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दक्षिण एशिया का प्रख्यात अंकोरवाट मन्दिर कंबोडिया

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आज के समय में अंगकोर वाट दक्षिण एशिया के प्रख्यात और अत्याधिक प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों में से एक है। अंकोरवाट (खमेर भाषा : អង្គរវត្ត) कम्बोडिया में एक मन्दिर परिसर और दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक है, 162.6 हेक्टेयर (1,626,000 वर्ग मीटर; 402 एकड़) को मापने वाले एक साइट पर। यह एक हिन्दू मन्दिर है। अंकोरवाट मन्दिर अंकोरयोम नामक नगर में स्थित है, जिसे प्राचीन काल में यशोधरपुर कहा जाता था। अंकोरवाट जयवर्मा द्वितीय के शासनकाल (1181-1205 ई.) में कम्बोडिया की राजधानी था।

कंबोडिया एक देश है जो दक्षिण पूर्व एशिया के मुख्य भूमि में स्थित है जिसकी सीमा से सटे देश थाइलैंड, लाओस, वियतनाम, ओर थाईलैंड की खाड़ी है। कंबोडिया स्थित अंगकोर वाट के विषय में 13वीं शताब्दी में एक चीनी यात्री का कहना था कि इस मंदिर का निर्माण महज एक ही रात में किसी अलौकिक सत्ता के हाथ से हुआ था। यह सब तो इस महल रूपी मंदिर से जुड़ी लोक कहानियां हैं, असल में इस मंदिर का इतिहास बौद्ध और हिन्दू दोनों ही धर्मों से बहुत निकटता से जुड़ा है। अंकोरवाट मन्दिर के बारे में कहा जाता है कि स्वयं देवराज इन्द्र ने महल के तौर पर अपने बेटे के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया था।

अंगकोर वाट मंदिर का इतिहास
अंगकोर वाट नामक विशाल मंदिर का संबंध पौराणिक समय के कंबोदेश और आज के कंबोडिया से है। यह मंदिर मौलिक रूप से हिन्दू धर्म से जुड़ा पवित्र स्थल है, जिसे बाद में बौद्ध रूप दे दिया गया। इतिहास पर नजर डाली जाए तो करीब 27 शासकों ने कंबोदेश पर राज किया, जिनमें से कुछ शासक हिन्दू और कुछ बौद्ध थे। शायद यही वजह है कि कंबोडिया में हिन्दू और बौद्ध दोनों से ही जुड़ी मूर्तियां मिलती हैं।

कंबोडिया में बौद्ध अनुयायियों की संख्या अत्याधिक है इसलिए जगह-जगह भगवान बुद्ध की प्रतिमा मिल जाती है। लेकिन अंगकोर वाट के अलावा शायद ही वहां कोई ऐसा स्थान हो जहां ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की मूर्तियां एक साथ हों। इस मंदिर की सबसे बड़ी खास बात यह भी है कि यह विश्व का सबसे बड़ा विष्णु मंदिर भी है। इसकी दीवारें रामायण और महाभारत जैसे विस्तृत और पवित्र धर्मग्रंथों से जुड़ी कहानियां कहती हैं।

दुनिया के सात अजूबों में से एक

विश्व धरोहर के रूप से पहचाने जाने वाले इस मंदिर को 12 शताब्दी में खमेर वंश से जुड़े सूर्यवर्मन द्वितीय नामक हिन्दू शासक ने बनवाया था। लेकिन चौदहवीं शताब्दी तक आते-आते यहां बौद्ध धर्म से जुड़े लोगों का शासन स्थापित हो गया और मंदिर को बौद्ध रूप दे दिया गया। बौद्ध रूप ग्रहण करने के काफी सालों बाद तक इस मंदिर की पहचान लगभग खोई रही लेकिन फिर एक फ्रांसीसी पुरात्वविद की नजर इस पर पड़ी और उसने फिर से एक बार दुनिया के सामने इस बेशकीमती और आलीशान मंदिर को प्रस्तुत किया। बहुत से लोग इस मंदिर को दुनिया के सात अजूबों में से एक करार देते हैं।

थेरवाद के बौद्ध साधुओं ने की देखभाल
भारत के राजनैतिक और धार्मिक अवधारणा के आधार पर ही अंगकोर नगरी का निर्माण हुआ था। इसके अलावा अंगकोर मंदिर के निर्माण के पीछे इसे बनवाने वाले राजा का एक खास मकसद भी जुड़ा हुआ था। दरअसल राजा सूर्यवर्मन हिन्दू देवी-देवताओं से नजदीकी बढ़ाकर अमर बनना चाहता था। इसलिए उसने अपने लिए एक विशिष्ट पूजा स्थल बनवाया जिसमें ब्रह्मा, विष्णु, महेश, तीनों की ही पूजा होती थी। आज यही मंदिर अंगकोर वाट के नाम से जाना जाता है।

इसी दौरान अंगकोर और खमेर साम्राज्य पर आक्रमण बढ़ने लगे। 16वीं शताब्दी के आगमन से पहले ही अंगकोर का सुनहरा अध्याय लगभग समाप्त हो गया और अन्य भी बहुत से प्राचीन मंदिर खंडहर में तब्दील हो गए।15वीं शताब्दी से लेकर 19वीं शताब्दी ईसवी तक थेरवाद के बौद्ध साधुओं ने अंगकोर वाट मंदिर की देखभाल की, जिसके परिणामस्वरूप कई आक्रमण होने के बावजूद इस मंदिर को ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा।

बाद की सदियों में अंगकोर वाट गुमनामी के अंधेरे में लगभग खो सा गया था। 19वीं शताब्दी के मध्य में एक फ्रांसीसी अंवेषक और प्रकृति विज्ञानी हेनरी महोत ने अंगकोर की गुमशुदा नगरी को फिर से ढूंढ़ निकाला। वर्ष 1986 से लेकर वर्ष 1993 तक भारत के पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस मंदिर के संरक्षण का जिम्मा संभाला था।

दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर
भारत में एक से बढ़कर एक विशाल और भव्य मंदिर हैं, जो इतिहास की रोचक कहानियां बयां करते हैं, लेकिन क्या आपको पता है कि कंबोडिया में दुनिया का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है? इसे अंकोरवाट मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर अंकोरयोम नामक नगर में स्थित है, जिसे प्राचीन काल में यशोधरपुर कहा जाता था। यह विशाल भव्य मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है, जिसका निर्माण कम्बुज के राजा सूर्यवर्मा द्वितीय ने 12वीं सदी में कराया था। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इस मंदिर के चारों ओर एक गहरी खाई है, जिसकी लंबाई ढाई मील और चौड़ाई 650 फुट है। इस खाई को पार करने के लिए एक पत्थर का पुल बनाया गया है।

अंकोरवाट मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों में से एक है। इस प्राचीन मंदिर की दीवारों पर भारतीय हिंदू धर्म ग्रंथों के प्रसंगों का विस्तार से चित्रण किया गया है। इसमें असुरों और देवताओं के बीच हुए समुद्र मंथन का दृश्य भी दिखाया गया है। यह मंदिर एक ऊंचे चबूतरे पर स्थित है, जिसमें तीन खंड हैं। इन तीनों खंडों में सुंदर मूर्तियां बनाई गई हैं और प्रत्येक खंड से ऊपर के खंड तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां भी बनाई गई हैं। प्रत्येक खंड में आठ गुंबज हैं और ये सभी गुंबज 180 फुट ऊंचे हैं। मुख्य मंदिर तीसरे खंड की छत पर स्थित है।

इस मंदिर की विशालता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि मंदिर में प्रवेश के लिए एक विशाल द्वार बनाया गया है जो लगभग 1000 फुट चौड़ा है। मंदिर साढ़े तीन किलोमीटर लंबी पत्थर की दीवारों से घिरा हुआ है। इस दीवार के बाद 700 फुट चौड़ी खाई है, जिसपर एक जगह 36 फुट चौड़ा पुल है। इस पुल से मंदिर के पहले खंड द्वार तक पहुंचा जा सकता है।

आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में कुछ खास बातें…
कंबोडिया के मशहूर हिन्दू मंदिर अंगकोर वाट में शालीन कपड़े पहनने वाले दर्शकों के लिए प्रवेश निषिद्ध किया जा रहा है।
यहां की दीवारों पर छपे चित्र और मूर्तियां हिन्दू धर्म के गौरवशाली इतिहास को बयां करती हैं।
मंदिरों के अलावा यहां बौद्ध मठ भी हैं। यह परिसर यूनेस्को की विश्व संपदा की सूची में है।
अंगकोर वाट की दीवारें रामायण और महाभारत की कहानियाँ कहती हैं।
यहाँ सीताहरण, हनुमान का अशोक वाटिका में प्रवेश, अंगद प्रसंग, राम-रावण युद्ध, महाभारत जैसे अनेक दृश्य बेहद बारीकी से उकेरे गए हैं।
अंगकोर वाट मंदिर परिसर में दुनिया के मशहूर हिन्दू मंदिर है जो कि भगवान विष्णु को समर्पित है।
कंबोडिया के अंकोर में स्थित अंगकोर वाट मंदिर का पुराना नाम ‘यशोधरपुर’ था।
यह मंदिर कंबोडिया के मीकांक नदी के किनारे बना है।
मंदिर को यूनेस्को ने भी विश्व विरासत में शामिल किया है।
यह मंदिर एक चबूतरे पर बना है जिसमें तीन खंड है। यहां बने गुम्बज की लम्बाई लगभग 180 फिट है।
अंकोर क्षेत्र में करीब 1000 से अधिक छोटे-बड़े मंदिर हैं।

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