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1597 ई. – आमेर के राजा मानसिंह कछवाहा के 2 पुत्रों ठाकुर हिम्मत सिंह व ठाकुर दुर्जन सिंह की मृत्यु हुई। इसी वर्ष मेवाड़ के सामन्त रुपनगर (देसूरी) के ठाकुर देवराज सिंह का देहान्त हुआ | ठाकुर वीरमदेव रुपनगर की गद्दी पर बैठे |
अपने पिता महाराणा प्रताप को आखिरी समय में दिए गए वचनों को याद करते हुए महाराणा अमरसिंह ने मेवाड़ के बाहर तैनात मुगल थानों पर हमले व लूटमार करना शुरु कर दिया। महाराणा ने गुजरात के कई इलाकों व मालवा के सिरोंज नामक क्षेत्र में मुगल थाने लूटकर तहस-नहस करते हुए पूरा सिरोंज जला दिया। महाराणा अमरसिंह द्वारा की गई ये कार्यवाहियां मुगलों के लिए इतनी भयावह थीं, कि ख़ुद मुगल बादशाह अकबर को मेवाड़ आने पर विवश होना पड़ा।
1598 ई. – इस वर्ष अकबर ने अपनी राजधानी लाहौर से फिर आगरा को बनाई “अकबर द्वारा महाराणा अमरसिंह के विरुद्ध पहला सैन्य अभियान” महाराणा अमरसिंह द्वारा लगातार मेवाड़ और मेवाड़ के बाहरी मुगल आधीन प्रदेशों में लूटमार की खबरें जब बादशाह अकबर के कानों में पड़ी, तो उसने खुद मुगल फौज की कमान अपने हाथों में ली और मेवाड़ फतह करने के इरादे से अजमेर पहुंचा | वहां कुछ समय रुककर मेवाड़ में प्रवेश किया |
अकबर ने इस अभियान का नेतृत्व स्वयं इसलिए किया, क्योंकि उसे लगा कि जो कार्य वह तीस वर्षों में ना कर सका (1567 ई. – 97 ई.), उसे वह महाराणा अमरसिंह के समय में पूरा करे |
अकबर अपने पूरे जीवनकाल में 3 बार मेवाड़ आया :-
१) 1567 ई. में महाराणा उदयसिंह के समय
२) 1576 ई. में महाराणा प्रताप के समय
३) 1598 ई. में महाराणा अमरसिंह के समय
अकबर मेवाड़ में जगह-जगह मुगल थाने बिठाता हुआ आगे बढ़ता रहा | महाराणा अमरसिंह इस समय उदयपुर के महलों में थे | महाराणा ने फौरन उदयपुर के महलों को खाली करवाकर वहां की प्रजा व समस्त सैनिकों के साथ पहाड़ियों में प्रवेश किया | अकबर मुगल थाने बिठाता हुआ उदयपुर पहुंचा, जहां उसे सिवाय खाली पड़े महलों के कुछ हाथ न लगा | महाराणा अमरसिंह अपने पिता के समय से ही कईं छापामार लड़ाईयाँ लड़ चुके थे, इसलिए वे मेवाड़ के पहाड़ी मार्गों से अच्छी तरह परिचित थे |
प्रजा की सुरक्षा तय करने के पश्चात् महाराणा अमरसिंह मेवाड़ी फौज और भीलों की फौजी टुकड़ियों के साथ पहाड़ियों से निकले और उदयपुर के अलावा जितने भी मुगल थाने अकबर ने बिठाए, उन सभी पर तेजी से आक्रमण करते हुए एक हफ्ते के अन्दर सारे मुगल थाने उखाड़ फेंके |
अकबर उदयपुर में था, तब उसे खबर मिली की दक्षिण भारत में मुगलों के खिलाफ गद्र हो गया, जिसके चलते अकबर ने उदयपुर में मुगल थाना बिठाकर दक्षिण में कूच किया | महाराणा अमरसिंह ने उदयपुर के महलों में तैनात मुगलों को मार-भगाकर अधिकार स्थापित किया | इस घटना के बाद अकबर ने मेवाड़ पर फौजें जरुर भेजीं, लेकिन खुद जीते-जी कभी मेवाड़ नहीं आया | इस तरह अकबर का ये अभियान इतना निर्मूल साबित हुआ कि अबुल फ़ज़ल ने इस अभियान हेतु एक शब्द तक अकबरनामा में नहीं लिखा।
इस घटना को वीरविनोद के लेखक कविराज श्यामलदास इस तरह लिखते हैं “महाराणा अमरसिंह का जोर-शोर बादशाह ने बहुत दिनों तक सुना, तो मेवाड़ पर चढाई की | महाराणा भी सामना करने की तैयारी में मशगूल हुए | पहिले बादशाह ने फौज भेजी और फिर वह उदयपुर की तरफ चला | महाराणा ने बादशाही फौज पर कई बार हमले किए और बहुत से बादशाही परगने लूटकर पहाड़ों में चले आए | बादशाही फौज के काबू में महाराणा नहीं आए” ।