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सहस्रलिंग तीर्थ : कर्नाटक के इस नदी में एक साथ बने है हज़ारों शिवलिंग

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थले पानी के बीच शिवलिंग और मूर्तियां दिख रही हैं. जिनको देखने से लगता है कि ये प्राचीन काल की कला है. लेकिन शिव की महिमा को कौन नहीं जानता, लेकिन यहां सिर्फ एक या दो शिव नहीं है बल्कि हजारों शिव हैं। दरअसल इन आकृतियों को सहस्रलिंग कहा जाता है. शलमाला नदी में एक साथ बने है हज़ारों शिवलिंग। ये अपने आप में एक आश्चर्य है। यहां बने शिवलिंगों को नदी निरन्तर अभिषेक करती रहती है। कर्नाटक के एक शहर सिरसी से 14 किलोमीटर दूर स्थित ये सहस्रलिंग एक तीर्थ स्थल है. यही पर शलमाला नाम की नदी बहती है। यह नदी अपने आप में खास है क्योंकि इस नदी में एक साथ हजारों शिवलिंग बने हुए हैं।

ये सभी शिवलिंग नदी की चट्टानों पर बने हुए हैं। यहां हर साल महाशिवरात्री पर भारी मेला लगता है। यहां की चट्टानों में शिवलिंगो के साथ-साथ नंदी, सांप आदी भगवान शिव के प्रियजनों की भी आकृतियां भी बनी हुई हैं। हजारों शिवलिंग एक साथ होने की वजह से इस स्थान का नाम सहस्त्रलिंग पड़ा।

अब सुनो किसने और कब बनवाया शिवलिंग और मूर्तियां। मान्यताओं के अनुसार, 16 वीं सदी में सिरसी राज्य का राजा हुआ करते थे सदाशिवराय वर्मा। वे भगवान शिव के बड़े भक्त थे। शिव भक्ति में डूबे रहने की वजह से वे भगवान शिव की अद्भुत रचना का निर्माण करवाना चाहते थे।

उन्होंने ही शलमाला नदी के इन पत्थरों और चट्टानों पर ये आकृतियां बनवाईं. इन आकृतियों में शिवलिंग के अलावा जानवर भी दिखते हैं. खास तौर से बैल, इसको नंदी मानकर चलते हैं जो कि शिव की सवारी है. ऐसा लगता है की यहाँ बर्षो से शिव की पूजा की जा रही हो !

भगवान शिव और उनके प्रियजनों की हजारों आकृतियां राजा ने बनवा दीं। नदी के बीच में स्थित होने की वजह से सभी शिवलिंगों का अभिषेक और कोई नहीं बल्कि खुद शलमाला नदी के द्वारा किया जाता है। इसलिए यहाँ शिवरात्रि व श्रावण में उमड़ता है भक्तों का सेलाब।

माना जाता है कि इनके बनने का समय 1678 से 1718 तक का है. हजारों की संख्या में ये शिवलिंग नदी का जलस्तर घटते ही दिखने लगते हैं। वैसे तो इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए यहां पर रोज ही अनेक भक्तों का आना-जाना लगा रहता है, लेकिन शिवरात्रि व श्रावण के सोमवार पर यहां भक्त विशेष रूप आते हैं। यहां पर आकर भक्त एक साथ हजारों शिवलिंगों के दर्शन और अभिषेक का लाभ उठाते हैं। वैसे यहां जाने के लिए नवंबर से मार्च का समय सबसे अच्छा माना जाता है।

कर्नाटक के इन शिवलिंगों की जानकारी के अलावा एक ऐसी ही जानकारी बोनस में ले जाइए. ऐसे ही हजार शिवलिंग कंबोडिया में भी हैं जिनको 1969 में जीन बोलबेट ने खोजा था. जीन मनुष्य जाति से जुड़े रहस्य खोजने में लगे रहते हैं. ये राजा सूर्यवर्मन प्रथम के टाइम पर बनना शुरू हुए और राजा उदयादित्य वर्मन के टाइम पर बनकर तैयार हुए. इन राजाओं ने 11वीं और 12वीं सदी में वहां राज किया था. ये वाले सहस्रलिंग कंबोडिया के प्रसिद्ध अंगकोर वाट मंदिर से कुछ दूरी पर भी मौजूद हैं।

इस मंदिर से करीब 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित केब्ल स्पीन एक नदी है उसी के नाम पर यह स्थान है जहाँ पर पत्थरों पर देव आकृतियां हैं।

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