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मनुष्य बलवान नहीं होता है, उसका समय सबसे बलवान होता है

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यही समय था जिसने गाण्डीव धारी अर्जुन को वृहन्नला ( नपुंसक ) , चक्रवर्ती सम्राट युद्धिष्ठिर को कंक ( जो द्यूत खेलने में निपुण ) , सर्वश्रेष्ठ गदाधारी भीम को रसोईया वल्लभ। सहदेव को तंतिपाल जो गाय बछड़ों को चारा डाले , नकुल को ग्रांथिक जो अश्व विद्या में निपुण हो , और महारानी द्रौपदी को सैरन्ध्री दासी बना दिया।

जब समय ख़राब होता है तो रस्सी भी साँप बनकर डस लेती है और अपना परम मित्र भी घोर शत्रु बन जाता है ! जो मार्ग अत्यंत प्रकाशवान होता है , वह अत्यंत ही भयावह और दुरूह हो जाता है !

अरे यह बड़ों बड़ों की मति भ्रष्ट कर देता है ! विद्वान् भी मूर्खों वाली बातें करने लगता है! और जब समय सही होता है, सब कुछ उलट जाता है ! लोग जबरदस्ती आ आकर आपकी सहायता करने लगते हैं ! मार्ग अपने आप स्वयं दिखाई देने लगता है !

जो शेर आपको खाने के लिए आ रहा होता है , वह आपकी रक्षा करने लग जाता है ! मतलब कहने का अभिप्राय यह है कि समय से बढ़कर कोई नहीं, कोई नहीं, कोई नहीं ! अरे मैं भी पहले खूब तैश में आकर जवानी के जोश में ऐसा ही बोला करता था कि नहीं मनुष्य जो चाहे वो कर सकता है ! पर समय ने मार मार कर समझा दिया कि हाँ उसके सामने भगवान के अवतारों की भी नहीं चलती !

जब समय ठीक आएगा तो स्वयं आप अच्छे decision भी लेने लगेंगे ! और वह निर्णय साधारण होगा लेकिन उस निर्णय से सब कुछ बदल जाएगा, और यह समय अथवा भाग्य या प्रारब्ध अपने पूर्वजन्मों के कर्मों से ही बनते हैं ।

इसीलिए कहा गया है शुभ कर्म करते रहो और फल की इच्छा मत करो क्योंकि फल देने का अधिकार उसका है और अपने किये गए कर्मों के फल को प्राप्त करने का पूरा अधिकार मनुष्य का है ।

इसमें भगवान् की भी नहीं चलती, सब नियम के अनुकूल हैं। बस यह है कि प्रार्थना करने से शुभ कर्म का प्रारब्ध या भाग्य या फल पहले मिल जाता है या भगवान् कृपा करके किसी शुभ कर्म का फल पहले दिलवा देते हैं परंतु कोई यह ना सोचे कि हमारे बुरे कर्म का फल हमें नहीं मिलेगा , वह गाहे बगाहे हमें ही भोगना पड़ेगा, कोई भगवान् , कोई संत , कोई महापुरुष उस फल को हमें भोगने से रोक नहीं सकता ।
कर्मसमायुक्तं दैवं साधू विवर्धते ।
पुरुषार्थ का सहारा पाकर ही भाग्य भली भाँति बढ़ता है ।
शुक्रनीति कहती है :- अनुकूले ज्यादा दैवे क्रियाकल्पा सुफला भवेत् ।
अर्थात – जब भाग्य अनुकूल रहता है , तब थोड़ा भी पुरुषार्थ सफल हो जाता है ।

फिल्म अभिनेता अक्षय कुमार से इंटरव्यू के दौरान पूछा जाता है कि आप के success सफलता का श्रेय किसे देते हैं ? उसका कहना था कि 30% मैं अपनी मेहनत को और 70% मैं अपने भाग्य को । प्रश्न पूछने वाले ने कहा आप इतने बड़े चैनल पे ऐसी बात कर रहे हैं , देख लीजिए । उसने कहा बिलकुल मैं इसको आधिकारिक तौर पे कहता हूँ क्योंकि घर से स्टूडियो तक पहुँचते हुए मुझे ऐसे ऐसे लोग मिलते हैं जो मुझसे ज्यादा talented , मुझसे ज्यादा handsome , मुझसे ज्यादा मेहनती, वह बिचारे सालों साल से चक्कर लगा रहे हैं पर उनको break नहीं मिलता लेकिन मुझको मिला और जनता मुझे हाथों हाथ ले रही है ।

“लाख तक़दीर एक तरफ़ , एक तक़दीर एक तरफ़ ।

लाख तदबीर एक तरफ़ , एक तकदीर एक तरफ़ ! पढ़े फ़ारसी बेचे तेल, यह देखो कर्ता का खेल ।
नियतिः कारणं लोके नियतिः कर्मसाधनं । नियतिः सर्वभूतानां नियोगेष्विह कारणं ।।

जगत में नियति ही सब का कारण है । नियति ही समस्त कर्मों का साधन है ।
नियति ही समस्त प्राणियों को विभिन्न कर्मों में नियुक्त करने का कारण है ।
नास्ति खलु दुष्करं दैवस्य । भाग्य के लिए कुछ भी दुष्कर नहीं ।
न हि शक्यम दैवमन्य थाकर्तुमभि युक्तेनापि ।

उद्योगी व्यक्ति द्वारा भी भाग्य को नहीं बदला जा सकता ।
दैवमेव हि नृणाम वृधौ क्षये कारणम ।
मनुष्यों की अपनी वृद्धि और क्षय का कारण भाग्य ही है ।
गुणा न यूयं नियतिर्गरियसी ।

हे सद्गुणों । तुम नहीं , नियति प्रबल है ।
पुरुष बली नहिं होत है , समय होत बलवान ।
भीलन लूटीं गोपिका , वहि अर्जुन वहि बान ।

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