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सनातन परंपरा के एक पुरोधा संत पहलाद जानी जी

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80 वर्षों से बिना भोजन और बिना एक बूंद पानी पीये…. ही जीवित रहने वाले, संत प्रहलाद जानी ब्रह्मलीन हो गए….जिन्हे भक्तजन “चुनरी वाले माताजी” के नाम से भी जानते थे। चुनरी वाले माताजी के नाम से प्रसिद्ध गुजरात के अंबाजी में रहने वाले प्रह्लाद भाई जानी का निधन 91 वर्ष की आयु में मंगलवार को हुआ. 79 सालों से उन्होंने खाना पीना त्याग रखा था और उनका दावा था कि ध्यान (मेडिटेशन) से उन्हें ऊर्जा मिलती है।

महाराज जी अरवल्ली स्थित शक्तिपीठ अंबाजी के निकट गब्बर पर्वत की तलहटी में रहते थे । आधुनिक विज्ञान और नास्तिकों के लिए अबूझ पहेली बन चुके बाबा ने आखिर दुनिया छोड़कर जाने का फैसला कर लिया। बाबा ने सिर्फ 10 साल की आयु में ही घर छोड़कर सन्यास ग्रहण कर लिया था….और भगवती अंबाजी के साक्षातकार होने के बाद अन्न और जल का त्याग कर दिया था ।

बाबा के कई मेडिकल टेस्ट भी हुए थे…. देश की जानी-मानी संस्था डीआरडीओ के वैज्ञानिकों की टीम ने सीसीटीवी कैमरे की नजर में 15 दिनों तक 24 घंटे नजर में रखा। अहमदाबाद में 2010 में 22 अप्रैल से 06 मई तक यानी कि 15 दिन तक प्रह्लाद जानी को स्टर्लिंग अस्पताल में रखा गया जिसमें डिफेंस इंस्टीट्यूट ऑफ़ फिजियोलॉजी एंड एप्लाइड साइंसेज के निदेशक डॉ जी. इलावलगान, न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. सुधीर शाह, डॉ. उरमन ध्रुव (परामर्श चिकित्सक और मधुमेह विशेषज्ञ), डॉ. हिमांशु पटेल (नेफ्रोलॉजिस्ट) जैसे लोगों ने उनका परीक्षण किया था.

इस जांच के दौरान प्रहलाद जानी की लगातार 24 घंटे सीसीटीवी कैमरे से और व्यक्तिगत तौर पर भी सुपरविजन किया गया. उनका एमआरआई, अल्ट्रासाउंड, एक्स-रे किया गया. साथ ही उनपर क्लीनिकल, बायोकेमिकल और रेडियोलॉजिकल परीक्षण भी किए गए. जांच दौरान प्रह्लाद जानी ने एक बार भी न कुछ खाया न पीया ही था. न ही इस दौरान उन्होंने मल मूत्र ही त्याग किया था.

यहां तक की उनके आश्रम के पेड़-पौधों का भी टेस्ट किया। लेकिन इन सबका कुछ नतीजा नहीं निकल सका। इसे पूरी तरह से डिस्कवरी चैनल पर भी दिखाया गया था… क्योंकि कोई भी डॉक्टर और वैज्ञानिक ये मानने को तैयार ही नहीं था।

वैसे बाबा ने अपने योगबल से सूर्य की रोशनी को आहार बनाया था…. इसके लिए वो हर दिन छत पर जाते और आंखें बंद करके योग के जरिये सूर्य की रोशनी से जरूरी तत्व साँसों के जरिये लेते थे।

इनका कहना था कि हवा में और रोशनी में बहुत सारे तत्व मौजूद होते हैं… पर हम इसे सिर्फ सांस लेने वाले ऑक्सीजन ही समझते हैं…. हालांकि ये बहुत लंबे और कठिन अभ्यास के बाद ही सम्भव होता है।

बाबा जी ने एक तरह से यह जो ऊर्जा शक्ति प्राप्त की सूर्य द्वारा यह एक विद्या है इस विद्या को इस कठिन तपस्या को कैसे प्राप्त कर सकते हैं यह बाबा जी को अपने शिष्य को बताना चाहिए था ताकि इसका उपयोग मनुष्य जीवन को सफल वी संसार चक्र से मुक्ति प्राप्त करने का रास्ता मिलता।

लेकिन उस शिष्य की भी योग्यता होनी चाहिए, अन्यथा नुकसान ही होगा। मेरे विचारों के अनुसार छोटे बच्चे को अगर कितना भी अधिक मात्रा में रकम दे दिया जाय । वह बच्चा चाकलेट ही खरीदेगा। शायद हमारे से अपेक्षा गुरुजी काफी उच्च विचार के है। और शिष्य क्या हम? इस तरह के विद्या हासिल करने के योग्य भी नहीं है।

और हम इतनी एक छोटी सी साधना कर भी नहीं सकते ये तो कठिन साधना करने के क्या? हम सोच भी नहीं सकते। शेष आप हमसे भी अनुभवी है, अतः मैं आपको मार्गदर्शन नही कर सकता, बशर्ते अपना विचार रखने की कोशिश की है।
ऐसा सिर्फ हमारे सनातन धर्म में ही संभव है, किसी और धर्म में हमने अभीतक देखा ना सुना है कभी भी। इन महापुरुष के श्री चरणों में हम बारम्बार शीश नवाते है।

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