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कलियुग की बाधाओं का निवारण करने वाले देवता हैं काल भैरव

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काल भैरव अष्टक ( कालभैरवाष्टकम् )-  भगवान भैरव शिव के स्वरूप हैं। वे कलियुग की बाधाओं का शीघ्र निवारण करने वाले देवता माने जाते हैं। खासतौर से प्रेत व तांत्रिक बाधा के दोष उनके पूजन से दूर हो जाते हैं। संतान की दीर्घायु हो या गृहस्वामी का स्वास्थ्य, भगवान भैरव स्मरण और पूजन मात्र से उनके कष्टों को दूर कर देते हैं।भगवान भैरव के पूजन से राहु-केतु शांत हो जाते हैं। उनके पूजन में भैरव अष्टक और भैरव कवच का पाठ जरूर करना चाहिए। इससे शीघ्र फल मिलता है। साथ ही तांत्रिक व प्रेत बाधा का संकट टल जाता है।

काल भैरव का नाम सुनते ही एक अजीब-सी भय मिश्रित अनुभूति होती है। एक हाथ में ब्रह्माजी का कटा हुआ सिर और अन्य तीनों हाथों में खप्पर, त्रिशूल और डमरू लिए भगवान शिव के इस रुद्र रूप से लोगों को डर भी लगता है, लेकिन ये बड़े ही दयालु-कृपालु और जन का कल्याण करने वाले हैं।

भैरव शब्द का अर्थ ही होता है भरण-पोषण करने वाला, जो भरण शब्द से बना है। काल भैरव की चर्चा रुद्रयामल तंत्र और जैन आगमों में भी विस्तारपूर्वक की गई है। शास्त्रों के अनुसार कलियुग में काल भैरव की उपासना शीघ्र फल देने वाली होती है। उनके दर्शन मात्र से शनि और राहु जैसे क्रूर ग्रहों का भी कुप्रभाव समाप्त हो जाता है। काल भैरव की सात्त्विक, राजसिक और तामसी तीनों विधियों में उपासना की जाती है।

इनकी पूजा में उड़द और उड़द से बनी वस्तुएं जैसे इमरती, दही बड़े आदि शामिल होते हैं। चमेली के फूल इन्हें विशेष प्रिय हैं। पहले भैरव को बकरे की बलि देने की प्रथा थी, जिस कारण मांस चढ़ाने की प्रथा चली आ रही थी, लेकिन अब परिवर्तन आ चुका है। अब बलि की प्रथा बंद हो गई है।

शराब इस लिए चढ़ाई जाती है क्योंकि मान्यता है कि भैरव को शराब चढ़ाकर बड़ी आसानी से मन मांगी मुराद हासिल की जा सकती है। कुछ लोग मानते हैं कि शराब ग्रहण कर भैरव अपने उपासक पर कुछ उसी अंदाज में मेहरबान हो जाते हैं जिस तरह आम आदमी को शराब पिलाकर अपेक्षाकृत अधिक लाभ उठाया जा सकता है। यह छोटी सोच है।

आजकल धन की चाह में स्वर्णाकर्षण भैरव की भी साधना की जा रही है। स्वर्णाकर्षण भैरव काल भैरव का सात्त्विक रूप हैं, जिनकी पूजा धन प्राप्ति के लिए की जाती है। यह हमेशा पाताल में रहते हैं, जैसे सोना धरती के गर्भ में होता है। इनका प्रसाद दूध और मेवा है। यहां मदिरा-मांस सख्त वर्जित है। भैरव रात्रि के देवता माने जाते हैं। इस कारण इनकी साधना का समय मध्य रात्रि यानी रात के 12 से 3 बजे के बीच का है। इनकी उपस्थिति का अनुभव गंध के माध्यम से होता है। शायद यही वजह है कि कुत्ता इनकी सवारी है। कुत्ते की गंध लेने की क्षमता जगजाहिर है।

देवी महाकाली, काल भैरव और शनि देव ऐसे देवता हैं जिनकी उपासना के लिए बहुत कड़े परिश्रम, त्याग और ध्यान की आवश्यकता होती है। तीनों ही देव बहुत कड़क, क्रोधी और कड़ा दंड देने वाले माने जाते है। धर्म की रक्षा के लिए देवगणों की अपनी-अपनी विशेषताएं है। किसी भी अपराधी अथवा पापी को दंड देने के लिए कुछ कड़े नियमों का पालन जरूरी होता ही है। लेकिन ये तीनों देवगण अपने उपासकों, साधकों की मनाकामनाएं भी पूरी करते हैं। कार्यसिद्धि और कर्मसिद्धि का आशीर्वाद अपने साधकों को सदा देते रहते हैं।

भगवान भैरव की उपासना बहुत जल्दी फल देती है। इस कारण आजकल उनकी उपासना काफी लोकप्रिय हो रही है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि भैरव की उपासना क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त करती है। शनि की पूजा बढ़ी है। अगर आप शनि या राहु के प्रभाव में हैं तो शनि मंदिरों में शनि की पूजा में हिदायत दी जाती है कि शनिवार और रविवार को काल भैरव के मंदिर में जाकर उनका दर्शन करें। मान्यता है कि 40 दिनों तक लगातार काल भैरव का दर्शन करने से मनोकामना पूरी होती है। इसे चालीसा कहते हैं। चन्द्रमास के 28 दिनों और 12 राशियां जोड़कर ये 40 बने हैं।

पूजा में शराब, मांस ठीक नहीं
हमारे यहां तीन तरह से भैरव की उपासना की प्रथा रही है। राजसिक, सात्त्विक और तामसिक। हमारे देश में वामपंथी तामसिक उपासना का प्रचलन हुआ, तब मांस और शराब का प्रयोग कुछ उपासक करने लगे। ऐसे उपासक विशेष रूप से श्मशान घाट में जाकर मांस और शराब से भैरव को खुश कर लाभ उठाने लगे।

लेकिन भैरव बाबा की उपासना में शराब, मांस की भेंट जैसा कोई विधान नहीं है। शराब, मांस आदि का प्रयोग राक्षस या असुर किया करते थे। किसी देवी-देवता के नाम के साथ ऐसी चीजों को जोड़ना उचित नहीं है। कुछ लोगों के कारण ही आम आदमी के मन में यह भावना जाग उठी कि काल भैरव बड़े क्रूर, मांसाहारी और शराब पीने वाले देवता हैं। किसी भी देवता के साथ ऐसी बातें जोड़ना पाप ही कहलाएगा।

गृहस्थ के लिए इन दोनों चीजों का पूजा में प्रयोग वर्जित है। गृहस्थों के लिए काल भैरवाष्टक स्तोत्र का नियमित पाठ सर्वोत्तम है, जो अनेक बाधाओं से मुक्ति दिलाता है। काल भैरव तंत्र के अधिष्ठाता माने जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि तंत्र उनके मुख से प्रकट होकर उनके चरणों में समा जाता है। लेकिन, भैरव की तांत्रिक साधना गुरुगम्य है। योग्य गुरु के मार्गदर्शन में ही यह साधना की जानी चाहिए।

कथा-एक
पहली कथा है कि ब्रह्मा जी ने पूरी सृष्टि की रचना की। ऐसा मानते हैं कि उस समय प्राणी की मृत्यु नहीं होती थी। पृथ्वी के ऊपर लगातार भार बढ़ने लगा। पृथ्वी परेशान होकर ब्रह्मा के पास गई। पृथ्वी ने ब्रह्मा जी से कहा कि मैं इतना भार सहन नहीं कर सकती। तब ब्रह्मा जी ने मृत्यु को लाल ध्वज लिए स्त्री के रूप में उत्पन्न किया और उसे आदेश दिया कि प्राणियों को मारने का दायित्त्व ले। मृत्यु ने ऐसा करने से मना कर दिया और कहा कि मैं ये पाप नहीं कर सकती। ब्रह्माजी ने कहा कि तुम केवल इनके शरीर को समाप्त करोगी लेकिन जीव तो बार-बार जन्म लेते रहेंगे। इस पर मृत्यु ने ब्रह्माजी की बात स्वीकार कर ली और तब से प्राणियों की मृत्यु शुरू हो गई।

समय के साथ मानव समाज में पाप बढ़ता गया। तब शंकर भगवान ने ब्रह्मा जी से पूछा कि इस पाप को समाप्त करने का आपके पास क्या उपाय है। ब्रह्माजी ने इस विषय में अपनी असमर्थता जताई। शंकर भगवान शीघ्र कोपी हैं। उन्हें क्रोध आ गया और उनके क्रोध से काल भैरव की उत्पत्ति हुई। काल भैरव ने ब्रह्माजी के उस मस्तक को अपने नाखून से काट दिया जिससे उन्होंने असमर्थता जताई थी। इससे काल भैरव को ब्रह्म हत्या लग गयी।

काल भैरव तीनों लोकों में भ्रमण करते रहे लेकिन ब्रह्म हत्या से वे मुक्त नहीं हो पाए। ऐसी मान्यता है कि जब काल भैरव काशी पहुंचे, तब ब्रह्म हत्या ने उनका पीछा छोड़ा। उसी समय आकाशवाणी हुई कि तुम यहीं निवास करो और काशीवासियों के पाप-पुण्य के निर्णय का दायित्त्व संभालो। तब से भगवान काल भैरव काशी में स्थापित हो गए।

देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं
व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।
नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥१॥
Deva-Raaja-Sevyamaana-Paavana-Angghri-Pangkajam
Vyaala-Yajnya-Suutram-Indu-Shekharam Krpaakaram |
Naarada-[A]adi-Yogi-Vrnda-Vanditam Digambaram
Kaashikaa-Pura-Adhinaatha-Kaalabhairavam Bhaje ||1||

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं
नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।
कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥२॥
Bhaanu-Kotti-Bhaasvaram Bhavaabdhi-Taarakam Param
Niila-Kannttham-Iipsita-Artha-Daayakam Trilocanam |
Kaala-Kaalam-Ambuja-Akssam-Akssa-Shuulam-Akssaram
Kaashikaa-Pura-Adhinaatha-Kaalabhairavam Bhaje ||2||

शूलटङ्कपाशदण्डपाणिमादिकारणं
श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥३॥
Shuula-Ttangka-Paasha-Danndda-Paannim-Aadi-Kaarannam
Shyaama-Kaayam-Aadi-Devam-Akssaram Nir-Aamayam |
Bhiimavikramam Prabhum Vicitra-Taannddava-Priyam
Kaashikaa-Pura-Adhinaatha-Kaalabhairavam Bhaje ||3||

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं
भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥४॥
Bhukti-Mukti-Daayakam Prashasta-Caaru-Vigraham
Bhakta-Vatsalam Sthitam Samasta-Loka-Vigraham |
Vi-Nikvannan-Manojnya-Hema-Kingkinnii-Lasat-Kattim
Kaashikaa-Pura-Adhinaatha-Kaalabhairavam Bhaje ||4||

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशकं
कर्मपाशमोचकं सुशर्मदायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्णशेषपाशशोभिताङ्गमण्डलं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥५॥
Dharma-Setu-Paalakam Tu-Adharma-Maarga-Naashakam
Karma-Paasha-Mocakam Su-Sharma-Daayakam Vibhum |
Svarnna-Varnna-Shessa-Paasha-Shobhitaangga-Mannddalam
Kaashikaa-Pura-Adhinaatha-Kaalabhairavam Bhaje ||5||

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं
नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।
मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥६॥
Ratna-Paadukaa-Prabhaabhi-Raama-Paada-Yugmakam
Nityam-Advitiiyam-Isstta-Daivatam Niramjanam |
Mrtyu-Darpa-Naashanam Karaala-Damssttra-Mokssannam
Kaashikaa-Pura-Adhinaatha-Kaalabhairavam Bhaje ||6||

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं
दृष्टिपातनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥७॥
Atttta-Haasa-Bhinna-Padmaja-Anndda-Kosha-Samtatim
Drsstti-Paata-Nasstta-Paapa-Jaalam-Ugra-Shaasanam |
Asstta-Siddhi-Daayakam Kapaala-Maalikaa-Dharam
Kaashikaa-Pura-Adhinaatha-Kaalabhairavam Bhaje ||7||

भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं
काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं
काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥८॥
Bhuuta-Samgha-Naayakam Vishaala-Kiirti-Daayakam
Kaashi-Vaasa-Loka-Punnya-Paapa-Shodhakam Vibhum |
Niiti-Maarga-Kovidam Puraatanam Jagatpatim
Kaashikaapuraadhinaathakaalabhairavam Bhaje ||8||

कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं
ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।
शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं
प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम् ॥९॥
Kaalabhairavaassttakam Patthamti Ye Manoharam
Jnyaana-Mukti-Saadhanam Vicitra-Punnya-Vardhanam |
Shoka-Moha-Dainya-Lobha-Kopa-Taapa-Naashanam
Prayaanti Kaalabhairava-Amghri-Sannidhim Naraa Dhruvam ||9||

गणेश मुखी रूद्राक्ष पहने हुए व्यक्ति को मिलती है सभी क्षेत्रों में सफलता एलियन के कंकालों पर मैक्सिको के डॉक्टरों ने किया ये दावा सुबह खाली पेट अमृत है कच्चा लहसुन का सेवन श्रीनगर का ट्यूलिप गार्डन वर्ल्ड बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में हुआ दर्ज महिला आरक्षण का श्रेय लेने की भाजपा और कांग्रेस में मची होड़