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कटनी / बहोरीबंद। लोक नृत्य एवं गायन किसी क्षेत्र की धर्म,संस्कृति एवं ऐतिहासिक कथानको का संगीतमय प्रस्तुतिकरण होता है। कटनी बहोरीबंद क्षेत्र में दीपावली पर्व पर परंपरात ग्वाल नृत्य की परंपरा है। दीपावली के साथ ही आरंभ होने वाले इस नृत्य एवं गायन को लेकर ग्रामीण क्षेत्रो में अपनी विरासत एवं बहुरंगीय संस्कृति के प्रति लगाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है।
अमावस्या की रात यादव कुल देवता की होती है पूजा मृदंग की थाप से बुलाया जाता है मंत्र व सुमरनी से अपने इष्ट देव को पूरा गांव एक जगह इकट्ठा हो कर गाय की पुंछ के बालों से बनी रस्सी एवं पूजन में विशेष महत्व मबरी के पौधे को बांध कर अपने इष्ट देव को बुला कर अनुमति लेकर पूरे गांव में घर घर जाकर अपने इष्ट देव की जड़ी से जगाया जाता है जिसमें पूर्वो से चली आ रही परंपरा मान्यता के साथ घर में रहे दोष दूर होते हैं और ग्वालों को तिलक लगाकर दक्षिणा देकर विदा किया जाता है।
फिर अमावस्या के दुसरे दिन गौ के गोबर की चौंक पूर कर विधि विधान से गौ के गोबर से गोवर्धन की प्रतिमा स्थापित की जाती है फिर ग्वाल नृत्य करते हुए एक जगह हजारों की संख्या में गायों को इकट्ठा कर मृदंग की थाप एवं कांसे की थाली बजाकर व बंम पटाखों की गूंज से गायों को खिलाया जाता है जिसमें गायों की उमंग मन को मोहित कर लेती है। आकर्षक पारंपरिक वेशभूषा में मोर पंख के साथ सजे इन ग्वालो का हाथ में लाठी एवं कुल्हाड़ी लेकर ढोलक, नगडि़या, मंजीरे एवं वासुरी पर लयबद्ध नृत्य एवं साथियो का गायन मन मोहने वाला होता है।