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कौन है ज्ञानवापी मंदिर के व्यास जी, क्या था तहखाने’ का इतिहास ?

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इनका नाम है केदार नाथ व्यास। अगर आज हिंदुओं को ज्ञानवापी मंदिर में पूजा करने का अवसर मिलता है तो यह केवल उनके और उनके परिवार के कारण है। ज्ञानवापी मंदिर में 4 तहखाना हैं, कल कोर्ट ने एक तहखाना में हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दे दी, उस तहखाना को व्यास जी का तहखाना कहा जाता है। यह तहखाना मस्जिद के भीतर है। व्यास तहखाना मस्जिद के नीचे स्थित है। इसी में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां मिली हैं। एएसआई की सर्वे रिपोर्ट में इसमें कई अहम हिंदू मंदिर होने के सबूत मिले हैं।

उनका परिवार 1580 से वास्तविक काशी विश्वनाथ की पूजा करता आ रहा है। उन्होंने 1880 में मामला दायर किया और 1937 में जीत हासिल की। 1947 में मुस्लिमों ने उस स्थान पर कब्ज़ा करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मुस्लिमों से युद्ध किया और उन्हें कब्ज़ा नहीं करने दिया।

यहां 1993 तक पूजा होती थी, लेकिन नवंबर 1993 में मुलायम सिंह यादव की सरकार ने इसे अवैध रूप से बंद करा दिया था। यह मामला उनके परिवार के सदस्यों द्वारा दायर किया गया था और पूजा की अनुमति मांगी गई थी। पूजा करने वाले पुजारियों को हटा दिया गया था।

काशी विश्वनाथ ट्रस्ट बोर्ड की ओर से अब रोज यहां पर पूजा-अर्चना होगी। हिंदू पक्ष के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि भगवान नंदी जहां पर विराजमान हैं, उसके ठीक सामने व्यास परिसर का तहखाना है। 2020 में श्री केदारनाथ जी व्यास हमेशा के लिए इस दुनिया से चले गये। 1947 में भारत को आजादी मिल गई लेकिन हिंदू को नहीं, लड़ाई अभी भी जारी है।

17वीं शताब्दी में था हिंदू मंदिर

जिला अदालत का ये फैसला व्यासजी का तहखाना में हिंदू प्रार्थनाओं के आयोजन की अनुमति देने को लेकर है. अब तक ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर कई याचिकाएं डाली गई हैं. साइट के ऐतिहासिक महत्व को समझने के लिए आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया इसपर अध्ययन कर रहा है. हाल ही में आई ASI की रिपोर्ट के मुताबिक, 17वीं शताब्दी में ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण से पहले एक बड़ा हिंदू मंदिर था. 

क्या है व्यासजी का तहखाना? 

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में चार तहखाने हैं, जिनमें से एक व्यास परिवार के कब्जे में है. इसे ‘व्यासजी का तहखाना’ के नाम से जाना जाता है. ऐतिहासिक रूप से इस तहखाने में व्यास परिवार के सदस्य रहते थे, जो यहां पूजा-पाठ करते थे. हालांकि, साल 1993 में अधिकारियों ने तहखाने तक पहुंच प्रतिबंधित कर दी थी. इसके बाद शैलेन्द्र कुमार पाठक व्यास ने तहखाना में पूजा फिर से शुरू करने की अनुमति के लिए मुकदमा दायर किया था. अब जिला जज ने इसकी अनुमति दे दी है. काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के अधीन तहखाने की पूजा की जाएगी. 

कैसे पड़ा तहखाने का नाम?
हिंदू पक्ष के मुताबिक, व्यास परिवार 2 शताब्दियों से तहखाने के अंदर पूजा कर रहा था। ब्रिटिश शासन के दौरान भी परिवार को तहखाने का नियंत्रण प्राप्त था। याचिकाकर्ता के वकील ने कहा, “1819 में दंगों के बाद ब्रिटिश प्रशासन ने ज्ञानवापी मस्जिद के कुछ हिस्सों का नियंत्रण हिंदुओं को दे दिया था। मंदिर के पास रहने वाले व्यास परिवार ने तब तहखाने में पूजा करना शुरू की। इसी आधार पर इसका नाम व्यास जी का तहखाना पड़ गया।”

तहखाने में क्यों बंद की गई थी पूजा?
आजादी के बाद भी व्यास परिवार तहखाने में पूजा करता था। हालांकि, 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया। इसके अगले साल यानी 1993 में राज्य में मुलायम सिंह यादव की सरकार बनी। 1993 में मुलायम सरकार ने सुरक्षा स्थितियों का हवाला देते हुए मौखिक आदेश के जरिए तहखाने में पूजा बंद करवा दी थी। यहां मौजूद पुजारियों को भी हटा दिया गया था।

किसने की थी तहखाने में पूजा की मांग?
तहखाने में दोबारा पूजा शुरू किए जाने को लेकर व्यास परिवार के शैलेंद्र कुमार पाठक ने याचिका दायर की थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के सर्वे के दौरान भी तहखाने की साफ-सफाई हुई थी। 17 जनवरी को व्यास जी के तहखाने को जिला प्रशासन ने अपने कब्जे में ले लिया था। इसके बाद 31 जनवरी को फैसला सुनाते हुए कोर्ट ने हिंदू पक्ष को तहखाने में पूजा का अधिकार दे दिया।

क्या श्रृंगार गौरी मामले से अलग है तहखाने का मामला?
अगस्त, 2021 में 5 महिलाओं ने याचिका दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजन-दर्शन की मांग की थी। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने परिसर के ASI सर्वे का आदेश दिया था। इसी परिसर में तहखाना भी मौजूद है, इसलिए तहखाने का सर्वे भी हुआ था। हालांकि, फिलहाल जिस मामले में तहखाने में पूजा की अनुमति मिली है, वो श्रृंगार गौरी से अलग है।

तहखाने पर हिंदू पक्ष का क्या है दावा?
सोमनाथ व्यास ने 1991 में तहखाने की जमीन पर मालिकाना हक के लिए एक मूल वाद दाखिल किया था। व्यास का दावा था कि तहखाना, मंदिर और उसकी जमीन उनके कब्जे में है। उन्होंने कहा था कि हिंदू यहां पूजा करते हैं और इसे आदि विश्वेश्वर का मंदिर मान परिक्रमा भी करते हैं। 2000 में सोमनाथ व्यास के निधन के बाद उनके वकील विजय शंकर रस्तोगी स्वयंभू भगवान आदि विश्वेश्वर के सखा बन कर मुकदमा लड़ रहे हैं।

मामले पर किस पक्ष ने क्या कहा?
फैसले को हिंदू पक्ष ने ऐतिहासिक बताया है तो मुस्लिम पक्ष ने निराशा जाहिर की है। आज मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, जहां से उन्हें हाई कोर्ट जाने को कहा गया है। मस्जिद समिति के वकील अखलाक अहमद ने कहा, “आदेश में 2022 की एडवोकेट कमिश्नर रिपोर्ट, ASI रिपोर्ट और 1937 के फैसले को नजरअंदाज किया गया है। हिंदू पक्ष ने इस बात का कोई सबूत नहीं दिया कि 1993 से पहले प्रार्थनाएं होती थीं।”

इतिहास के पन्ने क्या कहते हैं
देश के जाने-माने इतिहासकार डॉ. रवि भट्ट ने बताया कि चीन का एक यात्री था उसने भी यहां का भ्रमण किया था. तराइन का युद्ध भारत के इतिहास का बहुत ही महत्वपूर्ण युद्ध है यह युद्ध दिल्ली के चौहान राजपूत शासक पृथ्वीराज और मोहम्मद गौरी के बीच 1191 और 1192 में लड़ा गया था. इस युद्ध की वजह से भारत का इतिहास बदल गया. तराइन के द्वितीय युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के हारने के बाद ही भारत में मुस्लिम साम्राज्य की नींव पड़ी थी. 1193 में चंदावर के युद्ध में मुहम्मद गौरी ने राजा जयचंद को पराजित किया था और यहां पर अपना कमांडर नियुक्त किया जिसका नाम कुतुबुद्दीन ऐबक था.

क्यों हुआ था मान सिंह का विरोध?
सन 1194 के आसपास काशी विश्वनाथ मंदिर को कुतुबुद्दीन ऐबक ने लूटा और क्षतिग्रस्त किया था. इसके बाद एक गुजराती व्यापारी ने इसका पुनर्निर्माण कराया था. इसके बाद 15 वीं शताब्दी के मध्य में सिकंदर लोदी ने मंदिर को फिर क्षति पहुंचाई. अकबर के समय में राजा टोडरमल ने इसे बनाया. डॉ. रवि भट्ट ने बताया कि राजा मानसिंह की लड़की की शादी मुस्लिम परिवार में हुई थी इसलिए जब राजा मानसिंह ने काशी विश्वनाथ के पुनर्निर्माण की कोशिश की तो दक्षिण भारतीय ब्राह्मण नारायण भट्ट समेत कई ब्राह्मणों ने इसका विरोध कर किया.

राजा होलकर का प्रयास हुआ था विफल
इतिहासकार डॉ. रवि भट्ट ने बताया कि 1669 में औरंगजेब ने मंदिर को फिर तुड़वाया था और वहां मस्जिद बनवाई. इसके बाद 1742 में राजा होलकर ने मस्जिद गिराकर मंदिर बनवाने का प्रयास किया लेकिन अवध पर उस समय नवाब राज करते थे. ऐसे में नवाबों के कारण मंदिर निर्माण नहीं हो पाया. इसके बाद में 1750 में एक हिंदू राजा जय सिंह ने आसपास की जमीन खरीद कर मंदिर का पुराना स्वरूप लौटाने की कोशिश की, लेकिन वह फेल हो गया.

क्यों कहा जाता है ज्ञानवापी?
रवि भट्ट कहते हैं कि1780 में अहिल्याबाई ने मंदिर का स्वरूप लौटाने का काम किया. 1833 में ज्ञानवापी वाले दीवार बनाई गई और 1835 में राजा रणजीत सिंह ने एक किलो सोना मंदिर को दान में दिया था. इस स्थान को ज्ञानवापी इसलिए कहते हैं क्योंकि वहां पर एक कुआं है उसका नाम है ज्ञानवापी.

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