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50 हजार साल में पहली बार धरती के करीब से गुजरा धूमकेतु, ऐसा था आसमान में नजारा

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50 हजार साल में पहली बार धरती के करीब से गुजरा धूमकेतु, ऐसा था आसमान में नजारा आज रात यानी 2 फरवरी 2023 की शाम 7.10 बजे के आस पास मध्यप्रदेश के जबलपुर जिले में यह आसमान में हरे रंग का धूमकेतु C/2022 E3 (ZTF) देखा गया बताया जाता है कि यह धूमकेतु 50 हजार साल बाद आया है. पिछली बार यह हिमयुग (Ice Age) के समय आया था. उस समय इंसानों के ठीक पहले वाले पूर्वज निएंडरथल मानव धरती पर घूमते थे.

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प्लूटो के बाद का क्षेत्र धूमकेतु क्षेत्र है जिसके बाद गहन अंतरिक्ष शुरु हो जाता है। एक धूमकेतु मुख्य रूप से बर्फ व धूलकणों का बना होता है। यह बर्फ, मिथेन, अमोनिया, कार्बन डाईऑक्साइड, जल इत्यादि के जमने से बना होता है। इस बर्फ में कुछ चट्टानें भी जमी रहती हैं। यह धूमकेतु सूर्य के चारों ओर एक दीर्घवृत्तीय (elliptical) कक्षा में घूमता रहता है। धूमकेतु इस प्रकार सूर्य का चक्कर लगाते हैं कि इसकी पूंछ (tail) का फैलाव सदैव सूर्य के विपरीत दिशा में रहता है तथा सिर (head or coma ) सूर्य की ओर रहता है।

पुच्छलतारा (Comets)
“About Comets in Hindi” सूर्य से निकलनेवाली गैस सूर्य की विपरीत दिशा में अर्थात् धूमकेतु के केन्द्र से पीछे काफी दूर तक (करोड़ों किमी तक) फैल जाती है और इस प्रकार धूमकेतु की पूंछ बन जाती है, जो अंतरिक्ष में काफी दूर तक फैल जाती है।

धूमकेतु तारे का आवर्तकाल कितना होता है?

हैली धूमकेतु (आधिकारिक तौर पर नामित 1P/Halley) को एक लघु-अवधि धूमकेतु के रूप में बेहतर जाना जाता है। यह प्रत्येक ७५ से ७६ वर्ष के अंतराल में पृथ्वी से नजर आता है। हैली ही एक मात्र लघु-अवधि धूमकेतु है जिसे पृथ्वी से नग्न आँखों से साफ़-साफ़ देखा जा सकता है और यह नग्न आँखों से देखे जाने वाला एक मात्र धूमकेतु है जो मानव जीवन में दो बार दिखाई देता है। नग्न आँखों से दिखाई देने वाले अन्य धूमकेतु चमकदार और अधिक दर्शनीय हो सकते है लेकिन वह हजारों वर्षों में केवल एक बार दिखाई देते है।

पुच्छल तारे के बारे में ज्ञान

चमकते हुए खगोलीय पिंड जिनकी पूंछ हो उन्हें कॉमैट यानी पुच्छ हैं। ये सौर मंडल के ही भाग हैं और अपने निश्चित अक्ष पर सूर्य के चक्कर काटते हैं। कॉमैट पत्थरों, धूल तथा गैसों से बने होते हैं। इनकी पूंछ में अमोनिया, मिथेन, भाप तथा बर्फ के कण होते हैं। जब सूर्य की किरणें इन पर पड़ती हैं तो ये चमकते हैं। कुछ कॉमैट बहुत ही चमकीले होते हैं तथा सामान्य तौर पर आंखों द्वारा देखे जा सकते हैं परन्तु कई कॉमैट्स टैलीस्कोप द्वारा ही देखे जा सकते हैं। वैज्ञानिक इन कॉमैट्स का टैलीस्कोप द्वारा अध्ययन करते रहे थे। ऐसा अनुमान लगाया गया है कि हर साल औसतन 9 नए कॉमैट्स की खोज होती है।

हर कॉमैट के दो भाग होते हैं- सिर तथा पूंछ। ये आकार में बहुत बड़े होते हैं। कई कॉमैट इतने बड़े होते हैं कि इनके सिर सूर्य के आकार से कई गुना बड़े होते हैं इनकी पूंछ लाखों मील लम्बी होती है। सूर्य की विपरीत दिशा में बर्फ और धूल का चमकीला हिस्सा पूंछ की तरह से लगता है। इसे ‘कोमा’ कहा जाता है। यह हमेशा सूर्य से विपरीत दिशा में रहता है।सूर्य से दूर जाने पर धूल और बर्फ पुन: इनके नाभिक में जम जाती है। हर बार जब यह सूर्य के पास आता है तो इनकी कुछ न कुछ धूल और बर्फ बिखरती जाती है जिसके कारण इनकी पूंछ छोटी होती रहती है और अक्सर ये पूंछ विहीन हो जाते हैं। फिर ये धूमकेतु सूर्य के समीप आने पर भी पूंछ को प्रकट नहीं करते हैं जिन्हें पुच्छहीन धूमकेतु कहते हैं। तब ये शुद्र ग्रह या ग्रहिका की तरह लगते हैं।

कुछ कॉमैट्स प्रत्येक कुछ सालों बाद पृथ्वी के निकट आते हैं जबकि कुछ पृथ्वी के पास आने में हजारों साल लगा देते हैं क्योंकि सूर्य का एक चक्कर लगाने में इन्हें हजारों साल लग जाते हैं। कई बार कुछ कॉमैट्स पृथ्वी के निकट आते ही फट जाते हैं और उनमें से धूल और उल्का पिंड धरती पर आ गिरते हैं। ऐसा माना जाता है कि कॉमैट्स जिस धूल से बने होते हैं वह ग्रहों या उपग्रहों के ज्वालामुखी से उत्पन्न हुई है। कुछ वैज्ञानिकों ने यह माना कि कॉमैट सौर मंडल के साथ ही बने थे परन्तु अभी भी वैज्ञानिक इनकी शुरूआत को लेकर शंका में हैं।

कॉमेट हेली
कॉमेट हेली सभी कॉमैट्स में से सबसे बड़ा है। यह साढ़े 75 साल बाद धरती के नजदीक आता है और तभी नजर आता है। इसे पहली बार इंगलैंड के प्रसिद्ध एस्ट्रोनोमर एडमंड हेली ने 1682 में देखा और उसके बाद उनके नाम पर इस कॉमैट का नाम पड़ा। बाद में यह 1758, 1835 और 1910 में दिखाई दिया। सितम्बर 1909 तथा जुलाई 1911 के बीच कॉमैट पर शक्तिशाली टैलीस्कोप्स के सहारे कई प्रकार के अध्ययन हुए। यह 1986 में देखा गया जब एक अंतरिक्ष खोजी यान जियोटो द्वारा इसके नजदीकी फोटो लिए गए।

ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि यह साल 2061 में फिर से दिखेगा। एडमंड हेली, महान वैज्ञानिक न्यूटन के समकालीन थे। उन्होंने धूमकेतुओं के बारे में अध्ययन किया। उनका कहना था कि यही धूमकेतु सन् 1682 में दिखाई दिया था और यह वही धूमकेतु है जो सन् 1531 व 1607 तथा संभवत: सन् 1465 में भी दिखाई पड़ा था। उन्होंने गणना द्वारा भविष्यवाणी की कि यह सन् 1758 के अंत के समय पुन: दिखाई पड़ेगा। ऐसा हुआ भी कि यह पुच्छल तारा 1758 के बड़े दिन की रात्रि (क्रिसमस रात्रि) को दिखलाई दिया। तब से इसका नाम हेली धूमकेतु पड़ गया।

रोचक तथ्य

  • हेली की मृत्यु 14 जनवरी 1742 को हो गई यानी उन्होंने अपनी भविष्यवाणी सच होते नहीं देखी।
  • इसी धूमकेतु के साथ एक अन्य प्रसिद्ध व्यक्ति भी जुड़ा है। वह हैं प्रसिद्ध लेखक मार्क ट्वैन। इनका जन्म 30 नवम्बर 1835 को हेली धूमकेतु के आने पर हुआ था और मृत्यु 21 अप्रैल 1910 को, जब यह धूमकेतु अगली बार आया।
  • पुच्छल तारे सारी सभ्यताओं में अशुभ माने जाते रहे हैं परंतु विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि ये किसी अशुभ घटना या वैदिक प्रकोप का कारण नहीं हैं जबकि एक खगोलीय पिंड हैं।
  • ‘कॉमेट’ शब्द ग्रीक शब्द ‘कॉमेट्स’ से बना है जिसका अर्थ है ‘बालों वाला’। चूंकि धूमकेतु इसी तरह दिखते हैं इसलिए उनका यह नाम पड़ा।

हैली के भीतरी सौरमंडल
में लौटने पर इसका खगोलविज्ञानियों द्वारा २४० इ.पू. के बाद से अवलोकन और रिकार्ड दर्ज किया जाता रहा है। इस धूमकेतु के दिखने के स्पष्ट रिकॉर्ड चीनी, बेबीलोनियन और मध्यकालीन यूरोपीय शासकों द्वारा दर्ज किए गए थे परन्तु उस समय इसे आवर्ती धूमकेतु के रूप में नहीं पहचाना जा सका था। इसे आवर्ती धूमकेतु के रूप में सर्वप्रथम सन् १७०५ में अंग्रेज खगोलविज्ञानी एडमंड हैली द्वारा पहचाना गया था तथा बाद में उनके नाम पर इसका नाम हैली धूमकेतु रखा गया था। हैली धूमकेतु भीतरी सौरमंडल में आखरी बार सन् १९८६ में दिखाई दिया था और यह अगली बार सन् २०६१ के मध्य में दिखाई देगा।

सन् १९८६ में प्रवेश के दौरान हैली प्रथम धूमकेतु बना जिसका अंतरिक्ष यान द्वारा बारीकी से और विस्तार से अध्ययन किया गया। इसने हैली की नाभि की संरचना तथा कोमा और पूंछ के गठन के तंत्र का सबसे पहला अवलोकन डाटा उपलब्ध कराया। इस अवलोकन ने धूमकेतु की संरचना के बारे में लम्बे समय से चली आ रही अवधारणाओं को, विशेष रूप से फ्रेड व्हिपल के ‘ डर्टी स्नो बॉल ‘ मॉडल को आधार प्रदान किया। उन्होंने हैली की संरचना का सही अनुमान लगाया था कि यह अस्थिर पदार्थों के मिश्रण से बना है जैसे कि – पानी, कार्बन डाईआक्साइड, अमोनिया और धूल। इस मिशन ने जो डाटा उपलब्ध कराया है, उससे हैली के बारे में हमारे विचारो में काफी सुधार हुआ है। उदाहरण के लिए हमें अब यह समझ में आ रहा है कि हैली की सतह मोटे तौर पर धूल और गैर वाष्पशील पदार्थों से बनी है तथा उसका मात्र छोटा सा हिस्सा ही बर्फ या अस्थिर पदार्थ से बना हुआ है।

हैली की गणनाएं ऐतिहासिक दस्तावेजों में दर्ज धूमकेतुओं के पूर्व के दर्शनों को खोजने में सक्षम है। निम्नलिखित सारणी २४० ईपू के बाद से अब तक की हैली धूमकेतु के प्रत्येक दर्शन को खगोलीय पदनाम के साथ दर्शाती है।

1P/−239 K1, −239 (25 मई 240 ईपू)
1P/−163 U1, −163 (12 नवम्बर 164 ईपू)
1P/−86 Q1, −86 (6 अगस्त 87 ईपू)
1P/−11 Q1, −11 (10 अक्टूबर 12 ईपू)
1P/66 B1, 66 (25 जनवरी 66 AD)
1P/141 F1, 141 (22 मार्च 141)
1P/218 H1, 218 (17 मई 218)
1P/295 J1, 295 (20 अप्रैल 295)
1P/374 E1, 374 (16 फ़रवरी 374)
1P/451 L1, 451 (28 जून 451)
1P/530 Q1, 530 (27 सितंबर 530)
1P/607 H1, 607 (15 मार्च 607)
1P/684 R1, 684 (2 अक्टूबर 684)
1P/760 K1, 760 (20 मई 760)
1P/837 F1, 837 (28 फ़रवरी 837)
1P/912 J1, 912 (18 जुलाई 912)
1P/989 N1, 989 (5 सितंबर 989)
1P/1066 G1, 1066 (20 मार्च 1066)
1P/1145 G1, 1145 (18 अप्रैल 1145)
1P/1222 R1, 1222 (28 सितंबर 1222)
1P/1301 R1, 1301 (25 अक्टूबर 1301)
1P/1378 S1, 1378 (10 नवम्बर 1378)
1P/1456 K1, 1456 (9

जून 1456)
1P/1531 P1, 1531 (26 अगस्त 1531)
1P/1607 S1, 1607 (27 अक्टूबर 1607)
1P/1682 Q1, 1682 (15 सितंबर 1682)
1P/1758 Y1, 1759 I (13 मार्च 1759, हैली के होने की संभावना)
1P/1835 P1, 1835 III (16 नवम्बर 1835)
1P/1909 R1, 1910 II, 1909c (20 अप्रैल 1910)
1P/1982 U1, 1986 III, 1982i (9 फ़रवरी 1986)
अगला संभावित दर्शन 28 जुलाई 2061

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