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सादगी पसंद फनकार के जादुगर रफ़ी साहब और महेंद्र कपूर

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रफ़ी साहब और महेंद्र कपूर साहब का रिश्ता उस्ताद और शागिर्द (teacher-student) का था वो अक्सर रफ़ी साहब की रेडियो परफॉर्मेंस के वक़्त तानपुरा बजाया करते थे और रफ़ी साहब को “पाजी” (elder brother in Punjabi) कहा करते थे पर बात कुछ पुरानी है जब महेंद्र कपूर अमृतसर में थे और रफ़ी साहब के गाने उन ही के अंदाज़ मैं गाया करते थे बाद मैं बॉम्बे चले आये उस वक़्त उन की उम्र 12-13 साल की थी एक दिन स्कूल मैं अपनी नोट बुक मैं “रफ़ी रफ़ी रफ़ी” लिख रहे थे तो टीचर ने पकड़ लिया और बहुत फटकार लगाई।

तब उन के स्कूल के एक साथी ने उन को रफ़ी साहब के भिंडी बाजार के घर का पता दिया , मेहन्दर कपूर जी अकेले ही रफ़ी साहब के घर पहुँच गए और अपनी उन से मोहब्बत का इजहार किया रफ़ी साहब ने भी शफ़क़्क़त से उन के सर पर हाथ रखा और उन के “गंडा” बाँधा उस के बाद उन को गाना और हारमोनियम बजाना सिखाया ,और उन को अपने साथ रिकॉर्डिंग मैं ले जाते और अपने शोज (Shows) मैं भी लेकर कर जाते और उस के बाद रफ़ी साहब की पसंदीदा लस्सी पीते, और वक़्त गुज़रता गया पर दोनों के रिश्ते मैं कभी कोई फर्क नहीं आया।

रफ़ी साहब अक्सर उन से कहते थे एक फनकार की फिटनेस हमेशा अच्छी होनी चाहिए और दोनों शुरूआती दौर मैं सुबह सैर करने भी जाते थे , दोनों मैं बहुत सी बातें यक़सा थी दोनों सिगरेट और शराब को हाथ भी नहीं लगते थे दोनों मीठा बोलते थे मुस्कुराते और सादगी पसंद थे , दोनों को सफेद रंग पसंद था दोनों ही बाद मैं बांद्रा मैं रहने आ गए थे और दोनों इस दुनिया से मुक्कदस रमजान के महीने मैं रुक्सत हो गए ..दोस्तों लोग चले जाते है पर उन की अच्छाई हमेशा रहती ह।

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