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विवाह के बाद वर और वधु एक दूसरे के अनुकूल रहें, संतान सुख, धन दौलत में वृद्धि, दीर्घ आयु हो, इस वजह से ही दोनों पक्ष के 36 गुणों का मिलान किया जाता है, मुहूर्तचिंतामणि ग्रंथ में अष्टकूट में वर्ण, वश्य, तारा, योनि, ग्रह मैत्री, गण, भकूट और नाड़ी को शामिल किया गया है..ये अष्टकूट है, वर्ण, वश्य, तारा, योनी, ग्रहमैत्री,गण, राशि, नाड़ी। गुण मिलान के साथ यदि इन अष्टकूट का मिलान सही ढंग से नहीं होता है तो विवाह में जीवन भर बाधा आती है। विवाह के लिए वर-वधू की जन्म-कुंडली मिलान करते नक्षत्र मेलापक के अष्टकूटों में नाड़ी को सबसे महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता है। विवाह के पूर्व वर-वधू की कुंडली का मिलान कैसे करें और क्या सावधानी रखें ताकि विवाह सुचारू रूप से संपन्न हो कर जीवन भर एक दूसरे का साथ सुख-समृद्धि के कायम रहे।
• अष्टकूट मिलान में 36 अंकों का वितरण
वर्ण : 1
वश्य : 2
तारा : 3
योनि : 4
मैत्री : 5
गण : 6
भकूट : 7
नाड़ी : 8
1. नाड़ी दोष –
हर नक्षत्र के अनुसार बालक-बालिका की नाड़ी अलग होती है। इससे वर-कन्या की सेहत और संतान उत्पत्ति की स्थिति देखी जाती है। अगर वर और कन्या की नाड़ी एक हो तो सेहत की समस्या और संतान की समस्या होती है। एक नाड़ी होने पर तभी विवाह कर सकते है, जब नक्षत्र एक हो और उनके चरण अलग-अलग हो। या वर और कन्या दोनों का बृहस्पति अच्छी स्तिथि में हो। कुंडली मिलान के समय इस महत्वपूर्ण तथ्य को हमेशा ध्यान में रखें और जिस पंडित से कुंडली मिलवा रहे हैं उससे जरूर प्रश्न करें की दोनों की नाड़ी एक तो नहीं है ?
2. मंगल दोष –
कुंडली में मंगल की विशेष स्थानों पर होने से मंगल दोष पैदा होता है। कुंडली मैं प्रथम, चतुर्थ, 1, 4, 6, 7 वे, 8वे और 12वे स्थान में मंगल हो तो, व्यक्ति मांगलिक होता है, और यह एक महत्वपूर्ण दोष होता है। अगर एक की कुंडली में मंगल दोष हो तो दूसरी कुंडली मैं उसका निवारण जरूर होना चाहिए। कभी-कभी मंगल दोष इतना खतरनाक होता है कि दोनों व्यक्तियों में तालमेल काफी ख़राब हो जाता है। मंगल दोष की शांति के लिए सबसे उत्तम होता है, हनुमान जी, और कुमार कार्तिकेय कि, पूजा करना। इसके अतिरिक्त और भी बहुत सारे उपाय हैं, इसके द्वारा मंगल शांत हो जाता है !
3.भकूट –
राशियों का आपसी संबंध और वर-कन्या के स्वभाव का मिलान करना भकूट कहलाता है। भकूट दोष होने पर तालमेल मैं काफी समस्या आती है। राशियां अगर एक दूसरे से द्विद्वासः,पसदास्थाक या नवपंचक हो तो भकूट दोष बन जाता है। अगर वर-कन्या की राशियों में मित्रता हो या दोनों के स्वामी एक हो तो ये दोष भंग हो जाता है।
4. गण दोष –
अलग-अलग नक्षत्रो के अलग-अलग गण होते है। कुल मिलाकर तीन गण होते है – मानव, देव और राक्षस। अगर गण में तालमेल न हो तो संबंध शत्रुता में बदल जाता है। राक्षस और मानव गण का विवाह सबसे ज्यादा अनुचित होता है। इसके परिणाम स्वरुप संबंध बहुत ख़राब हो जाते है।अगर वर-कन्या की राशियों में उत्तम मित्रता हो तो गण दोष भंग हो जाता है।
5. ग्रह मैत्री-
कुंडली मिलान में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण पक्ष है ग्रह मैत्री। वर और कन्या के ग्रहो में पर्याप्त मित्रता होनी चाहिए, नहीं तो वैवाहिक जीवन में मुश्किलों का अंत नहीं होता। दोनों के बीच आपस में विचार नहीं मिलते हैं। अगर ग्रहो में पर्याप्त मित्रता है तो गण दोष, भकूट दोष और बाकि दोषों का प्रभाव नहीं पड़ता। अच्छी ग्रह मैत्री होने पर विवाह उत्तम होता है और तालमेल श्रेष्ठ होता है।
6. वर्ण
वर्ण का अर्थ होता है स्वभाव और रंग। वर्ण 4 होते हैं- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र।
लड़के या लड़की की जाति कुछ भी हो, लेकिन उनका स्वभाव और रंग उक्त 4 में से 1 होगा। मिलान में इस मानसिक और शारीरिक मेल का बहुत महत्व है। यहां रंग का इतना महत्व नहीं है जितना कि, स्वभाव का है।
7. वश्य –
वश्य का संबंध भी मूल व्यक्तित्व से है। वश्य 5 प्रकार के होते हैं- चतुष्पाद, कीट, वनचर, द्विपाद और जलचर। जिस प्रकार कोई वनचर जल में नहीं रह सकता, उसी प्रकार कोई जलचर जंतु कैसे वन में रह सकता है?
8. तारा-
तारा का संबंध दोनों के भाग्य से है। जन्म नक्षत्र से लेकर 27 नक्षत्रों को 9 भागों में बांटकर 9 तारा बनाई गई है- जन्म, संपत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, वध, साधक, मित्र और अमित्र। वर के नक्षत्र से वधू और वधू के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक तारा गिनने पर विपत, प्रत्यरि और वध नहीं होना चाहिए, शेष तारे ठीक होते हैं।
9. योनि –
योनि का संबंध संभोग से होता है जिस तरह कोई जलचर का संबंध वनचर से नहीं हो सकता उसी तरह से ही संबंधों की जांच की जाती है विभिन्न जीव-जंतुओं के आधार पर 13 योनियां नियुक्त की गई हैं- अश्व, गज, मेष, सर्प, श्वान, मार्जार, मूषक, महिष, व्याघ्र, मृग, वानर, नकुल और सिंह हर नक्षत्र को एक योनि दी गई है। इसी के अनुसार व्यक्ति का मानसिक स्तर बनता है। विवाह में विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण योनि के कारण ही तो होता है। शरीर संतुष्टि के लिए योनि मिलान भी आवश्यक होता है…कुल 36 गुणों में से 18 से 21 गुण मिलने पर मिलान मध्यम माना जाता है, इससे अधिक गुण मिलने पर उसे th Send gift मिलान कहते हैं, किसी भी वर और वधु का गुण मिलना अत्यंत ही दुर्लभ माना जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीराम और माता गीता ही के ही 36 गुण मिले थे…
Note :- इसमें सर्वाधिक पीड़ित करने वाले मंगल दोष का परिहार पापक ग्रहों से हो जाता है, उदाहरण के लिए सप्तम भाव में मंगल भयंकर मांगलिक दोष बनाता है, किंतु बारहवें भाव में बैठा शनि इस दोष को स्वतह समाप्त कर देता है!गुण भी २८ से चौंतीस श्रेष्ठ माने जाते हैं!