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गायत्री मन्त्र व्याख्या

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गायत्री मन्त्र में चौबीस अक्षर हैं। मन्त्र के शब्दों का चयन मनोहारी एवं वैज्ञानिक ढंग से किया गया है।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ।।⭐

मन्त्र का अर्थ
(म) अक्षर का अर्थ मनन चिन्तन ध्यान है, किसका चिन्तन?
(न) नारायण प्रभु ईश्वर का वाच है।
(त्र) चिन्तन ध्यान का फल है, रक्षा, दुःखों से छुटकारा माया से मुक्ति, अर्थात् मोक्ष से है।

“गायत्री एक षडाङ्ग योग साधना” है। षडाङ्ग योग के छ: अंग हैं ये मोक्ष धाम तक पहुँचने के लिये सोपान सीढ़ियों है।

० प्रथम सोपान –
भूः सुविचार भूः पद परमात्मा का वाचक है, जिसका अर्थ स‌द्विचार से है। परमात्मा स्वयम्भूः है। तीनों कालों में एक रस है, त्रिकालाबाधित सत्य है।

० द्वितीय सोपान –
भुवः उपरतिः भुवः पद भगवान् का वाचक है, इसका अर्थ है संसार को उत्पन्न करने वाला है।

० तृतीय सोपान –
स्वः का अर्थ है मुमुक्षता परमात्मा स्वः है, आनन्द स्वरूप है।

० चतुर्थ सोपान –
तत् सवितुर्वरेण्यम् गायत्री का यह प्रथम पाद है। द्वितीय भर्गोदेवस्य धीमहि, तृतीय धियो यो नः प्रचोदयात्। गायत्री के यह तीन पाद हैं। जो अन्तरंग योग में आते हैं। अन्तरंग योग में चारण, ध्यान और समाधि सम्मिलित हैं। तत् शब्द ब्रह्म का बोधक है। परम तत्त्व ही तत् है।
सवितुः त्र का अर्थ – तत् शब्द के बाद सवितुः आता है। यह पद गायत्री मन्त्र का प्राण है। सवितुः का अर्थ है रचनाकार, जो संसार की रचना करता है। चन्द्रमा सविता है प्राण सविता है, विद्युत सचिता है। चन्द्रमा शान्ति व रस का प्रतीक है। सविता का अर्थ सूर्य भी है, यह सूर्य का समानार्थी भी है।
वरेण्यम् पद का अर्थ – वरण शब्द का अर्थ है चुनना, छांटना, प्रार्थना करना, याचना करना,उपासना करना, तत् का अर्थ – वह,
सवितुः का अर्थ – सृष्टि को उत्पन करने वाला,
वरेण्यम् का अर्थ – वरण करने योग्य, इस पद के बिना मन्त्र अधूरा रहता है।

० पञ्चम सोपान
ध्यान – भर्गो देवस्य धीमहि गायत्री मन्त्र का दूसरा पाद है। भर्गः शब्द का अर्थ गायत्री ही गर्भ कहलाती है और तेज ही गायत्रो है। भर्ग शब्द का अर्थ भगवान का अपना स्वरूप, पापों, विकारों, दोषों एवं अविद्या से उत्पत्र क्लेशों को दूर करने वाला है। भुज धातु का अर्थ जला देना। प्रकाशित स्वरूप ही भर्ग है। ‘भ’ का अर्थ है भस्म करना ‘र’ का अर्थ है प्रकाशित करना ‘ग’ का अर्थ है पकाना। ‘धीमहि’ शब्द का अर्थ ध्यान करना, चिन्तन करना धारण करना। ‘ ध्यै’ धातु से धीमहि बनता है, अतः ईश्वर के रूप का ध्यान करना चाहिये। राग का शमन हो जाना और मन का विषयों से अलग हो जाना ही ध्यान है।

० षष्ट सोपान –
अन्तिम सोपान – ‘धियो योनः प्रचोदयात्’ धियो शब्द का अर्थ – ‘धियो धरण वत्यो बुधयः’ जो धारण करने वाली हो उसे धिय: कहते हैं। जो सत्य को धारण करे वही सर्वोत्कृष्ट बुद्धि है। ‘नः’ शब्द का अर्थ – गायत्री मन्त्र में नः शब्द का अर्थ हमारा या हमारी, मैं, मेरा कल्याण का सूचक है। विश्व के मानव मात्र के कल्याण हेतु।
प्रचोदयात् शब्द का अर्थ – गायत्री मन्त्र में प्रचोदयात् शब्द बड़ा ही महत्व पूर्ण है इसका अर्थ है प्रेरणा करना, आगे बढ़ना (प्र) शब्द का अर्थ है प्रकृष्ट, सर्वोत्तम सर्वश्रेष्ठ चोदयात् का अर्थ है- जोड़ना, संयुक्त करना, प्रेरणा देकर आगे बढ़ाकर मिलाना।

प्रचोदयात् का अर्थ महान बड़ा से जोड़ देने वाला।

० ॐ प्रणव है।
० भूः “सुविचार” परम तत्व है, मंजिल है, विश्राम है।
भुवः “वैराग्य” स्थल है मानव मात्र का।
० स्वः “मुमुक्षता” ओंकार सभी मन्त्रों का सेतु है।
० तत्सवितुर्वरेण्यम् “धारणो” अकार-स्थूल संसार का सम्पर्क।
० भर्गोदेवस्य धीमहिः “ध्यान” उकार-सूक्ष्म संसार से सम्पर्क।
० धियो योनः प्रचोदयात्ः “समाधि” मकार कारण जगत से सम्बन्ध ।
यही अविनाशी ॐ कार ही तो परम सत्य है।।

🌹ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात् ।।🌹

गायत्री मंत्र से बड़ा कोई मंत्र नहीं गीता में श्री कृष्ण ने कहा है कि मंत्रो में मैं गायत्री हूँ

मन्त्र की व्याख्या – मननात् त्रायते स मन्त्र: ।।
केवल शुकपाठ का कोई अर्थ नहीं है। मन्त्र का सार्थ मनन करना चाहिए तभी उसके परिणाम की प्राप्ति होती है 
गायत्री 👉 गायन्तम् त्रायते स गायत्री भी यही सूचित करता है 🌹

।। इति गायत्रीमन्त्रार्थः ।।

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