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मेवाड़ के कुंवर संग्रामसिंह (राणा सांगा) ने अपने संघर्ष के दिनों में अपनी पहचान छिपाकर आम सैनिक की हैसियत से अजमेर के निकट श्रीनगर के ठाकुर करमचन्द पंवार के यहां रहना शुरु किया।
एक दिन ठाकुर कर्मचंद फौज समेत लौट रहे थे, तब एक जंगल में विश्राम करने के लिए रुक गए। कुंवर संग्रामसिंह बड़ के पेड़ के नीचे घोड़ा बांधकर सो रहे थे, तभी एक साँप ने कुंवर को धूप से बचाने के लिए उनके ऊपर फन से छाया कर दी।
ये दृश्य ठाकुर कर्मचंद के साथी राजपूतों में से जयसिंह बालेचा और जामा सींधल ने देखा तो हैरान रह गए। ये दोनों ठाकुर कर्मचंद को भी बुला लाए। ये नज़ारा जब ठाकुर कर्मचन्द ने देखा, तो उन्होंने कुंवर संग्रामसिंह से उनका परिचय पूछा।
कुँवर संग्रामसिंह ने कहा कि “मैं सिसोदिया राजपूत हूँ और संग्रामसिंह मेरा नाम है। आपको मेरे बारे में इससे ज्यादा जानने की जरूरत नहीं होनी चाहिए”
ठाकुर कर्मचंद समझ गए कि ये अवश्य ही महाराणा रायमल के पुत्र कुँवर संग्रामसिंह हैं, जिनका बहुत दिनों से कोई अता-पता नहीं है। ठाकुर कर्मचंद ने कहा कि “हम जानते हैं कि आप महाराणा रायमल के पुत्र हैं। हम भी राजपूत हैं, आपको हमसे पहचान छुपाने की आवश्यकता नहीं है। अगर कुँवर पृथ्वीराज आपको मारने के लिए आवेंगे तो हम सैंकड़ों राजपूत आपके ख़ातिर मर मिटेंगे”
यह सुनकर कुँवर संग्रामसिंह ने भी असलियत बता दी। फिर ठाकुर कर्मचंद कुँवर संग्रामसिंह को श्रीनगर लेकर आए और अपनी पुत्री का विवाह उनसे करवा दिया।
पोस्ट लेखक :- तनवीर सिंह सारंगदेवोत