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हर व्यक्ति का छला जाना तय है

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संतुलन से जीवन बेहतर किया जा सकता है मनुष्य जीवन में प्रत्येक व्यक्ति के साथ हर प्रकार का छल होता है। जीवन में छला जाना तय है।

अपने वंश को चलाने हेतु, बच्चे पैदा करना,उसका पालन पोषण करना, बड़ा करना, हर जीव की मजबूरी होती है। मनुष्यों के भावनात्मक होने के कारण, रिश्तों में अपेक्षाएं जुड़ जाती हैं! उनके पूर्ण न होने पर कष्ट होता है? फिर मोह, माया और रिश्ते से हर मनुष्य छला जाता है! कभी वह छला जाता है, कभी छलता है। यही जीवन का क्रम है। कोई भी मनुष्य क्या इन छलावों से बच नहीं सकता है?

चलिए विचार करते हैं :-
*- क्या मनुष्य अपने आप को पैदा होने से रोक सकता है?
*- क्या मां-बाप के ऋण से उबर सकता है?
*- क्या भाई बहन के प्यार से दूर हो सकता है?
*- क्या विवाह न करने से सुखी हो सकता है?
*- क्या विवाह करके सुखी हो सकता है?
*- क्या बच्चो, फिर नाती पोतों के लगाव से बच सकता है?
*- क्या बिना धन कमाए, उसका जीवन चल सकता है? एक सेकंड भी नहीं, सुबह उठने से लेकर सोने तक, जन्म से लेकर मृत्यु तक, बिना धन के कोई कार्य संभव नहीं है?
*- धन कमाना एक आवश्यकता है, किंतु जब वह भोग विलास के लिए आवश्यक हो जाती है, तो हमें छलती है?
*- तो क्या हम धन कमा कर सुखी हो सकते हैं?

ध्रुव सत्य तो एक ईश्वर ही है, जो सभी धर्म ग्रंथो, धर्म गुरुओं और शिक्षाओं का सार है। इंसान यदि इन सभी से, सार ग्रहण करके, जीवन में हर रिश्ते, हर कार्य, हर क्षेत्र में संतुलन बना लें, तो छल से उत्पन्न होने वाले शोक,निराशा, प्रलाप और मानसिक वेदनाओं से मुक्ति पाई जा सकती है।

इसके लिए, हमें अपने कर्तव्यों का बोध होना चाहिए। दुनिया में जीवन के स्क्रीन पर, हमारे कर्मों के अनुसार, भगवान द्वारा निर्देशित चल रही, हमारी फिल्म में, अपने किरदार को पूरी कर्तव्यनिष्ठा से निभाते हुए,अपने पैदा करने वाले, माता-पिता के ऋणी रहते हुए, युवावस्था के इंद्रीय सुख हेतु विवाह के बंधन में बँध कर, अपनी जिम्मेदारियां को पूर्ण करने के लिए,
अपने बच्चों के प्रति अपने दायित्व का निर्वहन करने के साथ-साथ, सभी के प्रति संतुलित उत्तरदायित्वों का निर्वहन करते हुए, उस अटल सत्य *ईश्वर* की ओर भी ध्यान देते चले!
तो जीवन के अंतिम पड़ाव में हम छला हुआ महसूस नहीं करेंगे और धीरे से उस ईश्वर प्राप्ति के मार्ग पर संलग्न हो जाएंगे, बिना किसी शोक, अवसाद, प्रलाप अथवा मानसिक वेदना के।

त्रेता युग के मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जीवन से, रिश्तों को मर्यादा में निभाने की सीख, द्वापर युग के भगवान श्री कृष्ण से सीखें, जीवन में जो हो रहा है, वह उस एक अविनाशी ईश्वर की मर्जी से हो रहा है, इसलिए बेहतर कर्म करें और परिणाम की चिंता न कर, इस अटल सत्य को लेकर, व्यक्तिगत, परिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रहित सहित सभी विषय पर ठीक संतुलन रखते हुए सामंजस्य बैठाकर जीवन जीने से ही आत्मिक सुख मिल सकता है

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