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हिन्दू धर्म में होली का महत्व

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हिन्दू धर्म में होली का बहुत महत्व है, होली का त्यौहार बच्चो से लेकर बड़ो तक सभी को इस Colourful Festival का बेसब्री से इन्तजार होता है । Holi का Festival दो दिन तक मनाया जता है पहले दिन रात में होलिका दहन किया जाता है और फिर दुसरे दिन रंग – बिरंगे रंगों के साथ होली खेली जाती है । इस दिन को धुलेंडी के नाम से भी जानते है । होली वाले दिन सभी अपने Family, Friends, Relatives के साथ मिलकर धूम – धाम से होली मनाते है और घरो में मिठाइयाँ, गुझियाँ, नमकीन और पकवान बनाये जाते है । और होलिका दहन के दिन होली की पूजा भी की जाती है ।

हिन्दू धर्म में होली का बहुत महत्व है, बुराई पर अच्छाई की जीत के इस पर्व में जितना महत्व रंगों का है, उतना ही होलिका दहन का भी है। ये मान्यता है कि विधि विधान से होलिका पूजा और दहन करने से दुखों का नाश होता है। इच्छाओं के पूर्ण होने का वरदान मिलता है।

 

होलिका के साथ पुराणिक कथा जोड़ी है की दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा की उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु भगवन का भक्त है, किसी और भगवन को नहीं मानता, सिर्फ उनके ही गुण गाते है तो वह क्रोधित हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाएं; क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि से कोई खतरा नहीं है।

होलिका प्रह्लाद को अपनी गोद में लेकर बैठ गई और अग्नि में कूद गई। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत, होलिका जलकर भस्म हो गयी और विष्णु भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ. इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है. होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने सच्चे भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं। यह परंपरा समाज में भक्ति, ईश्वर पर आस्था, और अच्छाई के प्रतीक के रूप में मानी जाती है।

होलिका पूजा और दहन में परिक्रमा बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है. कहते हैं परिक्रमा करते हुए अगर अपनी इच्छा कह दी जाए तो वो सच हो जाती है.परिक्रमा के अलावा होलिका दहन में उपलों को जलाना भी होता है बेहद जरूरी और शुभ माना जाता है। इस दिन बुराई, अहंकार और नकारात्मक शक्तियों को पवित्र आग में जलाकर समाप्त किया जाता है। जिससे घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती हैं।

होली सिर्फ एक त्योहार या परंपरा ही नहीं है, बल्कि यह पर्यावरण से लेकर आपकी सेहत के लिए भी बेहद महत्वपूर्ण है। होली मनाने का धार्मिक कारण तो आप जानते ही हैं,होली का त्योहार साल में ऐसे समय पर आता है जब मौसम में बदलाव के कारण लोग आलसी से होते हैं।

शरीर की इस सुस्ती को दूर भगाने के लिए ही लोग फाग के इस मौसम में न केवल जोर से गाते हैं बल्कि बोलते भी थोड़ा जोर से हैं।ठंडे मौसम के गर्म रुख अख्तियार करने के कारण शरीर का कुछ थकान और सुस्ती महसूस करना प्राकृतिक है।

ये सभी बातें मानवीय शरीर को नई ऊर्जा प्रदान करती हैं। इसके अतिरिक्त रंग और अबीर में जब शरीर पर डाला जाता है तो इसका उस पर अनोखा प्रभाव होता है।इस मौसम में बजाया जाने वाला संगीत भी बेहद तेज होता है।

सनातन धर्म के अनुसार, होली पर शरीर पर ढाक के फूलों से तैयार किया गया रंगीन पानी, विशुद्ध रूप में अबीर और गुलाल डालने से शरीर पर इसका सुकून देने वाला प्रभाव पड़ता है और यह शरीर को ताजगी प्रदान करता है।

जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि गुलाल या अबीर शरीर की त्वचा को उत्तेजित करते हैं और पोरों में समा जाते हैं और शरीर के आयन मंडल को मजबूती प्रदान करने के साथ ही स्वास्थ्य को बेहतर करते हैं और उसकी सुदंरता में निखार लाते हैं।

होली का त्योहार मनाने का एक और वैज्ञानिक कारण है। हालांकि यह होलिका दहन की परंपरा से जुड़ा है। शरद ऋतु की समाप्ति और बसंत ऋतु के आगमन का यह काल पर्यावरण और शरीर में बैक्टीरिया की वृद्धि को बढ़ा देता है लेकिन जब होलिका जलाई जाती है तो उससे करीब 145 डिग्री फारेनहाइट तक तापमान बढ़ता है।

पहले रावण दहन के पीछे लगे, वहां ब्राह्मणवाद दिखा। लेकिन रावण तो खुद ब्राह्मण था। अब होलिका दहन पर आ रहे। हिरण्यकश्यप कश्यप ऋषि का पुत्र था, कश्यप ऋषि अपने कर्म से ब्राह्मण थे। हिरण्यकश्यप और उसके सौतेले भाई इन्द्र कर्म से क्षत्रिय। एक दिती पुत्र दैत्य, दूसरा अदिति पुत्र आदित्य। उसका बेटा भक्त प्रह्लाद बाद में दैत्यों का राजा बने। दैत्यराज महाबली प्रह्लाद के पोते थे। दैत्य देवताओं से लड़ते रहते थे, ताकि खुद हर कुछ में राज कर सके। प्रह्लाद और महाबली महान राजा थे, पूर्ण रूप से वैदिक। दैत्य वरदान शिव और ब्रह्मा से ही तो लेते थे। अगर इन्द्र आर्य तो हिरण्यकश्यप और उसके वंशज भी आर्य। अगर हिरण्यकश्यप मूलनिवासी तो प्रह्लाद भी मूलनिवासी, जिसको उसकी बुआ ने आग लगा कर मारने की कोशिश की। हम होलिका जला इसलिए खुश होते है क्योंकि हमारे देवता सम राजा प्रह्लाद जीवित बच गए। होलिका को भी लोग माता बोल संबोधित करते है, और उनकी पूजा होती है।

होलाष्टक कब से शुरू है ?
होलाष्टक होली से आठ दिन पहले शुरू हो जाता है। होलाष्टक दौरान मांगलिक और शुभ कार्य वर्जित होते हैं। शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का प्रारंभ पंचांग के अनुसार,16 मार्च को रात 9 बजकर 39 मिनट से होगा और शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि का समापन 17 मार्च को सुबह 9 बजकर 53 मिनट पर होगा। ऐसे में 17 मार्च से होलाष्टक की शुरुआत होगी और 24 मार्च को समाप्त होगी।

होलाष्टक में भी नहीं होते शुभ कार्य / खरमास में वर्जित कार्य
17 मार्च से होलाष्टक भी शुरू हो चुका है। होलिका दहन से ठीक 8 दिन पहले से होलाष्टक शुरू हो जाता है। इस दौरान धार्मिक और शुभ कार्य नहीं किए जाते और सभी तरह के धार्मिक और शुभ कामों होलिका दहन तक पर पूरी तरह से रोक लग जाती है। 24 मार्च होलाष्टक को समाप्त होंगे।

क्यों नहीं किया जाता शुभ काम होलाष्टक के दौरान ?
शुभ कार्यों के लिए होलाष्टक के समय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी आठ ग्रहों का स्वभाव उग्र हो हो जाने से शुभ कार्यों के लिए ग्रहों की स्थिति अच्छी नहीं मानी जाती।इन ग्रहों के उग्र होने से मनुष्य की कोई निर्णय लेने की क्षमता भी कमजोर पड़ जाती है। ऐसे में मनुष्य अपने स्वभाव के विपरीत फैसला करता है, जिसके चलते कई तरह की परेशानियां जीवन में झेलनी पड़ती हैं। चंद्रमा उग्र होलाष्टक के पहले दिन होते हैं। नवमी तिथि पर सूर्य, दशमी तिथि पर शनि, एकादशी तिथि पर शुक्र, द्वादशी तिथि पर बृहस्पति, त्रयोदशी तिथि पर बुध, चतुर्दशी तिथि पर मंगल और पूर्णिमा तिथि पर राहू ग्रह का स्वभाव उग्र रहता है।

होलिका दहन शुभ मुहूर्त 2024 / होलिका दहन कब है ?

होलिका दहन होली से एक दिन किया जाता है। होलिका दहन का समय पंचांग के अनुसार 24 मार्च को रात 11 बजकर 13 मिनट से लेकर 12 बजकर 27 मिनट तक होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है। इस अवधि के दौरान होलिका दहन किया जाएगा।

होलिका दहन की पूजा विधि
पूजा वाले स्थान पर होलिका दहन से पहले स्नान करके उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं। फिर होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं गाय के गोबर से बनाकर थाली में नारियल, अक्षत, फल, रोली, साबुत हल्दी, बताशे, कच्चा सूत, फूल, मूंग और कलश में पानी भरकर रख लें। इसके बाद होलिका की पूजा करें और पूजा की सामग्री को अर्पित करें। साथ ही पांच अनाज विष्णुजी और भगवान नरसिंह का नाम लेकर अर्पित करें। फिर अनाज के दाने और फूल प्रह्लाद का नाम लेकर अर्पित करें।इसके बाद होलिका की परिक्रमा सात कच्चा सूत लेकर करें और अंत में जल गुलाल डालकर अर्पित करें। होलिका दहन के बाद उसमें कच्चे आम, नारियल, मुट्टे, मूंग, चना, सप्तधान्य, चावल आदि चीजें अर्पित कर दें।

होली का महत्व
ऊंच-नीच, गरीबी अमीरी का भेदभाव होली का पर्व समाज से खत्म करता है और एक दूसरे को इस दिन रंग लगाकर गिले शिकवे भूला गले मिलते हैं। दो दिन होली का पर्व मनाया जाता है, पहले दिन होलिका दहन और दूसरे दिन प्रियजनों और परिवार को अबीर गुलाल लगाया जाता है। और गुझिया खिलाकर मुंह मीठा किया जाता है। होली के मौके पर घर घर पकवान बनाए जाते हैं ।

होली के दिन चंद्र ग्रहण
पहला चंद्र ग्रहण भी होली के दिन साल का लगने जा रहा है। 25 मार्च को सुबह 10 बजकर 23 मिनट से चंद्र ग्रहण शुरू होगा और दोपहर 3 बजकर 2 मिनट तक चंद्र ग्रहण रहेगा। हालांकि भारत में यह ग्रहण दिखाई नहीं देगा इसलिए होली पर इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा।

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