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रामकृष्ण परमहंस महान विभूति थे जिन्होंने अपने जीवन को मां काली के लिए समर्पित कर दिया। परमात्मा उसी रूप को धारण करके भक्त के सम्मुख आ जाते हैं जिस रूप में भक्त उनके दर्शन करना चाहता है।
जब सारे विश्व में एकेश्वरवाद पर आध्यात्मिक शोध चल रहे थे तब भारत में रामकृष्ण परमहंस जैसे विलक्षण संत काली की मूर्ति से घंटों बतियाते थे…… शुरूआती दिनों में लोग उन्हें पागल समझते थे लेकिन धीरे-धीरे लोगों को समझ आया कि रामकृष्ण के भीतर कुछ घट गया है……. काली को भोग लगाना उनकी नियमित दिनचर्या थी..! भोजन की थाली लेकर मंदिर के गर्भगृह में घुसते तो निश्चित नहीं था कि कब बाहर निकलें..एक दिन उनकी पत्नी शारदा उन्हें खोजते हुए मंदिर जा पहुंची..श्रद्धालु जा चुके थे और परमहंस गर्भगृह के भीतर भोग लगा रहे थे..दरवाजे की दरार से उन्होंने अंदर झाँका तो वे स्तब्ध रह गईं..साक्षात काली रामकृष्ण के हाथों से भोजन ग्रहण कर रहीं थीं..! उस दिन से शारदा का जीवन बदल गया..!
हिन्दुओं को मूर्तियों में जान फूंकने का विज्ञान हजारों साल पहले से मालूम था…… अटल श्रद्धा के उस अदृश्य महाविज्ञान ने आज तक हिन्दू प्रतिमाओं को जीवंत रखा है..!
मानव जीवन अद्भुत है और उससे भी अद्भुत है मानव को जीवन देनेवाला स्रष्टा। सच्चा साधक जब अपनी श्रद्धा और विश्वास किसी मूर्ति पर आरोपित कर देता है तो वह मूर्ति जीवंत हो जाता है। जब तक ठाकुर रामकृष्ण इस धरा पर रहे तब तक माँ काली जीवंत थी। ऐसे ठाकुर के पूर्व जन्म में माँ भवानी जीवंत थी और ठाकुर के अगले जन्म में माँ गायत्री। जानने, समझने वालों को यह बात बिल्कुल अचंभा नहीं लगता।