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मन में भी पूजे जा सकते हैं नारायण

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मानस पूजा – एक बार की बात है एक ब्राह्मण श्री लक्ष्मी नारायण भगवान का महान भक्त था , परन्तु निर्धन था ! वह मंदिर की पूजा में बहुत शानदार सेवा पेश करना चाहता था, लेकिन उसके पास धन नहीं था ।

एक दिन की बात है वह एक भागवत पाठ में बैठा हुआ था और उसने सुना कि नारायण मन में भी पूजे जा सकते हैं । उसने इस अवसर का लाभ उठाया क्योंकि वह एक लंबे समय से सोच रहा था कि कैसे बहुत शान से नारायण की पूजा करूं, लेकिन उसके पास धन नहीं था ।

जब वह यह समझ गया, कि मन के भीतर नारायण की पूजा कर सकते हैं, तो गोदावरी नदी में स्नान करने के बाद, वह एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ था। अपने मन के भीतर वह बहुत खूबसूरत सिंहासन का निर्माण कर रहा था, गहनों के साथ लदी और सिंहासन पर भगवान की मूर्ति को रखते हुए… वह भगवान का गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी नदी के जल के साथ अभिषेक कर रहा था। फिर बहुत अच्छी तरह से भगवान का श्रृंगार कर रहा था, और फूल, माला के साथ पूजा कर रहा था ।

वह बहुत अच्छी तरह से भोजन पका रहा था, और वह मीठे चावल पका रहा था। वह परखना चाहता था, क्या वह बहुत गरम थे। क्योंकि भोजन बहुत गर्म नहीं लिया जाता है। तो उसने भोजन में अपनी उंगली डाली और उसकी उंगली जल गई । तब उसका ध्यान टूटा क्योंकि वहाँ कुछ भी नहीं था। केवल अपने मन के भीतर वह सब कुछ कर रहा था । लेकिन उसने अपनी उंगली जली हुइ देखी। तो वह चकित रह गया ।

इधर, वैकुन्ठ में नारायण, मुस्कुरा रहे थे !

देवी लक्ष्मीजी ने पूछा – आप क्यों मुस्कुरा रहे हैं ?

“मेरा एक भक्त अतिप्रभावी मानस पूजन कर रहा है। मेरे अन्य धनिक भक्त सब उच्च साधनो से सामग्रियों से मेरी अर्चना करते है। लेकिन मन भटकता रहता है ।

इस समर्पित भक्त का वास वैकुंठ मे होना चाहिए अतः मेरे दूतों को तुरंत भेजो उसे वैकुंठ लाने के लिए।

भक्ति-योग इतना अच्छा है कि भले ही आपके पास भगवान की भव्य पूजा के लिए साधन न हो, आप मन के भीतर यह कर सकते हो । यह भी संभव है !!

Զเधे Զเधे🌹❉

💝꧁”श्री राधा विजेयते नमः”꧂💝

🙏🌹 श्री कृष्ण:शरणं ममः 🌹🙏

🙏। श्रीमत्कुंजविहारिणेनमः। 🙏

🙏।। श्यामा प्यारी कुंजबिहारी ।।

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* परहित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥

तनु तिज तात जाहु मम धामा। देउँ काह तुम्ह पूरनकामा॥

भावार्थ:- जिनके मन में दूसरे का हित बसता है (समाया रहता है), उनके लिए जगत्‌ में कुछ भी (कोई भी गति) दुर्लभ नहीं है। हे तात! शरीर छोड़कर आप मेरे परम धाम में जाइए। मैं आपको क्या दूँ? आप तो पूर्णकाम हैं (सब कुछ पा चुके हैं)॥

सर्वदेवमयी यज्ञेश्वरी गौमाता को नमन, जय गौमाता की 

शरीर परमात्मा का दिया हुआ उपहार है ! चाहो तो इससे ” विभूतिया ” (अच्छाइयां / पुण्य इत्यादि ) अर्जित करलो चाहे घोरतम ” दुर्गति ” ( बुराइया / पाप ) इत्यादि !

परोपकारी बनो एवं प्रभु का सानिध्य प्राप्त करो !

प्रभु हर जीव में चेतना रूप में विद्यमान है अतः प्राणियों से प्रेम करो !

शाकाहार अपनाओ , करुणा को चुनो !

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