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एक गांव में एक संत निवास करते थे। संत का व्यवहार बहुत ही सरल ज्ञानी कर्तव्यनिष्ठ शांत रहता था। संत के इस व्यवहार से बच्चे बहुत ज्यादा खिल्ली उड़ाते रहते थे, लेकिन कभी संत बुरा नही माने। अपने इस व्यवहार के कारण संत का स्वभाव आसपास में मशहूर था। गांव के लोव अपनी समस्या भी संत के पास लेकर आते और उचित मार्गदर्शन से संतुष्ट भी होते थे।इन सभी व्यवहार के कारण बच्चे बूढ़े, सभी के लिए चहेते भी थे।
एक बार बच्चों को कुछ शैतानी सूझी बच्चों ने संत के साध्वी को जाकर भड़काया की संत बाबा को आज बहुत सारा गन्ना मिला है,पर पता नही आपके पास आते आते आपके लिए बचा पाएंगे कि नही ,सभी को रास्ते मे बांटते आ रहे है।
संत की साध्वी थोड़ा झगड़ालू व चिड़चिड़ा प्रवृत्ति की थी, तब तक संत अपने कुटिया की ओर पहुँच गए। बच्चे शीघ्रता से छिप गए। परंतु साध्वी संत के हाथों में मात्र एक ही गन्ना देखकर गुस्सा से आगबबूला हो गये और गुस्से से बोली कि मात्र एक ही गन्ना लेकर आये हो,(गन्ना छीनकर) जाओ इसे भी किसी को बांट दो कहकर फेक देती जिससे गन्ना दो टुकड़ा हो जाता है।
संत जी ये देखकर शांति से बोलते है कि तुम्हारा भी कोई जवाब नही कितना सुंदर बराबर दो भाग में टुकड़ा किये हो। चलो मैं स्नान कर के आता हूं फिर गन्ना खाएंगे। इस प्रकार संत के स्वभाव से साध्वी का गुस्सा शांत हो जाता है।और बच्चे अपने शरारती स्वभाव पर लज्जित हो भाग जाते है।
उधर संत जी नदी में स्नान कर रहे होते है तो क्या देखते है कि एक बिच्छू का बच्चा पानी मे बह रहा है,संत जी बिच्छु के बच्चे को बाहर निकलने की कोशिश करते है परंतु बिच्छू के बच्चा स्वभाव वश संत को डंक मरता है, और जल में पुनः हाथ से गिर जाता है यह प्रक्रिया तीन चार बार होते देख पास में स्नान कर रहे ग्रामीण, संत से बोलते है कि बाबा आप को बिच्छू का बच्चा डंक पे डंक मार रहा है और आप उसे बचाने पर तुले है।
संत बड़ी ही सरलता से बोलते है कि यह बिच्छू का बच्चा होते हुए भी अपना स्वभाव नही छोड़ रहा है तो हम मनुष्यों का स्वभाव क्यो छोड़े। हमें तो किसी असहाय प्राणियों की रक्षा करनी ही चाहिए और फिर कमंडल में पकड़ कर बिच्छू के बच्चे को बाहर निकल ही लेते है। शिक्षा.. इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि विषम परिस्थितियों में भी हमें अपना धैर्य नही खोकर कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए।