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घरवालों की सेवा करना एक नम्बर है, बाहरकी सेवा करना दो नम्बर है । इसलिये कम-से-कम पहले कर्जा उतारो ! जिन्होंने शरीर दिया है, शिक्षा दी है, खर्चा किया है, उनको न मानकर बाहर जाकर सेवा
करते हैं‒यह बिलकुल अन्याय है ! घरमें माँ-बाप बीमार हैं और चले हैं दुनियाकी सेवा करने ! इसलिये पहले घरवालोंकी सेवा करके कर्जा उतारो, पीछे उपकार करो । उनकी आज्ञा लेकर बाहर जाओ ।*
जिन माँ-बाप से मनुष्य जन्म पाया है, उनकी तो सेवा करते नहीं, पर दुनिया की सेवा करते हो‒यह पाप है पाप !*
किसी से कुछ भी लेनेकी इच्छा न रखना आपकी अपनी सेवा है !
संसार हमारे काम आ जाय‒यह गलती है । हमारे द्वारा संसार की सेवा हो जाय‒यह सही है । संसार बड़ा है, शरीर छोटा है । छोटा ही बड़ेके आश्रित होता है । अतः शरीर संसारकी सेवाके लिये है, संसार शरीरकी सेवाके लिये नहीं है ।
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