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बजरंग बाण का पाठ कैसे एवं कब करे ?

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महावीर हनुमान शारीरिक शक्ति के प्रतीक हैं, वे अतुलनीय पराक्रमी, बलवान और साहसी हैं तथा कलि युग में उनकी साधना पूर्णतः फलदायक है, हनुमान जी दुष्ट शक्तियों और जीवन में आने वाली बाधाओं को दूर करने वाले हैं, उनकी शारीरिक शक्ति के सामने विपरीत परिस्थितियां और बाधाएं उसी प्रकार दब जाती है जिस प्रकार पर्वत के नीचे छोटा सा तिनका दबकर समाप्त हो जाता है।

हनुमान, बजरंग, महावीर, के साथ साथ उन्हें ‘वायु- पुत्र’ भी कहा जाता है। महाभारत युद्ध में अर्जुन ने अपनी ध्वजा पर उनके चिन्ह को अंकित कर वायु अथार्त प्राणों पर विजय प्राप्त की थी इसीलिये उनको ‘वायुपुत्र’ कहा जाता है । प्राणों पर अथार्त चंचल चित्त पर विजय प्राप्त करने के लिये, और मन को पूर्णतः नियंत्रण करने के लिये भी हनुमान साधना सर्वोपरि मानी गई है, जिस व्यक्ति का पूजा या साधना में ध्यान नहीं लगता हो उसके लिये हनुमान उपासना अत्यन्त महत्वपूर्ण कही गई है, इनकी कृपा से मन और प्राण स्थिर होते हैं तथा साधना शक्ति के पूजा के साथ-साथ साधक की मनः शक्ति भी बढ़ कष्टों, बाधाओं और परेशानियों से जूझने की शक्ति जागृत होती है, फलस्वरूप उसमें निर्भीकता और साहस आ जाता है।

सैकड़ों पुस्तकों में ‘बंजरंग बाण’ के महत्त्व को बताया गया है, सैकड़ों लोगों का व्यक्तिगत अनुभव है कि बजरंग बाण का पाठ जब विपत्ति घोर हो एवं बाधाओं और आने वाली कठिनाइयों को दूर करने में पूर्णतः सक्षम चाहते है तभी बजरंग बाण का पाठ करे ऊंचे से ऊंचे साधक और योगियों ने भी एक स्वर से यह स्वीकार किया है कि यह स्तोत्र स्वयं ही मंत्रमय है और इसका नित्य पाठ ही अपने आप में आश्चर्यजनक सफलता देने वाला है।

शारीरिक व्याधि, घर में भूत-प्रेत आदि की बाधाएं, मानसिक परेशानिया, आदि के निवारण में यह स्तोत्र रामबाण की तरह है, जिसके घर में इसका नित्य पाठ होता है उसके घर में साक्षात् महावीर विराजमान रहते है और किसी प्रकार की कोई बाधा उसके घर में व्याप्त नहीं होती ।

पूजा कैसे करे ?

साधक को चाहिए कि वह अपने सामने हनुमान जी का चित्र या उनकी मूर्ति रख ले और पूरी भावना तथा आत्मविश्वास से उनका मानसिक ध्यान करें, यह विचार करे कि हनुमानजी की दिव्य और बलवान शक्तियां मेरे मन में प्रवेश कर रही हैं मेरे चारों और के अणु- उत्तेजित हो रहे हैं और यह सशक्त वातावरण मुझे और मेरी मनः शक्ति को बढ़ाने में सहायक हो रहा है।

धीरे धीरे इस प्रकार का अभ्यास करने से साधक के मन में शक्ति का स्रोत खुलने लगता है मानव की नैतिक भावनाओं का स्रोत उसका मन होता है क्योंकि मन से ही गुप्त शक्तियों का विकास होता है, अतः मानव जिन भावनाओं या विचारों को बार बार मन में दोहराता है या जिस प्रकार की मानसिक स्थिति में वह रहता है, उसका वैसा ही स्वभाव बन जाता है, अतः बजरंग बाण में पूरी श्रद्धा रखकर इसे बार बार दोहराने से मानव-मन में हनुमान जी की शक्तियों का विकास होने लगता है और मन की संकल्प शक्ति में वृद्धि होती है,(बहुत विपत्ति एवं प्राण पर आये तो बजरंग बाण करे)

हनुमानजी की मूर्ति या तस्वीर की चन्दन, पुष्प, आदि से पूजा करनी चाहिए और श्रद्धायुक्त प्रणाम कर नीचे लिखी स्तुति करनी चाहिए ।

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं । दनुजवनकृशानु ज्ञानिनामग्रगण्यम् ॥
सकलगुण निधानं वानराणामधीश । रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि ।।

( श्री रामचरितमानस ५१ श्लोक ३ )

अथार्त जो अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत सुमेरू के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्यरूपी वन (को ध्वंस करने) के लिये अग्निरूप, ज्ञानियों में अग्रण्य, सम्पूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी और श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त हैं, उन पवन पुत्र श्री हनुमान जी को मैं प्रणाम, करता हूँ।

इस प्रकार की स्तुति कर साधक को चाहिए कि वह अपने पास दाहिने हाथ की तरफ एक आसन बिछा दे, जैसा कि शास्त्रों में उल्लिखित है कि जब भी बजरंग बाण का पाठ किया जाता है, श्री हनुमान जी स्वयं आसन पर आकर बैठते हैं।

हनुमानजी की पूजा में इत्र, सुगन्धित द्रव्य एवं गुलाब के पुष्पों का प्रयोग निषिद्ध है, साथ ही साधक को चाहिए कि वह स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण कर बैठे, यदि साधक लाल वस्त्र की लंगोट पहिने तो ज्यादा अनुकूल है , हनुमानजी के समक्ष तेल का दीपक लगाना चाहिए, और उन्हें गुड़ का भोग लगाना चाहिए।

साधक को चाहिए कि वह बजरंग बाण कंठस्थ कर ले, यों नित्य पाठ करने से यह स्तोत्र स्वतः ही कंठस्थ हो जाता है, प्रातःकाल के एवं शाम को या रात्रि को सोने से पूर्व भी इस स्तोत्र का पाठ किया जा सकता है परन्तु जब भी इसका पाठ करे पृथ्वी पर ऊनी वस्त्र का आसन बिछा कर मन में हनुमानजी का ध्यान कर पाठ करे ।

यदि साधक यात्रा पर हो तब भी वह रेल में यात्रा के समय इसका पाठ कर सकता है, धीरे-धीरे साधक अनु- भव करेगा कि वह पहले की अपेक्षा ज्यादा सशक्त है, विरोधियों पर हावी हो रहा है, उसका मन ज्यादा एकाग्र हो रहा है और उसके पूरे शरीर में एक नई चेतना, एक नया जोश और एक नई शक्ति का प्रादुर्भाव हो रहा है।

बच्चों की नजर उतारने, शान्त और गहन निद्रा के लिये, कष्ट और संकट के समय, रात्रि को अकेले यात्रा करते समय, भूत बाधा दूर करने, तथा अकारण भय को दूर करने के लिए यह स्तोत्र आश्चर्यजनक सफलतादायक है। किसी महत्वपूर्ण कार्य पर जाने से पूर्व भी यदि इसका पाठ किया जाय तो उसे निश्चय ही सिद्धि और सफलता प्राप्त होती है।

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