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मृत्यु तो केवल शरीर की होती है आत्मा की नही- कृष्ण अर्जुन उचाव

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श्री कृष्ण भगवान जी अर्जुन से कह रहे है …हा पार्थ। जो चले गए वो तो चले गये ओर ज्ञानी तो ना जाने वालो का शोक करते है ओर ना ही उनका जो नही गये।

वे तो ना विगत के लिए शोक करे ओर ना ही अगत के लिये तुम इस स्त्य को समझ लो पार्थ की मूल तत्व शरीर नही आत्मा है . ओर म्रत्यु उसकी य़ात्रा का अंत भी नही है उसकी य़ात्रा तो अनंत है।

म्रत्यु तो केवल एक पडाव है पार्थ केवल एक पडाव …शांस का अंत पवन का अंत नही है। यू समझ लो पार्थ की प्राणी तो पहले बालक होता है. फिर वो बालक युवा हो जाता है ओेर फिर वो युवा वृद्ध फिर म्रत्यु किंतु ये य़ात्रा तो शरीर की है। आत्मा तो इस से भी आगे जाता है।

वो एक शरीर को त्याग कर कोई ओर शरीर धारण कर लेता है
इस लिए जो य़ात्रा म्रत्यु पर समाप्त हो जाये वो तो केवल शरीर
की य़ात्रा है।

आत्मा की य़ात्रा तो अनंत है पार्थ. ओर उसकी य़ात्रा के एक बिन्दु पर शरीर पिछे छूट जाता है ओर य़ात्री आगे निकल जाता है ओर वो वसे ही कोई नया शरीर धारण कर लेता है जसे हम
पुराना वस्त्र उतार कर नया वस्त्र पहन लेते हैं।

हे पार्थ विनाश तो आत्मा को छू भी नही सकता. तो फिर ये शोक केसा. ओर किसके विनाश का. क्या वस्त्र के विनाश का.
किंतु वस्त्र तो अमर नही होता, वो तो त्यागे जाने के लिए ही
होता है. आत्मा मरता नहीं. कभी नही मरता … अर्जुन जी श्री कृष्ण से कह रहे हैं, किंतु वो जो सब सामने खडे है वो इस युद्ध के उपरांत सब के सब होंगे ना केशव.सब के सब होंगे ना।

श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा. ये होना ओर ना होना क्या है पार्थ
क्यो की वो समय तो कभी था ही नही. जब मै नही था. य़ा तुम नही थे. य़ा ये सारे लोग नही थे. ..ना हि वो समय कभी होगा. जब मै नही होऊँगा. य़ा तुम नही होगे. य़ा ये सारे लोग नही होंगे।

तो फिर ये किस भ्रम्भ मे पड रहे हो पार्थ की वर्तमान जीवन ही संपूर्ण जीवन है. वर्तमान जीवन संपूर्ण जीवन नही है पार्थ. हम थे भी. हम है भी. ओर हम होंगे भी. …रहे अब ये सुख दुख. तो इनका क्या है. ये तो ऋत्वो की भांति आते जाते रहेंगे।

हे कुंती पुत्र जो सुख ओेर दुख. दोनो को ही समानं समझे ओर
उनसे प्रभावित होये बिना ही उनहे झेल जाये वही स्थित प्रज्ञ है.
ओर वो ही मोक्ष का अधिकारी है।

हे भारत! मरने य़ा मारने की असंका से मुक्त हो जाओ. क्यो की
म्रत्यु तो केवल उसी की हो सकती है ना. ज़िसका जन्म हुआ हो
आत्मा तो काला दित है. काल से भी परे है पार्थ।

जन्म तो केवल जीव का होता है, आत्मा का नही। यदि आत्मा जन्म ही नही लेता है तो फिर उसकी म्रत्यु कसे हो सकती है.
आत्मा तो बस है पार्थ. बस है. वो काल के दोनो तटो पर भी है
ओर काल की धारा मे भी. वो अजन्मा है. नित्य है सनातन है.
अविकारी है. अविनाशी है।

इस लिए मरने या मारने के प्रशन को लेकर चिंतित होना व्यर्थ है पार्थ. व्यर्थ है …म्रत्यु तो केवल शरीर की होती है. आत्मा की नही. क्यू की शस्त्र उसे काट नही सकता. जल उसे गीला नही कर सकता. अग्नि उसे ज़ला नही सकती. ओर वायू उसे सूखा नही सकती …।

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