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छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा शाइस्ता खां पर किए गए आक्रमण का रोचक वर्णन :- 5 अप्रैल, 1663 ई. को शाइस्ता खां अपने हरम व शाही फौज के साथ पूना के उसी लाल महल में था, जिसमें बाल शिवाजी का बचपन बिता था। शिवाजी महाराज ने रात्रि के समय हमला करने का फैसला किया।
शिवाजी महाराज ने 1000 मराठा बहादुरों को अपने साथ लिया और अपने पीछे 1-1 हजार की 2 फौजें नेताजी पालकर व मोरोपन्त पेशवा के नेतृत्व में लीं। सबसे पहले शिवाजी महाराज ने एक नकली शादी के बहाने से बाराती बनकर मराठों के साथ पूना नगर में प्रवेश किया।
शिवाजी महाराज ने पूना में अपना बचपन बिताया था, इसलिए वे इस जगह से अच्छी तरह वाकिफ थे। शाइस्ता खां के महल में जश्न चल रहा था व बहुत से मुगल सो गए थे। शिवाजी महाराज ने 400 मराठों व अपने 2 अंगरक्षकों बाबाजी बापूजी व चिमनाजी बापूजी के साथ महल में प्रवेश किया।
चिमनाजी ने 200 मराठों के साथ हरम में व शिवाजी महाराज ने शाइस्ता खां के कमरे में प्रवेश किया। शिवाजी महाराज ने शाइस्ता खां की 4 अंगुलियाँ काट दीं।
बाबाजी बापूजी 200 मराठों के साथ चल रहे थे, जो सामने आया उसका खात्मा कर दिया व कमरों में घुस-घुसकर सोते हुए मुगलों को भी मार दिया। इस अफरातफरी में हरम की 8 औरतें जख्मी हुईं, शाइस्ता खां का बेटा अबुल फतह मारा गया, 2 बेटे जख्मी हुए, शाइस्ता खां के 40 आदमी और 6 दासियाँ मारी गईं। 6 मराठे इस लड़ाई में काम आए और 40 जख्मी हुए।
खजाइनुलफुतुह में खफी खां ने लिखा है कि “मेरा बाप उस वक्त शाइस्ता खां के पास मौजूद था। इस फसाद के होने से बादशाह आलमगीर ने नाराज होकर शाइस्ता खां को बंगाले की सूबेदारी पर भेज दिया और दक्षिण की सूबेदारी शहजादे मुअज्जम को देकर उस तरफ भेजा”
अफ़ज़ल खां के वध के बाद औरंगज़ेब के मामा शाइस्ता खां जैसे बड़े ओहदे वाले सिपहसालार की ऐसी दुर्दशा करके शिवाजी महाराज ने हिंदुस्तान भर में वाहवाही लूटी।