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ऐसे बनायें भगवान शिव को अपना गुरु

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1. आंखें बंद करके आराम से बैठ जायें. भगवान शिव से कहें हे शिव मै आप को अपना गुरु बनने का आग्रह कर रहा हूं. आप मुझे शिष्य के रूप में स्वीकार करें !

2. दोनों ऊपर हाथ उठाकर ब्रह्मांड की तरफ देखते हुए 3 बार घोषणा करें. कहें- अखिल अंतरीक्ष सम्राज्य में मै घोषणा करता हूं कि शिव मेरे गुरु हैं मै उनका शिष्य हूं. शिव मेरे गुरु हैं मै उनका शिष्य हूं. शिव मेरे गुरु हैं मै उनका शिष्य हूँ !
तथास्तु. घोषणा दर्ज हो. हर हर महादेव. इससे भगवान शिव अपनी ही तय शास्त्रीय व्यवस्था के मुताबिक आग्रह करने वाले को शिष्य के रूप में स्वीकार कर लेते हैं. इसी कारण उसी दिन से जीवन बदलने लगता है !

3. शिव गुरु को साक्षी बनाकर शुरु किये कार्यों में रुकावटें नही आतीं. इसलिये जो भी काम करें उसके लिये भगवान शिव को पहले साक्षी बना लें. कहें- हे शिव आप मेरे गुरु हैं मै आपका शिष्य हूं आपको साक्षी बनाकर ये कार्य करने जा रहा हूं. इसकी सफलता के लिये मुझे दैवीय सहायता और सुरक्षा प्रदान करें !

4. हर रोज शिव गुरु से कम से कम तीन बार कहें- हे शिव आप मेरे गुरु हैं मै आपका शिष्य हूं. मुझ शिष्य पर दया करें. हे शिव आप मेरे गुरु हैं मै आपका शिष्य हूं. मुझ शिष्य पर दया करें. हे शिव आप मेरे गुरु हैं मै आपका शिष्य हूं. मुझ शिष्य पर दया करें !

5. हर रोज शिव गुरु को नमन करें. इसके लिये शांत मन से कुछ मिनटों तक जपें – नमः शिवाय गुरुवे !

6. भगवान शिव को राम नाम सबसे अधिक प्रिय है. वे खुद भी सदैव इसका ध्यान करते रहते हैं. इसलिये उन्हें गुरु दक्षिणा के रूप में उनकी सबसे प्रिय चीज राम राम ही अर्पित करें !
इसके लिए रोज नमन करने के बाद शिव गुरु से निवेदन करें. कहें – मै आपको गुरु दक्षिणा के रूप में राम नाम सुना रहा हूं. आप मेरे मन के मंदिर में आकर बैठ जायें और राम राम सुने. और स्वीकार करें ! मुझे सदैव दैवीय सहायता और मार्गदर्शन प्रदान करें !

हे शंकर परमगुरू भगवन् शिव शम्भु सदा सत्काम करें।
निर्गुण हों या जिस रूप प्रभू भक्तन के पूरन काम करें।।
हे देवाधिदेव महान प्रभू योगेश्वर आपकी शरण परूं।
मन में तन में आचरणों में आडम्बर तजि अनुसरण करूं।।
हे प्रभु हे महत् विशाल वदन तुममें ब्रह्माण्ड निवास करें।
तुम सृष्टि के तारनहार प्रभू तुम्हरो सुमिरन विश्वास भरें।।
जल में थल में नभ कण कण में जिस ओर लखें तुम ही तुम हो।
उर अन्तर वाह्य दिगन्तर में विभवान्तर में तुम ही तुम हो।।
तुम राग विराग सुभाग तुम्हीं रघुराज के काज संवारन हो।
दासन के मान निभावन हो पतितन के पातक तारन हो ।।
तुम पावनता से पावन हो कल्याण सदा शिवरूप प्रभू।
दास को अपने चरणों के तल रज रक्खो सद् रूप प्रभू।।

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