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गुरु कौन है और उसे कैसे खोजें?

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गुरु वह है जो ज्ञान को अंदर से जानता है अर्थात गहराई से जानता है, अर्थात जिसने ज्ञान को सिर्फ पढ़ा ही नहीं है, अनुभव ही नहीं किया है अपितु साक्षात्कार किया हुआ है। वह ज्ञान किसी भी क्षेत्र का हो सकता है।
मुख्यतः आध्यात्मिक गुरु के ही बारे में प्रश्न होता है। तो यहाँ भी यही बात है।

सच्चा आध्यात्मिक गुरु को पहचानना साधारण आदमी के वश की बात तो है नहीं। सर्वप्रथम आप अपने को अध्यात्म के लिये तैयार करें। जब हृदय से आप तैयार हो रहे होते हो तो उसी क्रम में गुरु मिलता है, प्राप्त होता है। वह सच्चा गुरु वासना रहित होता है, काम क्रोध लोभ मोह इत्यादि अवगुण नहीं होते उनमें। वह डिंग नहीं मारता, अपने को बढ़ा चढ़ा के पेश नहीं करता।

गुरु ग्रह को प्रसन्न करने के लिए करें मंत्र जाप
गुरुवार के दिन ओम ग्रां ग्रीं ग्रौं सः गुरवे नमः मंत्र का जाप मंत्र का जाप 3, 5 या 16 माला कर सकते हैं। कुंडली में गुरु कमजोर होता है, उसे खाने में चने के बेसन, चीनी और घी से बने लड्डू का सेवन करना चाहिए। इसके अलावा ॐ बृं बृहस्पतये नमः।।

सच्चा गुरु वह होता है जो आपको आत्मा के मार्ग पर मार्गदर्शन करता है और आपको ज्ञान, उद्दीपन, और सत्य की ओर प्रेरित करता है। एक सच्चे गुरु में श्रद्धा, भक्ति, और आत्मनिष्ठा होती है। वह शिष्य को जीवन के विभिन्न पहलुओं में मार्गदर्शन करने के लिए समर्पित होता है।

गुरु प्राप्त करने के लिए:

1. **इच्छा और तत्परता:** आपको सच्चे गुरु को प्राप्त करने के लिए इच्छा और तत्परता रखनी चाहिए।
2. **तत्त्वज्ञान का अध्ययन:** आपको वेदांत, योग, और अन्य आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन करना चाहिए, ताकि आप सच्चे गुरु की पहचान कर सकें।
3. **सत्संग:** सत्संग में भाग लेना और आत्मिक साधना करना गुरु को प्राप्त करने की दिशा में मदद कर सकता है।
4. **आध्यात्मिक संस्थानों का संपर्क:** आप आध्यात्मिक संस्थानों में जाकर आत्मिक उन्नति के लिए मार्गदर्शन प्राप्त कर सकते हैं।
5. **ध्यान और प्राणायाम:** ध्यान और प्राणायाम से अपने मन को शुद्ध करना और आत्मिक अनुभव में आगे बढ़ना।

सच्चा गुरु मिलना आत्मा के साथ एक सांगतिक रिश्ते का मतलब है, इसलिए सच्चे मार्गदर्शन के लिए आत्मा की पूर्व-स्तिति को अद्वितीयता के साथ जोड़ना महत्वपूर्ण है। जो आपकी योग्यता को देखते हुए, आपको एक ही वाक्य में यह बता देता है, के तुम ही वह परमात्मा हो, जिसे तुम अपने से भिन्न परमात्मा मानकर, अनंत जन्मों व अनंत कल्पों से खोज रहे हो!

वही सच्चा सदगुरु होता है,जो के आत्मा के रुप में सभी जीवों को सदा सदा से प्राप्त ही है! परन्तु जो उसका वरण करता है,उसीका यह आत्मगुरु भी वरण करता है, और योग्य साधकों के अनुरागी मन में अवतार लेकर, जीवों के मन में स्थित, दुष्ट प्रवृत्तियों के साथ साथ, मायिक गुण,अवगुण,व दुर्गुण रुपी, दुर्योधन दु:शासन शकुनी व कर्ण आदि कौरवों का विनाश करने का मंत्र बताते हैं! जिससे जीव अपना मिथ्या जीवभाव त्यागकर,ब्रह्मभाव में स्थित हो जाता है,और अपने समस्त प्रकार के मोह से मुक्त होकर, परमधाम को गमन करता है!!
हरि:ऊँ तत् सत् जय सच्चिदानन्द जी ऊँ नमो नारायणाय!

वैसे तो इस प्रश्न का उत्तर बहुत बार मै दे चुका हूं, परन्तु फिर भी यह प्रश्न रह ही जाता है लोगो के मन में। चलिए इस बार आपके अनुसार उत्तर दे कर देखते है। चलिए चलते है गुरु को ढूंढने। तो आपने दो मानक चुने , एक तो गुरु ज्ञानी हो, दूसरा सही हो।

तो पहले जनाब यह बताओ कि ज्ञानी का अर्थ क्या है। पहले यह जानना होगा कि हमें कैसा ज्ञान चाहिए। यदि हमें पता है हमें क्या चाहिए, तभी तो ढूंढ़ पाएंगे ना किसी योग्य गुरु को। ज्ञान कैसा चाहिए, विज्ञान का, गणित का, आध्यात्म का, तंत्र का आदि।

चलिए जान लिया क्या ज्ञान चाहिए। अब निकल पड़े योग्य गुरु को ढूंढने। लेकिन हम कैसे देखें की कोई इंसान ज्ञानी है? शास्त्रार्थ करे क्या उससे? या उसका ज्ञान को सुने। शास्त्रार्थ करेंगे तो हम स्वयं ज्ञानी सिद्ध हुए। अब यदि उसके ज्ञान को सुना, तो भी हम कैसे कहे कि उसका ज्ञान ठीक है? क्या कोई तरीका है यह जानने का की उसका ज्ञान ठीक है?

ज्ञान पाने से पहले ज्ञान को जांचे कैसे भला? यदि अज्ञानता ही ज्ञान को जांचने का प्रमाण बन गई, तो फिर सही गुरु कैसे मिलेंगे।अज्ञानी के ढूंढने से अज्ञानी ही मिलेगा, ज्ञानी के ढूंढने से ज्ञानी मिलेगा। क्योंकि जो कसौटी आपके पास है उसी के अनुसार तत्वों की खोज हम करते है। प्रश्नपत्र की कुंजी ही गलत हो, तो उत्तर जांचे समय हम गलत को सही और सही को गलत बना देंगे। ऐसा ही हमारा ज्ञान है, सामाजिक रूप से भ्रष्ट ज्ञान से सही गुरु के ज्ञान को गलत, और गलत गुरु के ज्ञान को हम सही सिद्ध कर देंगे। गुरु ज्ञानी है, वह अपने ज्ञान से सही शिष्य ढूंढ़ सकता है। हम अज्ञानी है हम अपने अज्ञान से भला कैसे सही गुरु ढूंढ़ पाएंगे।

चलिए माना हम अज्ञानी है, लेकिन फिर भी ज्ञान के अलावा कोई और कसौटी तो होगी जानने की सही गुरु कौन है। तो साहब किताबें छान ली गई। किसी में कुछ तो किसी में कुछ योग्य गुरु के आसार मिल गए। उसके आचार व्यवहार से लेकर, उसकी रूप रेखा, गुण धर्म आदि। लेकिन यह सब तो बाहरी आडंबर है, आत्मा तो तत्वदर्शी होती है, बाहरी आडंबर से रहित बहुत से सिद्ध पुरुष हुए है, गुदड़ी के लाल बहुत है। अब बाहरी आडंबर देखेंगे तो बहुत से गुरु मिलेंगे छद्म वेश धारी। लेकिन आत्म तत्व को कैसे जाने? तो उसका कोई तरीका नहीं। आत्म तत्व को जान लिया तो तत्वदर्शी बन गए, तत्वदर्शी तो आत्मज्ञानी पुरुष होता है । जिसको आत्मज्ञान मिल गया, उस बाहरी गुरु की आवश्यकता ही नहीं।

अर्थात किसी भी तरह से हम स्वयं सही और ज्ञानी गुरु को नहीं ढूंढ़ सकते। गुरु मिलेंगे अवश्य ढूंढने से, पर ज्ञानी और सही होंगे या नहीं, इसकी कसौटी हमारे पास नहीं है। गलत गुरु मिलने से अनेकों जन्म भटकना पड़ता है।

इसलिए गुरु को ढूंढने और मिलने को अपने प्रारब्धों पर छोड़िए, आपके पास जो पुरुषार्थ है, उससे प्रभु भक्ति और उनके प्रति समर्पण दिखाए।बाकी मार्ग ऊपरवाला सही समय पर आपको दिखा देगा।

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