इस ख़बर को शेयर करें:
प्रेमचंद बहुत स्वाभिमानी थे. गोरखपुर की दो घटनाओं से इसका जिक्र मिलता है. एक बार उनके स्कूल में निरीक्षण करने स्कूल इंस्पेक्टर आया. पहले दिन प्रेमचंद उसके साथ पूरे समय स्कूल में रहे. दूसरे दिन शाम को वह अपने घर पर आरामकुर्सी पर बैठे अखबार पढ़ रहे थे. इंस्पेक्टर की मोटरकार उधर गुजरी.
इंस्पेक्टर को उम्मीद थी कि प्रेमचंद उठकर उन्हें सलाम करेंगे लेकिन ऐसा कुछ न हुआ. इंस्पेक्टर ने गाड़ी रोक दी और अर्दली को भेजकर बुलवाया. शिवरानी देवी इस घटना का वर्णन करते हुए लिखती हैं कि इंस्पेक्टर के सामने जाकर प्रेमचंद बोले, ‘कहिए क्या है?
इंस्पेक्टर ने कहा, ‘तुम बड़े मग़रूर हो. तुम्हारा अफसर दरवाजे से निकला जाता है और तुम उठकर सलाम भी न करते?’ प्रेमचंद बोले, मैं जब स्कूल में रहता हूं तब नौकर हूं. बाद में मैं भी अपने घर का बादशाह हूं.’
ज्यादा पसंद की गई खबरें:
राजा भैया के प्रशंसक उन्हें क्यों आज का महाराणा प्रताप मानते है ?
"द ग्रैन्ड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया" कौन थे, जिन्होंने भारतीयों के लिए अंग्रेज़ों से आर्थिक न्याय की माँग ...
लुप्त होती मनुष्य की मनुष्यता पर विशेष
हम कह बैठते हैं तुम्हें रत्ती भर भी शर्म नहीं है, ये 'रत्ती' क्या है, इसकी क्या है उपयोगिता?
बहुसंख्यक हिन्दू समाज की - मनोदशा
एक विकल्प है नियोग प्रथा
अतीत का दर्द: हाय रे ऊँची शिक्षा कहाँ तक ले आई
इंदिरा गांधी का व्यक्तित्व और प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ के रूप में उनके कौशल