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क्या आदिवासी हिन्दू हैं या फिर उनका अपना धर्म है?

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भारत के प्रमुख आदिवासी समुदायों में गोंड, मुंडा, खड़िया, हो, बोडो, भील, खासी, सहरिया, संथाल, मीणा, उरांव, परधान, बिरहोर, पारधी, आंध, टाकणकार आदि ये लोग भी इसी माटी में पले-बढे हुए है और इसी संस्कृति का हिस्सा है। आप रीती-रिवाज देख ले , आप नामांकरण देख ले , आप उन लोगो के संस्कार देख ले , पूजा पद्यति देख ले आपको प्रकृति को मानने वाला गंध आयेगी।

यह है उज्जैन जिले में स्थित फर्नाजी का किला जो पृथ्वीराज चौहान के ज़माने का बताया जाता है और इसी में स्थित है भैरव एवं देवनारायण मन्दिर , भील आदिवासियों का पवित्र स्थल। दीपावली के बाद यहाँ १० दिन का मेला लगता है और बड़ी संख्या में आदिवासी यहाँ आते है ।

फिर बंजारा समाज की बात कर ले जो अपना जन्म सम्बन्ध उत्तर भारत के ब्राह्मण अथवा क्षत्रिय वर्ण से जोड़ते हैं। इनके देवी-देवताओं की लम्बी तालिका में प्रथम स्थान मरियाई या महाकाली का है (मातृदेवी का विकराल रूप)। अन्य हैं- गुरु नानक, बालाजी या कृष्ण का बालरूप, तुलजा भवानी (दक्षिण भारत की प्रसिद्ध तुलजापुर की भवानी माता), शिव भैया, सती, मिट्ठू भूकिया आदि।

फिर गोंड समाज का भी अपना गौरवशाली इतिहास रहा है और उनके अपने राजयवंश भी। गोंडो का भारत की जनजातियों में महत्वपूर्ण स्थान है जिसका मुख्य कारण उनका इतिहास है। 15वीं से 17वीं शताब्दी के बीच गोंडवाना में अनेक गोंड राजवंशों का दृढ़ और सफल शासन स्थापित था।

इन शासकों ने बहुत से दृढ़ दुर्ग, तालाब तथा स्मारक बनवाए और सफल शासकीय नीति तथा दक्षता का परिचय दिया। इनके शासन की परिधि मध्य भारत से पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार तक पहुँचती थी। 15 वीं शताब्दी में चार महत्वपूर्ण गोंड साम्राज्य थे।

जिसमें खेरला, गढ मंडला, देवगढ और चाँदागढ प्रमुख थे। गोंड राजा बख्त बुलंद शाह ने नागपुर शहर की स्थापना कर अपनी राजधानी देवगढ से नागपुर स्थानांतरित किया था |गोंडवाना की प्रसिद्ध रानी दुर्गावती गोंड राजवंश की रानी थी।

भारत में देवी-देवता तो हर गाँव के अपने अलग होते थे , गाँव का खेड़ापति होता था , गामदेवी होती थी , यहाँ तक की हर घर का एक कुल देव या कुलदेवी होती थी। तो कोई आश्चर्य नहीं की हर समाज के अपने देवी-देवता हो , एक अलग विधि-विधान हो , मगर यह कह देना कि वे बृहद हिन्दू समाज का हिस्सा नहीं है , जो विघटन कि राजनीति आजकल देश में चल रही है , उसी का हिस्सा है।

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