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मन का भ्रम: इतने सारे लोक देवता में से किसे माने अपना ईष्ट ?

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आजकल सामान्यतःअधिकांश सनातनियों के मन में यह संशय और विचार बार-बार आता है कि भगवान के इतने सारे स्वरूप है तथा इतने सारे लोक देवता है। इनमें से किस ईष्ट माने किसकी सेवा करें?

लोग विभिन्न शास्त्रों से विभिन्न तर्कों से विभिन्न स्वरूपों को श्रेष्ठ सिद्ध करते हैं जिससे एक सामान्य भक्त का मन विचलित हो जाता है। तथा वह सोचने लगता है कि किसकी पूजा करूं? किसको ईष्ट मानू आदि आदि। मैं बहुत ही सरल और सहज भाव से इस विषय में कुछ लिख रहा हूं।

एक सामान्य भक्तों को अगर ईष्ट चयन करना हो तो सबसे सरल और सहज है कि मां भगवती परांबा दुर्गा को अपना ईष्ट मान ले नित्य भाव से उनकी सेवा पूजा करें हमेशा मां के भाव से उनकी पूजा करें। हम सभी की उत्पत्ति मां के उदर से ही होती है। इसलिए परमात्मा के स्त्री स्वरूप में प्रीति जल्दी हो जाती है।

और ऐसा संतों का भी मत है वैसे तो शिव विष्णु सूर्य गणेश और दुर्गा समान है यह पांचो ही निराकार परमेश्वर के साकार स्वरूप है इनमें कोई भी भेद नहीं है। परंतु मां दुर्गा के स्वरूप में एक विशेष करुणा और वात्सल्य रहता है क्योंकि यह स्त्री तत्व का गुण है।

और एक मुख्य बात यह भी है कि चाहे वैष्णव संप्रदाय हो या शैव संप्रदाय गाणपत्य संप्रदाय हो या सौर संप्रदाय भगवती दुर्गा को सभी संप्रदायों ने स्वीकार किया है और सभी संप्रदायों में उनका सर्वोच्च स्थान है शाक्त संप्रदाय में तो वह प्रमुख है ही अन्य संप्रदायों में भी उन्हें उच्चतम स्थान प्राप्त है।

वैष्णव संप्रदाय में वह लक्ष्मी राधा सीता आदि के रूप में सर्वदा सेवित होती है और विष्णु तत्व को अपने वशीभूत रखती है। वहीं शैव संप्रदाय में भगवती पार्वती बनकर शिव को अपने वशीभूत रखती है।

संप्रदाय चाहे कोई भी हो शक्ति की उपासना सभी दूर हुई है और सभी संप्रदायों में इन्हें ऊंचा स्थान ही प्राप्त है। कोई अगर निराकारवादी भी हो तो भी वह प्रकृति के रूप में मां भगवती को स्वीकार करता है उनकी सत्ता को मानता है। तंत्र मार्ग में तो मां भगवती का आधिपत्य सर्वदा से रहा है।

इसलिए संप्रदायों और और अनेक चीजों से हमें भ्रमित नहीं होना चाहिए हमें तो मां भगवती की आराधना पूर्ण भाव से करनी चाहिए फिर वह ही हमारे पूर्व जन्मों के संस्कारों को देखते हुए हमें किसी न किसी संप्रदाय से अवश्य जोड़ देगी क्योंकि वह तो हर संप्रदाय में है ही ना इसलिए हमें इन सब बातों की बिल्कुल चिंता नहीं करना चाहिए बिल्कुल अपने मन को विचलित नहीं होने देना चाहिए हमे तो बस मां भगवती की निरंतर आराधना में संलग्न में रहना चाहिए। क्योंकि…..

।।कुपुत्रो जायते क्वचित कुमाता न भवति।।

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