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- डमरुमुद्रा – हल्की मुट्ठी बाँधकर मध्यमाओं को थोड़ा ऊपर उठाये। फिर दाहिनी को कान तक उठाये। यह डमरू मुद्रा हैं जो सब विघ्नों का विनाश करती हैं।
- त्रिशूलमुद्रा – कनिष्ठिकाओं को अँगूठों से बाँधकर शेष उँगलियों को सीधा रक्खें। यह त्रिशूल मुद्रा हैं।मन को एकाग्र करती है
- अक्षमाला मुद्रा – अँगूठों और तर्जनियों के अग्रभाग को मिलाये। दोनों हाथों की शेष तीन-तीन उँगलियों को परस्पर ग्रथित करके सीधा करे। यह अक्षमाला मुद्रा हैं। विकार का स्वतः ही नाश कर ध्यान प्रदान करती है ।
- अभय मुद्रा – बाँयें हाथ को उठाये और हथेली खुली रक्खें। यह अभय मुद्रा हैं।
- वरमुद्रा – दाहिनी हथेली को अधोमुख करके हाथ फैलायें।
- मृगमुद्रा – अनामिका और अँगूठे को मिलाकर उस पर मध्यमा को भी रक्खे। शेष दो उंगलियों को ऊपर की ओर सीधा खड़ा करे। यह मृग मुद्रा हैं।
- खट्वाङ्गमुद्रा – दाहिने हाथ की सभी उँगलियों को मिलाकर ऊपर उठाये। यह शिव की अत्यन्त प्रिय खट्वाङ्ग मुद्रा हैं।
- लिङ्गमुद्रा – दाहिने हाथ के अँगूठे को ऊपर उठाकर उसे बायें अँगूठे से बाँधे । उसके बाद दोनों हाथों की उँगलियों को परस्पर बाँधे। यह शिवसान्निध्यकारक लिङ्ग मुद्रा हैं।
- योनिमुद्रा – दोनों कनिष्ठिकाओं को, तथा तर्जनी और अनामिकाओं को बाँधे । अनामिका को मध्यमा से पहले किञ्चित् मिलाये और फिर उन्हें सीधा कर दे। अब दोनों अँगूठों को एक दूसरे पर रक्खे यह योनि मुद्रा कहलाती हैं।
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