छोड़कर सामग्री पर जाएँ

भगवान शिव साधक के लिए शिव मुद्राएँ

टैग्स:
इस ख़बर को शेयर करें:

  • डमरुमुद्रा – हल्की मुट्ठी बाँधकर मध्यमाओं को थोड़ा ऊपर उठाये। फिर दाहिनी को कान तक उठाये। यह डमरू मुद्रा हैं जो सब विघ्नों का विनाश करती हैं।
  • त्रिशूलमुद्रा – कनिष्ठिकाओं को अँगूठों से बाँधकर शेष उँगलियों को सीधा रक्खें। यह त्रिशूल मुद्रा हैं।मन को एकाग्र करती है
  • अक्षमाला मुद्रा – अँगूठों और तर्जनियों के अग्रभाग को मिलाये। दोनों हाथों की शेष तीन-तीन उँगलियों को परस्पर ग्रथित करके सीधा करे। यह अक्षमाला मुद्रा हैं। विकार का स्वतः ही नाश कर ध्यान प्रदान करती है ।
  • अभय मुद्रा – बाँयें हाथ को उठाये और हथेली खुली रक्खें। यह अभय मुद्रा हैं।
  • वरमुद्रा – दाहिनी हथेली को अधोमुख करके हाथ फैलायें।
  • मृगमुद्रा – अनामिका और अँगूठे को मिलाकर उस पर मध्यमा को भी रक्खे। शेष दो उंगलियों को ऊपर की ओर सीधा खड़ा करे। यह मृग मुद्रा हैं।
  • खट्वाङ्गमुद्रा – दाहिने हाथ की सभी उँगलियों को मिलाकर ऊपर उठाये। यह शिव की अत्यन्त प्रिय खट्वाङ्ग मुद्रा हैं।
  • लिङ्गमुद्रा – दाहिने हाथ के अँगूठे को ऊपर उठाकर उसे बायें अँगूठे से बाँधे । उसके बाद दोनों हाथों की उँगलियों को परस्पर बाँधे। यह शिवसान्निध्यकारक लिङ्ग मुद्रा हैं।
  • योनिमुद्रा – दोनों कनिष्ठिकाओं को, तथा तर्जनी और अनामिकाओं को बाँधे । अनामिका को मध्यमा से पहले किञ्चित् मिलाये और फिर उन्हें सीधा कर दे। अब दोनों अँगूठों को एक दूसरे पर रक्खे यह योनि मुद्रा कहलाती हैं।
गणेश मुखी रूद्राक्ष पहने हुए व्यक्ति को मिलती है सभी क्षेत्रों में सफलता एलियन के कंकालों पर मैक्सिको के डॉक्टरों ने किया ये दावा सुबह खाली पेट अमृत है कच्चा लहसुन का सेवन श्रीनगर का ट्यूलिप गार्डन वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में हुआ दर्ज महिला आरक्षण का श्रेय लेने की भाजपा और कांग्रेस में मची होड़