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आदि शंकराचार्य द्वारा रचित भवान्यष्टकम् स्तोत्र

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आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित भवान्यष्टकम् स्तोत्र।

आदि गुरु शंकराचार्य के चरणों में मेरा कोटि-कोटि प्रणाम।

न तातो न माता न बन्धुर्न दाता, न पुत्रो न पुत्री न भृत्यो न भर्ता।

न जाया न विद्या न वृत्तिर्ममैव, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।1।।

भवाब्धावपारे महादु:खभीरु:, प्रपात प्रकामी प्रलोभी प्रमत्त:।

कुसंसार-पाश-प्रबद्ध: सदाSहं, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।2।।

न जानामि दानं न च ध्यान-योगं, न जानामि तन्त्रं न च स्तोत्र-मन्त्रम्।

न जानामि पूजां न च न्यासयोगम्, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।3।।

न जानामि पुण्य़ं न जानामि तीर्थं, न जानामि मुक्तिं लयं वा कदाचित्।

न जानामि भक्तिं व्रतं वाSपि मातर्गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।4।।

कुकुर्मी कुसंगी कुबुद्धि कुदास:, कुलाचारहीन: कदाचारलीन:।

कुदृष्टि: कुवाक्यप्रबन्ध: सदाSहं, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।5।।

प्रजेशं रमेशं महेशं सुरेशं, दिनेशं निशीथेश्वरं वा कदाचित्।

न जानामि चाSन्यत् सदाSहं शरण्ये, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।6।।

विवादे विषादे प्रमादे प्रवासे, जले चाSनले पर्वते शत्रुमध्ये।

अरण्ये शरण्ये सदा मां प्रपाहि, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।7।।

अनाथो दरिद्रो जरा-रोगयुक्तो, महाक्षीणदीन: सदा जाड्यवक्त्र:।

विपत्तौ प्रविष्ट: प्रणष्ट: सदाSहं, गतिस्त्वं गतिस्त्वं त्वमेका भवानि।।8।।

।। इति श्रीमद शंकराचार्य कृत भवानिअष्टकम सम्पूर्ण।।

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