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अँगूठी का प्रचलन कैसे और कहाँ से शुरू हुआ?

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अंगूठी की शुरुआत मिस्र से मानी जा रही है । बॉलीवुड ने अंगूठी देकर शादी के लिए प्रोपोज़ करने के तरीके को ऐसा आगे बढाया कि अब यह एक ट्रेंड सा बन गया है. पश्चिम के देशों से शुरू हुई यह परंपरा आज पूरी दुनिया में फ़ैल गयी है. कहते हैं कि सॉलिटेयर यानि हीरे की अंगूठी, दूल्हा और दुल्हन के पवित्र, निःस्वार्थ और अंतहीन प्रेम को दर्शाता है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि यह प्रथा आई कहाँ से या कैसे शुरू हुई!

सगाई की अंगूठी की शुरुआत

सगाई की अंगूठी की शुरुआत रोमन काल से मानी जा सकती है. दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में, विवाहित महिलाओंको दो अंगूठियां दी जाती थीं. इनमें से एक सोने की होती थी, जो वे सार्वजनिक रूप से पहनती थीं और दूसरी लोहे की होती थी जो वे घर में रोज़ाना इस्तेमाल के लिए पहनती थीं. बाएं हाथ की अनामिका में अंगूठी पहनने की प्रथा प्राचीन मिश्र से आती है. इस अनामिका को अंग्रेजी में रिंग फिंगर कहते हैं.

हीरे की अंगूठी देकर प्रोपोज़ करने का प्रचलन सन् 1477 के बाद से बढ़ा, जब हब्सबर्ग के आर्कड्यूक मैक्सिमिलियन ने अपनी होने वाली पत्नी मैरी डी बौर्गोगेन को एक हीरे की अंगूठी देकर प्रोपोज़ किया. मैक्सिमिलियन ने छोटे -छोटे हीरे से एम (M) लिखवाकर अंगूठी में दिया था. शुरुआत में यह प्रचलन समृद्ध लोगों बीच ज़्यादा बढ़ा. लेकिन दक्षिण अफ्रीका में हीरे की खोज होने के बाद इसमें एक बहुत बड़ा बदलाव आ गया.

सन् 1880 में, सेसिल रोड्स ने अन्य निवेशकों के साथ डीबीर्स माइनिंग कंपनी की स्थापना की. महज़ एक दशक के भीतर, वे दुनियाभर के हीरा उत्पादन का 90 प्रतिशत नियंत्रित कर चुके थे. इन्होंने हीरे की सगाई वाली अंगूठी को एक विज्ञापन अभियान से ज्यादा कुछ नहीं बनाया. एक बार ग्रेट डिप्रेशन समाप्त हो जाने के बाद, कंपनी की विज्ञापन एजेंसी एन डब्ल्यू अयर एन्ड संस ने अपना सुप्रसिद्ध नारा या कहें पंचलाइन दिया ‘हीरा है सदा के लिए’ दिया और पुरुषों को इस पत्थर यानि कि हीरे वाली सोलिटेयर पर दो महीने का वेतन खर्च करने के लिए प्रोत्साहित किया. 1940 के दशक आते-आते सगाई वाले छल्ले ज्यादातर डिपार्टमेंट स्टोर्स में गहने की अग्रणी रेखा जगह बना चुके थे.

20 वीं शताब्दी के दौरान, सगाई की अंगूठी दैनिक इस्तेमाल में आम हो गयी. वैसे इसका सामान्यीकरण नहीं किया सकता क्योंकि इसको लेकर स्थिति एक देश से दूसरे देश में भिन्न हो सकती है. कुछ देशों में पति और पत्नी एक साथ अंगूठी खरीदते हैं जबकि अन्य देशों में इसे सरप्राइज के तौर पर दिया जाता है. अमेरिका में 80% से अधिक दुल्हनों को हीरे की अंगूठी मिलती हैं.

सगाई की अंगूठी के मायने

दरअसल, सगाई की अंगूठी पहनना एक पुरानी परंपरा है जिसकी जड़ें मिस्र में मिलती हैं. मिस्र के लोग मानते थे कि ये गोले शाश्वतता के प्रतीक हैं. वहां विवाहित जोड़े, एक-दूसरे को बांस की गुथी हुई सामग्री से बनी हुई अंगूठियां पहनाते थे. प्राचीन मिस्र में सगाई की अंगूठी बाएं हाथ की रिंग फिंगर पर पहनी जाती थी, जिसका मतलब था कि अंगूठी पहनने वाली महिला का दिल अब उस व्यक्ति का हो चुका है जिसने उसे यह अंगूठी दी थी. ऐसा कहा जाता है कि इस रिंग फिंगर की एक नस सीधे दिल से जुड़ी होती है. पहले सगाई की अंगूठी धातु और स्टील का इस्तेमाल से बनाई जाती थी. धातु से बना यह ठोस छल्ला सामग्री निरंतरता और ताकत का प्रतीक होता है.

नवरत्न अंगूठी धारण विधि
यह अंगूठी हमारे अनुभवी ज्योतिषाचार्यों द्वारा अभिमंत्रित एवं सिद्ध की गई है इसलिए यह अंगूठी शनिवार को छोड़ किसी भी दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व या सुबह स्नान करने के बाद धारण करनी चाहिए। अंगूठी धारण करने से पहले अपने कुलदेवता तथा विष्णु देव को याद करते हुए, पूरी श्रद्धा से पूजा अर्चना करके अपने सीधे हाथ की मध्यमा या तर्जनी अंगूली में धारण करना लाभदायक होता है।

लोहे की अंगूठी पहनने से क्या होता है ?
शनि की साढ़ेसाती, शनि की ढैया, शनि की महादशा अथवा कोई भी शनि ग्रह की पीड़ा हो, तो लोहे का छल्ला अथवा घोड़े की नाल से बनाया हुआ छल्ला शनिवार के दिन मध्यमा उंगली में पहनना चाहिए ,जी ध्यान रहे मध्यमा Middle finger में छल्ला पहना जाता है अनामिका में नहीं, सही उंगली में लोहे की अंगूठी पहनने से बहुत लाभ होगा क्योंकि मध्यमा उंगली शनि की होती है इस उत्तर का मूल स्रोत है ज्योतिष जगत का ज्ञान।

कछुआ अंगूठी क्यों पहननी चाहिए?
कछुआ भगवान विष्णु का एक अवतार है जो कि समुद्र मंथन के समय लिया गया था,इसलिए ये लक्ष्मी प्राप्ति में सहायक है क्योकि लक्ष्मी जी का जन्म भी उसी समुद्र मंथन से हुआ था और लक्ष्मी जी भगवान विष्णु की पत्नी भी है, शुक्रवार की शाम को अनामिका उंगली में धारण करें।

नवग्रह की अंगूठी कब पहननी चाहिए?
नवग्रह की अंगूठी पहनने की सलाह में कभी नही दूँगी, नवग्रहों के दोष या किसी प्रकार से उनसे लाभ लेना हो तब व्यक्ति को राम चरित मानस का पाठ करना चाहिए। यहाँ एक बात और साफ करना चाहूँगी, नवग्रह अंगूठी के लिए ये बात मैंने एकसाथ जो नौ रत्न एक अंगूठी में जड़े जाते हैं, उनके लिए कही है। आप ग्रहो से संबंधित जड़ो का उपयोग भी कर सकते हैं, ये सस्ते और ज्यादा कारगर हैं। वैसे भी असली रत्न मुश्किल से मिल पाता है। मोती क्योंकि आसानी से उपलब्ध है इसलिए सबसे ज्यादा असली इसी के मिलने की संभावना रहती है।

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