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भगत सिंह से जुड़े 13 रोचक तथ्य

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भगत सिंह 23 मार्च 1931 की उस शाम का लंबे समय से इंतजार कर रहे थे। अपने आखिरी खत में भी उन्होंने इसका जिक्र किया था। भगत सिंह ने खत में लिखा, ‘साथियों स्वाभाविक है जीने की इच्छा मुझमें भी होनी चाहिए। मैं इसे छिपाना नहीं चाहता हूं, लेकिन मैं एक शर्त पर जिंदा रह सकता हूं कि कैंद होकर या पाबंद होकर न रहूं। मेरा नाम हिन्दुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है। क्रांतिकारी दलों के आदर्शों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है, इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में मैं इससे ऊंचा नहीं हो सकता था।

मेरे हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ने की सूरत में देश की माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह की उम्मीद करेंगी। इससे आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जाएगी कि क्रांति को रोकना नामुमकिन हो जाएगा। आजकल मुझे खुद पर बहुत गर्व है। अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है। कामना है कि यह और नजदीक हो जाए’।

भगत सिंह कहते थे, 1931 से 1947 के बीच आजादी के 125 से भी ज्यादा दीवाने फांसी के फंदे पर झूल गए और उन नौजवानों के लिए भरत सिंह की कुर्बानी एक मिसाल बनकर सामने आई। साल बीत गए, लेकिन कुर्बानी की वो कहानी आज भी इस मुल्क की हिम्मत है, सलाम है शहीद-ए-आजम भगत सिंह को, जिन्होंने सबकुछ लुटाकर, हिन्दुस्तान को सबकुछ दिला दिया।

भगत सिंह को जिस दिन फांसी दी जानी थी उस रोज भी वो मुस्कुरा रहे थे। उनके चेहरे पर शिकन पर कोई निशान नहीं था, लेकिन लाहौर की उस जेल में हर कैदी की आंखें नम थीं। फांसी की कार्रवाई शुरू होने से पहले भगत सिंह ने अपनी ऊंची आवाज में देश को एक छोटा सा संदेश भी दिया। भगत सिंह ने कहा कि आप नारा लगाते हैं, इंकलाब जिंदाबाद, मैं ये मानकर चल रहा हूं कि आप वास्तव में ऐसा ही चाहते हैं।

अब आप सिर्फ अपने बारे में सोचना बंद करें, व्यक्तिगत आराम के सपने को छोड़ दें, हमें इंच-इंच आगे बढ़ना होगा। इसके लिए साहस, दृढ़ता और मजबूत संकल्प चाहिए। कोई भी मुश्किल आपको रास्ते से डिगाए नहीं। किसी विश्वासघात से दिल न टूटे। पीड़ा और बलिदान से गुजरकर आपको विजय प्राप्त होगी। ये व्यक्तिगत जीत क्रांति की बहुमूल्य संपदा बनेंगी।

1.भगत सिंह शादी नहीं करना चाहते थे. ऐसे में उनके माता-पिता ने उनकी शादी करने की कोशिश की, तो वह अपना घर छोड़कर कानपुर चले गए थे. उन्होंने यह कहते हुए घर छोड़ दिया था कि “अगर मेरा विवाह गुलाम भारत में हुआ, तो मेरी वधु केवल मृत्यु होगी”.

2. उन्होंने सुखदेव के साथ मिलकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने की योजना बनाई और लाहौर में पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट को मारने की साजिश रची. हालांकि पहचानने में गलती हो जाने के कारण उन्होंने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स को गोली मार दी थी.3. सिख होने के नाते भगत सिंह के लिए उनकी दाढ़ी और बाल बहुत महत्वपूर्ण थे. मगर उन्होंने बाल कटवा दिए, ताकि वह अंग्रेज उन्हें पकड़ न सके. अंतत: वह ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के बाद लाहौर से भागने में सफल रहे थे.

4. ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या के करीब एक साल के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दिल्ली के सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंके और इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाए. साथ ही इस बार उन्होंने खुद को गिरफ्तार हो जाने दिया.

5. जेल के अंदर भी भगत सिंह का क्रांतिकारी रवैया कायम रहा. उन्होंने आक्रामक तरीके से भारत की स्वतंत्रता के लिए कैदियों को प्रेरित किया और अंग्रेजों को नाकों चने चबवा दिए.

6. अपने मुकदमे की सुनवाई के समय उन्होंने अपना कोई बचाव पेश नहीं किया, बल्कि इस अवसर का इस्तेमाल उन्होंने भारत की आजादी की योजना का प्रचार करने में किया.
7. उनको मौत की सजा 7 अक्टूबर 1930 को सुनाई गई, जिसे उन्होंने निर्भय होकर सुना.

8. जेल में रहते हुए उन्होंने कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार करने की मांग की. उनके साथ इलाज में भेदभाव के विरोध में उन्होंने 116 दिन की भूख हड़ताल भी की थी.

9. उनकी फांसी की सजा को 24 मार्च 1931 से 11 घंटे घटाकर 23 मार्च 1931 को शाम 7:30 बजे कर दिया गया. उन्हें फांसी की सजा सुनाने वाला न्यायाधीश का नाम जी.सी. हिल्टन था.

10. ऐसा कहा जाता है कि कोई भी मजिस्ट्रेट उनकी फांसी के समय उपस्थित रहने को तैयार नहीं था. उनकी मौत के असली वारंट की अवधि समाप्त होने के बाद एक जज ने वारंट पर हस्ताक्षर किए और फांसी के समय तक उपस्थित रहे.

11.भगत सिंह हंसते-हंसते फांसी पर चढ़ गए और “ब्रिटिश साम्राज्यवाद का नाश हो” यह उनके द्वारा ब्रिटिशों के खिलाफ अंतिम नारा था.

12. कहा जाता है कि भगत सिंह की आखिरी इच्छा थी कि उन्हें फांसी पर लटकाने की जगह गोली मार कर मौत दी जाए. मगर अंग्रेजों ने उनकी इस इच्छा को नहीं माना.

13. इस तरह भारत के सबसे प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी को केवल 23 साल की उम्र में फांसी दी गई. उनकी मृत्यु ने सैकड़ों लोगों को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया.

छोटे भाई कुलतार के नाम क्रांतिकारी भगतसिंह जी का पत्र फांसी से 20 दिन पहले 3 मार्च, 1931 को सेंट्रल जेल, लाहौर, से लिखा गया :-

अजीज कुलतार,

आज तुम्हारी आँखों में आँसू देखकर बहुत दुख हुआ। आज तुम्हारी बातों में बहुत दर्द था, तुम्हारे आँसू मुझसे सहन नहीं होते। बरखुर्दार, हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का ख्याल रखना। हौसला रखना और क्या कहूँ!

उसे यह फ़िक्र है हरदम नया तर्ज़े-ज़फा क्या है, हमे यह शौक़ है देखें सितम की इन्तहा क्या है।
दहर से क्यों खफ़ा रहें, चर्ख़ का क्यों गिला करें, सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें।
कोई दम का मेहमाँ हूँ ऐ अहले-महफ़िल, चराग़े-सहर हूँ बुझा चाहता हूँ।
हवा में रहेगी मेरे ख्याल की बिजली, ये मुश्ते-ख़ाक है फानी, रहे रहे न रहे।

अच्छा रुख़सत। खुश रहो अहले-वतन; हम तो सफ़र करते हैं। हिम्मत से रहना। नमस्ते।

तुम्हारा भाई,
भगतसिंह

 

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