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कनकधारा यंत्र की महिमा – शंकराचार्य ने कैसे किया इस यंत्र से ब्राह्मण घर का उद्धार!

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शंकराचार्य जी ने कैसे किया कनकधारा यंत्र से ब्राह्मण घर का उद्धार!

आज के अनास्थावादी युग में भी ‘कनकधारा यंत्र’ अचूक एवं शीघ्र फलदायक होने के कारण यह विश्वास दिलाने में समर्थ है कि अब भी कुछ यंत्र ऐसे हैं, जिनका प्रभाव निश्चित होता है, अचूक होता है और आश्चर्यजनक होता है। ‘कनक धारा यंत्र’ भारतवर्ष की अमूल्य थाती है इस यंत्र में दरिद्रता विनाश का अद्भुत गुण है यह यत्र जहां भी होता है वहीं अपना प्रभाव बिखेरने लग जाता है, जिस प्रकार अगरबत्ती जहां पर भी जलेगी वहीं सुगन्ध छोड़ेगी, इसी प्रकार यह यंत्र भी जहां रहता है, वहीं स्वर्ण वर्षा सी करने की स्थिति पैदा कर देता है। रसिद्ध मंत्र शास्त्री हरिपाद ब्रह्मचारी ने ‘कनकधारा यंत्र रहस्य’ शीर्षक ग्रन्थ की रचना की हैं, जो हस्तलिखित दुर्लभ प्रति है जिसके अन्त में निष्कर्ष स्वरूप उन्होंने लिखा है हमारे भारत वर्ष में कनकधारा यंत्र जैसी अ‌द्भुत वस्तु उपलब्ध है।

कनकधारा स्तोत्र :

कथा प्रसिद्ध है, कि आचार्य शंकराचार्य एक दिन भिक्षा के लिए एक सद्गृहस्थ के द्वार पर पहुँचे और ‘भिक्षां देहि’ का घोष किया, वह ब्राह्मण परिवार अत्यन्त दरिद्र था, अपने द्वार पर एक तेजस्वी अतिथि को देखकर गृहिणी लाज से गढ़ गई, क्योंकि उसके घर में भिक्षा में देने के लिए कुछ भी नहीं था, पूरे घर को छानने पर एक सूखा हुमा आंवला उस ब्राह्मणी को मिला, जिसे लेकर वह झर-झर रोती हुई भिक्षा देने के लिए द्वार पर आई, तथा अत्यन्त संकोच के साथ वह उसे अर्पण करने लगी।

भगवान शंकर को उसकी दुरावस्था पर तरस आ गया, उन्होंने वहीं बैठकर तत्काल ऐश्चयं की अधिष्ठात्री देवी, वात्सल्यमयी भगवती महालक्ष्मी की स्तुति प्रारंभ की, और उनकी वाणी से अनायास ही करुणापूर्ण ऐसी कोमल कान्त पद्यावली प्रस्फुटित हुई, जिसे सुनकर भगवती महा-लक्ष्मी देखते-देखते आचार्य के सम्मुख अपने त्रिभुवन मोहन रूप में प्रकट हो गई और कोमल शब्दों में पूछा, मुझे कैसे स्मरण किया ? आचार्य शंकर ने सारी कथा कह सुनाई और प्रार्थना की कि उस गरीब ब्राह्मणी की दरिद्रता दूर करें। भगवती लक्ष्मी ने बताया कि उस गृहस्य का प्रारब्ध ऐसा नहीं है कि उसे इस जन्म में धन प्राप्ति हो।

आचार्य जी ने विगलित कंठ से निवेदन किया कि क्या इस आंगन में इस स्तोत्र पाठ के बाद भी यह संभव नहीं है ? तव भगवती महालक्ष्मी ने बताया कि इसके घर में कनकधारा यंत्र रखकर इस स्तोत्र का पाठ करो, तो इनका दुर्भाग्य टल सकता है। भगवान शंकर ने ऐसा ही किया और उसी समय उस दरिद्र ब्राह्मण के आंगन में सोने की वर्षा हुई, जिसके फलस्वरूप उस गृहस्थ का दरिद्रय सदा के लिये मिट गया और वह प्रचुर धन सम्पत्ति का स्वामी हो गया।

प्रसिद्ध ग्रन्थ ‘शंकर-दिग्विजय’ के चतुर्थ सर्ग में इस घटना का स्पष्ट उल्लेख है, पर उसमें मात्र स्तोत्र का ही उल्लेख है, यह स्तोत्र कल्याण आदि में भी कई बार छप चुका है पर कुछ वर्षों पूर्व एक साधु से अत्यन्त पुरानी हस्तलिखित प्रति देखने को मिली थी, जिसमें ऊपर वाली घटना ज्यों की त्यों थी, पर साथ ही यह भी उल्लेख था कि ‘कनकधारा यंत्र निर्माण के बाद ही भगवती लक्ष्मी ने प्रसन्न होकर स्वर्ण वर्षा की। हिमालय स्थित ‘सिद्धाश्रम’ के मंत्र स्वरूप ऋषि ‘कात्यायन’ जी ने भी इसी बात की पुष्टि की थी कि कनकधारा यंत्र महत्वपूर्ण है, तथा व्यापार वृद्धि एवं दारिद्रय नाश में अद्भुत प्रभावशाली है, उन्होंने ही इस यंत्र का स्वरूप व विधि समझाई थी।

‘कनकधारा’ यंत्र का स्वरूप :

कनकधारा यंत्र पंच त्रिकोणों से निर्मित्त है। यंत्र के चारों तरफ तीन परिधि खींची जाती हैं जो कि तीन शक्तियों महाकाली (शत्रु संहार कत्रीं) महालक्ष्मी (धन धान्य प्रदान कत्री), महा सरस्वती (यश सम्मान प्रदान कत्रीं), की प्रतीक है, इसके पश्चात् गोल घेरा त्रिभुवन सुन्दरी का प्रतीक है, तत्पश्चात सोलह कमल दल है जो कि कुबेर सहचर के प्रतीक है, जिनके नाम है १. धन २. धान्य ३. पृथ्वी ४. भवन ५. कीर्ति ६. आयु ७. यश ८. सम्पदा ६. वाहन १०. स्त्री ११. सन्तान १२. राज्य सम्मान १३. स्वास्थ्य १४. प्रफुल्मता १५. भोग तथा १६. मोक्ष ।

इसके पश्चात् सोलह कमस दलों के भीतर अष्टदल का निर्माण होता है, जो कि अष्टलक्ष्मी सिद्धियों का प्रतीक है, जिनके नाम १. अणिमा २. महिमा ३. लधिमा ४. प्राप्ति ५. प्राकाम्य ६. ईशिता ७. वशिता तथा ८. ख्याति है, इसके पूजन से जीवन में किसी भी प्रकार का कोई अभाव नहीं रहता ।

इस अष्ट दल के भीतर का त्रिकोण ‘दारिद्रय विनाशक धनदा लक्ष्मी’ का प्रतीक है, इसके भीतर का त्रिकोण भुवनेश्वरी लक्ष्मी का परिचायक है, तथा त्रिकोण के मध्य का विन्दु भगवती का सूचक है जो कि समस्त अनिष्टों का नाश करने वाली तथा जीवन में प्रफुल्लता बढ़ाने वाली है, साधक को इस विन्दु पर स्वर्ण सिहासनारूढ़ भगवती लक्ष्मी की कल्पना करनी चाहिए ।

इस प्रकार से यह यंत्र समस्त प्रकार की धनदायक शक्तियों का परिचायक एवं सूचक है, तथा इस यंत्र की पूजा इन सारी शक्तियों की समग्र पूजा है।

कनकधारा यंत्र धातु निर्मित होता है तथा यंत्र का निर्माण अत्यन्त पेचीदा एवं सूक्ष्म है। कनकधारा यंत्र रहस्य’ हस्तलिखित प्रति के अनुसार इसे कूर्मपृष्ठीय बनाना चाहिए तथा घातु निर्मित हो, इसके साथ ही संजीवनी काल में ही इस यंत्र का निर्माण हो, क्योकि अशुद्ध एवं अप्रामाणिक यंत्र लाभ की बजाय हानि दे सकता है।

घर के अतिरिक्त, दुकान, कारखाना, फैक्ट्री, व्यवसाय स्थल पर भी इस यंत्र को स्थापित किया जा सकता है। ‘यंत्र राज’ ग्रन्थ के अनुसार इस यंत्र को घर में स्थापित करने से अटूट लक्ष्मी प्राप्त होती है, तथा घर में लक्ष्मी का चिरकाल तक वास रहता है।

यंत्र तभी फलदायक हो सकता है जब वह मंत्रसिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त हो, इस यंत्र पर संजीवनी सम्पुट युक्त प्राण प्रतिष्ठा होनी चाहिए, अपने घर में किसी भी बुधवार को इस यंत्र को स्थापित किया जा सकता है, गृहस्थ व्यक्तियों को, यदि शुद्ध मंत्रींच्चार एवं प्राण प्रतिष्ठा क्रिया का ज्ञान न हो तो उन्हें चाहिए कि वे किसी योग्य विद्वान से प्राण प्रतिष्ठा युक्त मंत्र सिद्ध कनकधारा यंत्र ही लें।

ओम अस्य श्री कनकधारा यंत्र मंत्रस्य

श्री आचार्य श्री शंकर भगवत्पाद ऋषिः श्री भुवनेश्वरी ऐश्वर्यदात्री महालक्ष्मी देवता, श्री बींज, हीं शक्ति, श्री विद्याः रजोगुण रसना ज्ञानेद्रियं भोग रसः वाक् कर्मेन्द्रिय, मध्यमं स्वरं द्रव्य तत्व, विद्या कला, ऐ कीलन तू उत्कीलन, प्रवाहिनी संचय मुद्रा, मम क्षेमस्थेर्यायुरारोग्याभि वृध्यर्थ श्री महा लक्ष्‌मी अष्ट लक्ष्यै भगवती दारिद्रय विनाशक धनदा लक्ष्मी प्रसाद सिद्ध्यर्थं च नमोयुत वाग् बीज स्व बीज लोम विलोम पुरितोक्त त्रि भूवन भूतिकरी प्रसीद माम् माला मंत्र जपे विनियोग।

कनकधारा ध्यान :

सरसिज निलये सरोज हस्ते । धवल तमाशुक गन्ध माल्य शोभे । भगवति हरि वल्लभे मनोजे त्रिभुवन भृति करि प्रसीद मह्यम् ॥१।।

कनकधारा मंत्र: – ॐ व श्रीं व ऐं ह्रीं श्रीं क्लीं कनकधाराये स्वाहा

कनकधारा यत्र एवं कनकधारा स्तोत्र का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है। व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने घर में मंत्रसिद्ध प्राण प्रतिष्ठा युक्त कनकधारा यंत्र स्थापित करें एवं कनकधारा स्तोत्र का पाठ करे । कनकधारा स्तोत्र स्वयं मंत्रमय है, अतः विभिन्न सम्पुट देकर स्तोत्र पाठ से विभिन्न कार्य सम्पन्न किये जा सकते हैं, उदाहरणार्थ धनदा सम्पुट से अतुल धन प्राप्ति, पुत्रेष्टि सम्पुट से पुत्र लाभ, संजीवनी सम्पुट से रोग मुक्ति, एवं अष्ट लक्ष्मी सम्पुट सेअटूट धन सम्पति प्राप्त की जा सकती है, विद्वानों के अनुसार श्री यंत्र एवं कनकधारा यंत्र का अद्भुत सामंजस्य है, जिसके पास श्री यंत्र है उनके लिए तो यह वरदान स्वरूप है, कि वे श्रीयंत्र के साथ ही कनकधारा यन्त्र भी स्थापित करें, इसके समान सामंजस्य विश्व में दुर्लभ है।

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