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सिरोही के महाराव राय सिंह देवडा द्वारा परबत सिंह जी सिसोदिया को पिण्डवाडा की जागीर दी गई थी। परबत सिंह जी मेवाड़ के महाराणा उदयसिंह जी के पुत्र रुद्रसिंह जी के पुत्र थे। इनके वंशजों में साणवाडा, सांगवाडा, धनारी, झाडोली आदि जागीरें विभक्त हुई। राणावत परबत सिंह जी के बाद पिण्डवाडा में क्रमश साहेबसिंह, अमरसिंह, प्रतापसिंह, संग्रामसिंह व सवाईसिंह जी हुए।
सवाईसिंह जी ने धनारी के ठाकुर जालमसिंह जी को गोद लिया था। ठाकुर जालम सिंह जी निसंतान थे, जिससे पिण्डवाडा खालसा राज घोषित किया गया। सन 1811 के पश्चात पिण्डवाडा किसी को भी जागीर में पुनः नहीं मिला।
यह रूद्र सिंह जगमाल के पौत्र है। महाराव रायसिंह ने समझौते के तोर पर पिंडवाड़ा जागीर दी थी यह जगमाल के वंशज हैं। और झाड़ोली इनके जागीर में नहीं था यह साजिश के तौर पर बिठाया गया था यह सोलंकी की जागीर था।