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प्रजा की स्वतंत्रता के लिए मेवाड़ धरा पर स्वाभिमान युद्ध

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हल्दीघाटी युद्ध में अकबर के सेनापति राजा मानसिंह कछवाहा और महाराणा प्रताप के सेनापतियों में से एक पठान हाकिम खां सूर थे। इसलिए कुछ लोग इस युद्ध को साम्राज्यवाद का युद्ध कह रहे हैं।उनकी जानकारी के लिए बता दें कि ये युद्ध अकबर के दृष्टिकोण से साम्राज्यवाद का युद्ध था और महाराणा प्रताप के दृष्टिकोण से स्वाभिमान और स्वतंत्रता कायम रखने के लिए था।

महाराणा प्रताप मेवाड़ और अपनी प्रजा को स्वतंत्र रखने के लिए लड़ रहे थे। जबकि अकबर का उद्देश्य मेवाड़ भूमि को विशाल मुगल साम्राज्य के भीतर शामिल करना था चाहे उसके लिए चित्तौड़ में 30 हजार नागरिकों का संहार ही क्यों न करना पड़ा।

इस युद्ध को साम्राज्यवाद का युद्ध कहने के अलावा ये भी दुष्प्रचारित किया जा रहा है कि महाराणा प्रताप ने 10 हजारी मनसब मांगा था। जबकि ऐसा तो स्वयं मुगल लेखकों ने भी कभी नहीं लिखा और ना ही किसी ऐतिहासिक पुस्तक में ऐसा वर्णन है।

30 हजार मासूम नागरिकों की निर्मम हत्या, 8000 राजपूतों के प्राणों का बलिदान और हजारों क्षत्राणियों के जौहर को यादकर जिस महान वीर की आंखों में रक्त उतरता था, भला उनको 10 हजारी मनसब क्या रास आता।

खुद मुगल लेखकों ने महाराणा प्रताप को खुदमुख्तार बादशाह कहा है, जो किसी के आगे न कभी झुका और ना किसी के आदेश की पालना की। जब तक जिया सिर उठाकर जिया और अनेक लोगों को प्रेरणा दी कि सारी दुनिया आपको झुकाने पर उतर आए, तब भी आपका स्वाभिमान अमर रह सकता है।

महाराणा कुम्भा द्वारा नागौर के मुस्लिम राज का विध्वंस
गौहत्या का प्रतिशोध लेने के लिए मेवाड़ के महाराणा कुम्भा द्वारा नागौर के मुस्लिम राज का विध्वंस करने के बारे में कीर्तिस्तंभ प्रशस्ति में लिखा है कि “महाराणा कुंभा ने फ़िरोज़शाह की बनवाई हुई मस्जिद जला दी, खाई को भरवा दिया, किले को तोड़ दिया, कई हाथी छीन लिए, यवनियों को क़ैद किया, यवनों को दंड दिया, यवनों से गायों को छुड़ाया, नागपुर (नागौर) को गोचर बना दिया, पूरे नगर को मस्जिदों सहित जला दिया, शम्स खां के ख़ज़ाने से विपुल धन संचय छीना और गुजरात के सुल्तान को उपहास का पात्र बनाकर रख दिया।” महाराणा कुम्भा द्वारा नागौर विध्वंस की घटना का उल्लेख इस घटना के 100 वर्ष बाद लिखे गए तबकात-ए-अकबरी में निजामुद्दीन अहमद ने भी किया है।

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप के 6 मामा की जानकारी मिलती है, जो कुछ इस तरह है :-
1) राव मानसिंह सोनगरा :- मुगल फौज ने जब जोधपुर का किला घेरा, तब मानसिंह सोनगरा ने राव चंद्रसेन राठौड़ का साथ दिया था। मानसिंह सोनगरा ने ही मेवाड़ के अन्य सर्दारों के साथ मिलकर जगमाल को राजगद्दी से हटाकर महाराणा प्रताप को मेवाड़ का शासक बनाया। मानसिंह सोनगरा हल्दीघाटी युद्ध में काम आए थे। इनके पुत्र जसवन्त सोनगरा हुए।
2) राव भाण सोनगरा :- ये मुगल सेनापति शाहबाज खां के विरुद्ध कुम्भलगढ़ युद्ध में महाराणा प्रताप की ओर से लड़ते हुए काम आए। इनकी एक पुत्री का विवाह मारवाड़ के मोटा राजा उदयसिंह से हुआ। भाण सोनगरा के पुत्र :- नारायणदास, केशोदास, कल्याणदास।
3) उदयसिंह सोनगरा :- इनके पुत्र सूरजमल हुए।
4) भोजराज सोनगरा :- ये कूंपा महराजोत के यहां रहते थे व उन्हीं के साथ किसी लड़ाई में काम आए। भोजराज के पुत्र सिंह हुए।
5) जयमल सोनगरा :- ये बीकानेर रहते थे। इनको रिणी के पास वाय गांव पट्टे में मिला। इनके पुत्र अचलदास व सारंगदे हुए।
6) रतनसी सोनगरा :- ये जसवन्त मानसिंहोत के यहां रहते थे। इनके पुत्र कान्ह हुए।

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