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मेवाड़ महाराणा अमरसिंह का इतिहास – चीताखेड़े का युद्ध

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भानुसिंह मुगल बादशाह अकबर का सिपहसालार था | देवलिया के रावत भानुसिंह का विवाह ईडर के राय नारायणदास राठौड़ की पुत्री से हुआ था | राय नारायणदास की दूसरी पुत्री का विवाह महाराणा प्रताप से हुआ था |

मेवाड़ के महाराज शक्तिसिंह जी के पुत्र जोधसिंह शक्तावत को महाराणा अमरसिंह ने मोखण, कराडिया, कुंडल की सादड़ी, नीमच, जीरण गांव जागीर में दिए और कहा कि इनमें से जिन-जिन गांवों पर मुगल आधिपत्य है, उन्हें अपने अधिकार में लाओ।

जोधसिंह शक्तावत ने देवलिया के गांवों को लूटना शुरु किया व नीमच से चौथ (एक प्रकार का कर) मांगने लगे | देवलिया व नीमच के ये क्षेत्र मुगल आधीन थे, रावत भानुसिंह ने जीरण और मन्दसौर के शाही फौजदारों को जोधसिंह के खिलाफ भडकाया |

जोधसिंह शक्तावत द्वारा की गई लूटमार के लिए मन्दसौर के मुस्लिम फौजदार मक्खन खां ने मेवाड़ नरेश महाराणा अमरसिंह से शिकायत की, लेकिन महाराणा ने जोधसिंह के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की, क्योंकि मुगल आधीन प्रदेशों में लूटमार से महाराणा अमरसिंह खुश थे |

रावत भानुसिंह स्वयं महाराणा के दरबार में जोधसिंह की शिकायत करने आया, जहां जोधसिंह व भानुसिंह में बहस हो गई | महाराणा अमरसिंह ने बीच-बचाव करके भानुसिंह को वहां से जाने को कहा |

महाराणा अमरसिंह की स्वीकृति से जोधसिंह ने मुगल आधीन प्रदेशों में लूटमार जारी रखी | रावत भानुसिंह व मक्खन खां ने 1500 सवारों की सम्मिलित फौज के साथ जोधसिंह शक्तावत पर अचानक आक्रमण कर दिया |

नवम्बर-दिसम्बर, 1597 ई. जोधसिंह शक्तावत की फौज में उस वक़्त मात्र 200 पैदल व 100 सवार थे | चीताखेड़े गांव के नजदीक लड़ाई हुई | जोधसिंह की हार तय थी, लेकिन भाग्य ने बहादुरों का साथ दिया | इस लड़ाई में भानुसिंह व मक्खन खां दोनों ही मारे गए, लेकिन जोधसिंह शक्तावत भी काम आए | इस तरह ये युद्ध अनिर्णित रहा |

जीरण में रावत भानुसिंह की छतरी बनी हुई है |

इस लड़ाई की ख़बर लाहौर में बैठे मुगल बादशाह अकबर को मिली, तो उसने फौजी हुक्म जारी करके जीरण और नीमच के परगनों पर पूरी तरह कब्जा कर लिया और ये परगने रामपुरा के राव दुर्गा सिसोदिया को दे दिए, जो कि 1567 ई. से अकबर का सिपहसालार था |

महाराणा अमरसिंह ने भानुसिंह के छोटे भाई सिंहा को गद्दीनशीनी का टीका भेजकर आश्वासन दिया और साथ ही चेतावनी भी दी कि जोधसिंह शक्तावत के पुत्रों नाहर और भाखरसी का जिन गाँवों पर अधिकार है, उनमें दखल ना दिया जावे | अकबर द्वारा मेवाड़ के इन 2 परगनों पर की गई दखलअंदाज़ी महाराणा अमरसिंह को रास न आई और जवाबी कार्रवाई में महाराणा ने गुजरात के कुछ शाही प्रदेश लूट लिए |

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