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एक श्राप के कारण द्वारकाधीश मंदिर में नहीं है रुक्मणी की एक भी मूर्ति

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द्वारकाधीश श्री कृष्ण को हम जब भी याद करते हैं तो हमारे मुंह से राधे-कृष्ण ही निकलता है। कृष्ण के साथ राधा का नाम ऐसे जुड़ा हुआ है मानो ये दोनों नाम कभी अलग थे ही नहीं। लेकिन सत्य तो ये भी है कि राधा और कृष्ण कभी एक नहीं हो सके ये और बात है कि कुछ किवदन्तियों के अनुसार, दोनों की शादी हुई थी लेकिन ज्यादातर कथाओं के अनुसार, इन दोनों का प्रेम कभी पूरा नहीं हो सका था।

द्वारकाधीश कृष्ण का विवाह रूक्मणी से हुआ था इसके अलावा भी उनकी कई रानियां और पटरानियां थीं। कृष्ण और रूक्मणी का रिश्ता भी आदर्श माना जाता है लेकिन क्या आप जानते हैं द्वारकाधीश के मंदिर में उनकी प्रिय रानी रूक्मणी की एक भी मूर्ति नहीं है। वास्तव में, इसका कारण एक श्राप है जिसके कारण कृष्ण और रूक्मणी को 12 साल तक अलग रहना पड़ा था और इसी कारण इस मंदिर में उनकी कोई प्रतिमा भी नहीं है।

द्वारकाधीश
द्वारकाधीश मंदिर से कुछ किलोमीटर दूर एक अलग हिस्से में रूक्मणी का मंदिर बना हुआ है। एक समय तक यहां आने वाले भक्तों को इस श्राप की कथा सुनाई जाती थी। अगर धार्मिक मान्यताओं को आधार मानकर बात की जाए तो ये श्राप कृष्ण और रूक्मणी को दुर्वासा ऋषि ने दिया था।

विवाह के बाद रूक्मणी और कृष्ण दुर्वासा ऋषि के आश्रम पहुंचे और वहां जाकर उन्होने दुर्वासा ऋषि को उनके साथ महल चलकर भोजन करने का निमंत्रण दिया, दुर्वासा ऋषि ने ये निमंत्रण स्वीकारा तो लेकिन उसके लिए एक विचित्र सी शर्त रखी। उन्होने कहा कि वो उनके रथ में महल नहीं जाएंगे, वो केवल इसी शर्त पर उनके साथ चलेंगे अगर वो उनके लिए अलग से एक रथ का इतंज़ाम करेंगे, कृष्ण ने ये शर्त मान तो ली लेकिन दोनों ये इस बात से परेशान थे कि वो इस शर्त को पूरा कैसे करेंगे क्योकि उनके पास उस समय एक ही रथ था जिससे वो स्वंय वहां आए थे इसलिए उन्होने घोड़ों को उस रथ से अलग कर दिया और दोनों खुद रथ में जुत गए।

काफी दूर चलने के बाद जब देवी रूक्मणी को प्यास लगी तो कृष्ण ने पैर का अंगूठा ज़मीन पर मारा और उससे निकले गंगाजल से दोनों ने प्यास बुझा ली लेकिन दोनों में से किसी को भी ये ख्याल नहीं आया कि उन्होने ऋषिवर से भी इस बारे में पूछना चाहिए। इस बात पर दुर्वासा ऋषि को क्रोध आ गया और क्रोधित होकर उन्होने देवी रूक्मणी को 12 साल तक कृष्ण से अलग रहने का श्राप दिया और साथ ही ये भी कहा कि जिस स्थान से कृष्ण ने पानी निकाला है वो बंजर हो जाएगा।

इस श्राप से मुक्त होने के लिए देवी रूक्मणी ने भगवान विष्णु की तपस्या की और फिर उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हे इस श्राप से मुक्ति दी। दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण इस मंदिर में आज भी जल का दान किया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ऐसा करने से पितरों को जल की प्राप्ति होती है।

।। जय श्री कृष्ण ।।

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