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भारत के नागरिकों का मौलिक अधिकार

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मौलिक अधिकार भारत के संविधान के तीसरे भाग में वर्णित लोगों के मूल अधिकार हैं। ये अधिकार सभी भारतीय नागरिकों की नागरीक स्वतंत्रता प्रदान करते हैं जैसे सभी भारत के लोग, भारतीय नागरिक के रूप में शान्ति के साथ समान रूप से जीवन व्यापन कर सकते हैं। .

भारत का संविधान
भारत का संविधान, भारत का सर्वोच्च विधान है जो संविधान सभा द्वारा 26 नवम्बर 1949 को पारित हुआ तथा 26 जनवरी 1950 से प्रभावी हुआ। यह दिन (26 नवम्बर) भारत के संविधान दिवस के रूप में घोषित किया गया है जबकि 26 जनवरी का दिन भारत में गणतन्त्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत का संविधान विश्व के किसी भी गणतांत्रिक देश का सबसे लंबा लिखित संविधान है। .

संविधान संशोधन
विधायिनी सभा में किसी विधेयक में परिवर्तन, सुधार अथवा उसे निर्दोष बनाने की प्रक्रिया को संशोधन (amendment) कहते हैं। सभा या समिति के प्रस्ताव के शोधन की क्रिया के लिए भी इस शब्द का प्रयोग होता है। किसी भी देश का संविधान कितनी ही सावधानी से बना हुआ हो किंतु मनुष्य की कल्पना शक्ति की सीमा बँधी हुई है। भविष्य में आनेवाली और बदलनेवाली सभी परिस्थितियों की कल्पना वह संविधान के निर्माणकाल में नहीं कर सकता; अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों की गुत्थियों के कारण भी संविधान में संशोधन, परिवर्तन करना वांछनीय एवं आवश्यक हो जाता है। संवैधानिक संशोधन की प्रक्रिया का उल्लेख लिखित संविधान का आवश्यक अंग माना गया है। गार्नर के शब्दों में ‘कोई भी लिखित संविधान इस प्रकार के उपबंधों के बिना अपूर्ण है’। संविधान के गुणावगुण परखने की कसौटी भी संशोधन की प्रक्रिया है – प्रक्रिया सरल है अथवा कठोर है। कुछ देशों के संविधान का संशोधन विधिनिर्माण की साधारण प्रक्रिया के अनुसार ही होता है। ऐसे संविधानों को नमनीय या सरल संविधान कहते हैं। इस प्रकार के संविधान का सर्वोत्तम उदाहरण इंग्लैंड का संविधान है। कुछ संविधानों के संशोधन की प्रक्रिया के लिए एक विशिष्ट प्रक्रिया का आलंबन किया जाता है। यह प्रक्रिया जटिल एवं दुरूह होती है। ऐसे संविधान जटिल या अनममीय संविधान कहलाते हैं। संयुक्त राज्य अमरीका का संविधान ऐसे संविधानों का सर्वोत्तम उदाहरण है। भारतीय गणतंत्र संविधान के संशोधन का कुछ अंश नमनीय है और कुछ अंश की अनमनीय प्रक्रिया है। इन दोनों विधियों को ग्रहण करने से देश के मौलिक सिद्धांतों का पोषण होगा और संविधान में परिस्थितियों के अनुकूल विकसित होने की प्रेरणाशक्ति भी होगी। .

अनुच्छेद
अनुच्छेद (पैराग्राफ) किसी लेख या निबंध का वह विशिष्ट अंश है जिसमें किसी विषय से संबंधित किसी खास और प्रायः एक विचार भाव और सूचना का विवेचन किया जाता है। यदि अनुच्छेद किसी निबंध या अन्य विधा का हिस्सा हो तो वह अपने पूर्ववर्ती और परवर्ति अनुच्छेदों से संबद्ध होता है। वह एक सीमा तक अपने में पूर्ण भी होता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने लिखा था कि विचारात्मक निबंध में लेखक को अपने भाव या विचार दबा-दबाकर भरने चाहिए और एक अनुच्छेद का संबंध दूसरे से होना चाहिए। विचारों की शृंखला बनी रहनी चाहिए। उसमें ‘पूर्वापर संबंध’ रहना चाहिए। उदाहरण के लिये “अध्ययन के लाभ” विषय पर एक अनुच्छेद नीचे दिया गया है- .

मौलिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति के जीवन के लिये मौलिक होने के कारण संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये जाते हैं और जिनमें राज्य द्वार हस्तक्षेप नही किया जा सकता। ये ऐसे अधिकार हैं जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिये आवश्यक हैं और जिनके बिना मनुष्य अपना पूर्ण विकास नही कर सकता। ये अधिकार कई करणों से मौलिक हैं:-

  1. इन अधिकारों को मौलिक इसलिये कहा जाता है क्योंकि इन्हे देश के संविधान में स्थान दिया गया है तथा संविधान में संशोधन की प्रक्रिया के अतिरिक्त उनमें किसी प्रकार का संशोधन नही किया जा सकता।
  2. ये अधिकार व्यक्ति के प्रत्येक पक्ष के विकास हेतु मूल रूप में आवश्यक हैं, इनके अभाव में व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास अवरुद्द हो जायेगा।
  3.  इन अधिकारों का उल्लंघन नही किया जा सकता।
  4. मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं तथा समाज के प्रत्येक व्यक्ति को समान रूप से प्राप्त होते है।

साधारण कानूनी अधिकारों व मौलिक अधिकारों में अंतर
साधारण कानूनी अधिकारों को राज्य द्वारा लागू किया जाता है तथा उनकी रक्षा की जाती है जबकि मौलिक अधिकारों को देश के संविधान द्वारा लागू किया जाता है तथा संविधान द्वारा ही सुरक्षित किया जाता है।

साधारण कानूनी अधिकारों में विधानमंडल द्वारा परिवर्तन किये जा सकते हैं परंतु मौलिक अधिकारों में परिवर्तन करने के लिये संविधान में परिवर्तन आवश्यक हैं।

मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण
भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 12 से 35 तक किया गया है। इन अधिकारों में अनुच्छेद 12, 13, 33, 34 तथा 35 क संबंध अधिकारों के सामान्य रूप से है। 44 वें संशोधन के पास होने के पूर्व संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों को सात श्रेणियों में बांटा जाता था परंतु इस संशोधन के अनुसार संपति के अधिकार को सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया गया। भारतीय नागरिकों को छ्ह मौलिक अधिकार प्राप्त है :-

1. समानता का अधिकार : अनुच्छेद 14 से 18 तक।
2. स्वतंत्रता का अधिकार : अनुच्छेद 19 से 22 तक।
3. शोषण के विरुध अधिकार : अनुच्छेद 23 से 24 तक।
4. धार्मिक स्वतंत्रता क अधिकार : अनुच्छेद 25 से 28 तक।
5. सांस्कृतिक तथा शिक्षा सम्बंधित अधिकार : अनुच्छेद 29 से 30 तक।
6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार : अनुच्छेद 32

मूल अधिकार एक दृष्टि में
मूल अधिकार साधारण
अनुच्छेद 12 (परिभाषा)
अनुच्छेद 13 (मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियां।)

समता का अधिकार

अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समता)
अनुच्छेद 15 (धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध)
अनुच्छेद 16 (लोक नियोजन के विषय में अवसर की समता)
अनुच्छेद 17 (अस्पृश्यता का अंत)
अनुच्छेद 18 (उपाधियों का अंत)

स्वातंत्रय–अधिकार

अनुच्छेद 19 (वाक्–स्वातंत्र्य आदि विषयक कुछ अधिकारों का संरक्षण)
अनुच्छेद 20 (अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण)
अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतन्त्रता का संरक्षण)

शोषण के विरूद्ध अधिकार

अनुच्छेद 23 (मानव के दुर्व्यापार और बलात्श्रय का प्रतिषेध)
अनुच्छेद 24 (कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध)

धर्म की स्वतन्त्रता का अधिकार

अनुच्छेद 25 (अंत: करण की और धर्म के अबोध रूप में मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता)
अनुच्छेद 26 (धार्मिक कार्यों के प्रबंध की स्वतंत्रता)
अनुच्छेद 27 (किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करांे के संदाय के बारे में स्वतंत्रता)
अनुच्छेद 28 (कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के बारे में स्वतंत्रता)

संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार

अनुच्छेद 29 (अल्पसंख्यक वर्गों के हितों का संरक्षण)
अनुच्छेद 30 (शिक्षा संस्थाओं की स्थापना और प्रशासन करनेका अल्पसंख्यक वर्गों का अधिकार)
अनुच्छेद 31 (निरसति)

कुछ विधियों की व्यावृत्ति

अनुच्छेद 31क (संपदाओं आदि के अर्जन के लिए उपबंध करने वाली विधियों की व्यावृत्ति)
अनुच्छेद 31ख (कुछ अधिनियमों और विनिमयों का विधिमान्यकरण)
अनुच्छेद 31ग (कुछ निदेशक तत्वों को प्रभावी करने वाली विधियों की व्यावृत्ति)
अनुच्छेद 31घ (निरसित)

सांविधानिक उपचारों का अधिकार

अनुच्छेद 32 (इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को प्रवर्तित करने के लिए उपचार)
अनुच्छेद 32क (निरसति) ।
अनुच्छेद 33 (इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का, बलों आदि को लागू होने में, उपांतरण करने की संसद की शक्ति)
अनुच्छेद 34 (जब किसी क्षेत्र में सेना विधि प्रवृत्त है तब इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों का निर्बधन
अनुच्छेद 35 (इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान)

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