर्शियल तस्वीर जब डकैत भारत में आये। लेकिन जब ये डकैत गए तो ये सारा आर्थिक ढांचा खत्म था। भारत जो अनंत काल से 1750 तक पूरी दुनिया की 25% जीडीपी का मालिक था, और डकैत लोग मात्र 2% के 1900 में भारत की जीडीपी 25 से घटकर मात्र 2% बचा।
अब प्रश्न ये है कि will durant द्वारा प्रस्तुत मैन्युफैक्चरिंग और इंडस्ट्री के मैन्युफैक्चरर का क्या हुवा?
उनकी वंशजों का क्या हुवा?
कहाँ गए वो??
अब एक आंकड़ा प्रस्तुत कर रहा हूँ।
उस आंकड़े को timeline के अनुसार, और सामाजिक स्थित को ध्यान में रखकर पढियेगा खासकर 1857 के संग्राम के पश्चात शासन और क्रिश्चियन मिशिनरियों के धर्म परिवर्तन करने, और दुबारा 1857 की घटना दुबारा न हो, इस बात को ध्यान में रखकर।
Angus Maddison नाम के अर्थशाष्त्री ने 10 वर्षो की रिसर्च किया और 2000 में एक पुस्तक लिखी –
Economic history of world; a melineum perspective.
जिसमे 0 AD से 2000 AD तक का विश्व की आर्थिक इतिहास का वर्णन है। इनको OECD ग्रुप के देशों ने नियुक्त किया था ये जांचने के लिए की क्या पश्चिमी देश हमेशा से अमीर रहे हैं और पूर्वी देश हमेशा से ही गरीब रहे हैं । क्योंकि अभी भी हमें बताया जाता रहा है की महान रोमन सभ्यता। A Maddison ने ये प्रमाणित किया की भारत और चीन 0 AD से 1750 तक दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक ताकत थे।
1750 में भारत की GDP पूरी दुनिया की GDP का 25% हिस्से का हिस्सेदार हुवा करता था। और २००० सालो से ज्यादा समयकाल तक जबकि UK + USA का कुल हिससेदारी मिलकर मात्र 2% थी। भारत और UK की प्रतिव्यक्ति आय लगभग बराबर थी, भारत एक निर्यातक देश था। सिर्फ मसालों का नहीं रत्न लाख गुड खांड पोर्स्लीन घी सूती वस्त्र और छींट के कपडे।
भारत से आयातित वस्तुएं इंग्लॅण्ड के घरों में स्टेटस सिंबल मानी जाती थी।
लेकिन मात्र 150 सालों में स्थिति उल्टी हो गयी । भारत का हिस्सा विश्व GDP का मात्र 2% रह गया और UK+USA का हिस्सा 40% के ऊपर हो गया। और ये औद्योगिक क्रांति के कारण नहीं। बल्कि सिलसिलेवार लूट और भारतीय घरेलू उद्योगों को नष्ट करके। अगर क्या क्या समान भारत से जाता था इंग्लॅण्ड उसकी जानकारी चाहिए तो दादा भाई नौरोजी की Unbritish Rule in India नामक पुस्तक जो 1906 के आसपास छपी थी। उससे ले सकते है। अब इसका एक दूसरा हिस्सा देखिये। अगर भारत देश निर्यातक था, तो मैन्युफैक्चरिंग भी होती रही होगी।
इसका मतलब स्किल्ड और अपने ज़माने के entrepreneur भी रहे होंगे। रोजगार युक्त होंगे ।उनके द्वारा निर्मित सामान एक्सपोर्ट होता था तो मानना चाहिए कि लोग संपन्न न सही लेकिन विपन्न न रहे होंगे। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि कितने प्रतिशत लोग बेरोजगार हुए होंगे? जो लोग हजारों वर्षों से अपनी हस्तकला और उससे जुड़े व्यवसाय जैसे खरीदकर ट्रांसपोर्ट करना, या सोचिये किसी भी मुख्य व्यवसाय से सम्बंधित जितनी भी auxillary व्यवसायी रहे होंगे, और जो हजारों साल से वही काम करके जीविकोपार्जन करते थे, बेरोजगार हुए होंगे तो बेघर भी हुए होंगे।
“The rise and fall of the great powers” – पॉल कैनेडी द्वारा लिखे पुस्तक के P. 149 पर एक बेल्जियन इकोनॉमिस्ट पॉल बैरोच द्वारा तैयार एक डाटा प्रकाशित किया गया है। वो बेहद रुचिकर और ज्ञानियों के चक्षु खोलने वाला है।
Table.6 Relative shares of World Manufacturing Output 1750-1900
में पब्लिश की गयी रिपोर्ट के अनुसार 1750 में पूरे यूरोप का उत्पादन विश्व उत्पादन का 23.2% था और भारत अकेले का उत्पादन 24.5 % था, ब्रिटेन का योगदान मात्र 1.9% था। अब 1900 को देखिये यूरोप अकेले 62.0% ब्रिटेन 18.5% भारत 1.7% पूरे विश्व उत्पाद का, यानी massive Fall of economy of India And rise of west. विश्व सकल उत्पाद में भारत का योगदान datawise :-
1750—–24.%
1800——19.7%
1830——-17.6%
1860——-8.6%
1880——–2.8%
1900——–1.7%
अब एक दूसरा डाटा उसी पुस्तक से पॉल बैरोच का। Per capita level of Industrialisation: 1750 में :-
Europe as a whole—- 8
UK––———————— 10
USA–—––—————— 4
India—-–———————7
अब per capita industrialisation in 1900
Europe as whole –35
UK–––100
USA—–69
India——1
A massive de-industrialization of India यानी बेरोजगारी का चरम 150 वर्षों में।
Paul Bairoch says — a horrifying state of affair, whereas in 1750 per capita industrialisation in Europe and third world was not too far apart from each other, but by 1900 , later was only one eighteenth (1।18) of Europe and one fiftieth (1।50) of UK.
यानी हिंदी में समझा जाय तो यदि 1900 में मात्र 1 व्यक्ति भारत में उत्पादन व्यवसाय में कार्य करता था तो 1750 में 7 लोग उत्पादक रोजगारों में employed थे। यानी अगर कोई statistic वाला व्यक्ति इस पेज पर हो तो वो जनसँख्या के अनुपात में कितने लोग बेरोजगार हुए, बता सकता है। जो लोग हजारों वर्षों से अपने तकनीकी ज्ञान की वजह से खुशहाल रहे होंगे।सोचिये क्या हुवा होगा उनके परिवारों का और भावी वंशजों का न रोजगार है तो रहने का खा ने का ठिकाना ही नहीं ।