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क्या कभी आप बद्रीनाथ, केदारनाथ , हरिद्वार, गया जी आदि की यात्रा पर गए हैं? यहाँ के पण्डे आपके आते ही आपके पास पहुँच कर आपसे सवाल करेंगे… आप किस जगह से आये है? मूल निवास? आदि पूछेंगे और धीरे धीरे पूछते पूछते आपके दादा, परदादा ही नहीं बल्कि परदादा के परदादा से भी आगे की पीढ़ियों के नाम बता देंगे जिन्हें आपने कभी सुना भी नही होगा.. और ये सब उनकी सैंकड़ो सालों से चली आ रही किताबो में सुरक्षित है ।
विश्वास कीजिये ये अदभुत विज्ञान और कला का संगम है..आप रोमांचित हो जाते है जब वो आपके पूर्वजों तक का बहीखाता सामने रख देते हैं…आपके पूर्वज कभी वहाँ आए थे और उन्होंने क्या क्या दान आदि किया ।
लेकिन आजकल के शहरी इन सब बातों को फ़िज़ूल समझते हैं उन्हें लगता है कि ये पण्डे सिर्फ लूटने बैठे हैं जबकि ऐसा नही है… गया यात्रा के दौरान एक मेरे मित्र के पैसे चोरी हो गए थे या गिर गए थे वो बहुत घबरा गया कि घर कैसे जाएगा, कहाँ रहेगा खायेगा आदि, तो पण्डे ने तत्काल पूछा कितने पैसे चाहिए आपको? और पण्डे जी ने ना सिर्फ पैसे दिए बल्कि रहने और खाने की व्यवस्था भी करवाई ।
ये तीर्थो के पण्डे हमारी सभ्यता,संस्कृति के अटूट अंग है इनका अस्तित्व हमारे पर ही है.. अपनी संस्कृति बचाइए और इन्हें सम्मान दीजिये…वैसे हिन्दुओ के नागरिकता रजिस्टर हैं ये लोग…पीढ़ियों के डेटा इन्होंने मेहनत से बनाया और संजोया है…इन्हें सम्मान दीजिये ।