इस ख़बर को शेयर करें:
एक मेजर साहब के नेतृत्व में बीस जवानों की एक टुकड़ी हिमालय के अपने रास्ते पर थी। बेतहाशा ठण्ड में मेजर ने सोचा की अगर उन्हें यहाँ एक कप चाय मिल जाती तो आगे बढ़ने की ताकत आ जाती , लेकिन रात का समय था आस पास कोई बस्ती भी नहीं थी। लगभग एक घंटे की चढ़ाई के पश्चात् उन्हें एक जर्जर चाय की दुकान दिखाई दी । लेकिन अफ़सोस उस पर ताला लगा था ।
भूख और थकान की तीव्रता के चलते जवानों के आग्रह पर मेजर साहब दुकान का ताला तुड़वाने को राज़ी हो गये ।
ताला तोडा गया, तो अंदर उन्हें चाय बनाने का सभी सामान मिल गया, जवानों ने चाय बनाई साथ वहां रखे बिस्किट आदि खाकर खुद को राहत दी । थकान से उबरने के पश्चात् सभी आगे बढ़ने की तैयारी करने लगे , लेकिन मेजर साहब को यूँ चोरो की तरह दुकान का ताला तोड़ने के कारण आत्मग्लानि हो रही थी ।
उन्होंने अपने पर्स में से दो हज़ार का एक नोट निकाला और चीनी के डब्बे के नीचे दबाकर रख दिया तथा दुकान का शटर ठीक से बंद करवाकर आगे बढ़ गए ।
चार महीने की समाप्ति पर इस टुकड़ी के सभी बीस जवान सकुशल अपने मेजर के नेतृत्व में उसी रास्ते से वापस आ रहे थे ।
रास्ते में उसी चाय की दुकान को खुला देखकर वहां सभी विश्राम करने के लिए रुक गए ।
उस दुकान का मालिक एक बूढ़ा चाय वाला था जो एक साथ इतने ग्राहक देखकर खुश हो गया और उनके लिए चाय बनाने लगा ।
चाय की चुस्कियों और बिस्कुटों के बीच मेजर साहब चाय वाले से उसके जीवन के अनुभव पूछने लगे, खासतौर पर इतने बीहड़ में दूकान चलाने के बारे में ।
बुजुर्ग व्यक्ति उन्हें कईं कहानियां सुनाता रहा और साथ ही भगवान का आभार प्रकट करता रहा ।
तभी एक जवान बोला ” बाबा आप भगवान को इतना मानते हो , अगर भगवान सच में होता तो फिर उसने तुम्हें इतने बुरे हाल में क्यों रखा हुआ है” ।
बाबा बोला “नहीं साहब ऐसा नहीं कहते भगवान के बारे में, भगवान् तो है और सच में है …. मैंने देखा है”
आखरी वाक्य सुनकर सभी जवान कोतुहल से बुजुर्ग की ओर देखने लगे ।
बाबा बोला “साहब मै बहुत मुसीबत में था , एक दिन मेरे इकलौते बेटे को आतंकवादियों ने पकड़ लिया । उन्होंने उसे बहुत मारा पिटा, लेकिन उसके पास कोई जानकारी नहीं थी, इसलिए उन्होंने उसे मार पीट कर छोड़ दिया”।
“मैं दुकान बंद करके उसे हॉस्पिटल ले गया । मै बहुत तंगी में था साहब और आतंकवादियों के डर से किसी ने उधार भी नहीं दिया” ।
मेरे पास दवाइयों के पैसे भी नहीं थे और मुझे कोई उम्मीद भी नज़र नहीं आती थी । उस रात मै बहुत रोया और मैंने भगवान से प्रार्थना की और मदद मांगी “और साहब … उस रात भगवान मेरी दुकान में खुद आए”
मै सुबह अपनी दुकान पर पहुंचा ताला टूटा देखकर मुझे लगा कि मेरे पास जो कुछ भी थोड़ा बहुत था वो भी सब लुट गया” ।
मै दुकान में घुसा तो देखा दो हज़ार रूपए का एक नोट, चीनी के डब्बे के नीचे भगवान ने मेरे लिए रखा हुआ है” ।
साहब ….. उस दिन दो हज़ार के नोट की कीमत मेरे लिए क्या थी, शायद मै बयान न कर पाऊं …
लेकिन भगवान् है साहब … भगवान् तो है” ।
बुजुर्ग फिर अपने आप में बड़बड़ाया* ….
भगवान् के होने का आत्मविश्वास उसकी आँखों में साफ़ चमक रहा था ।
यह सुनकर वहां सन्नाटा छा गया बीस जोड़ी आँखे मेजर की तरफ एकटक देख रही थी जिसकी आंख में उन्हें अपने लिए स्पष्ट आदेश था ” खामोश रहो
मेजर साहब उठे, चाय का बिल जमा किया और बूढ़े चाय वाले को गले लगाते हुए बोले “हाँ बाबा मै जानता हूँ भगवान् है…. और तुम्हारी चाय भी शानदार थी” ।
और उस दिन उन बीस जोड़ी आँखों ने पहली बार मेजर की आँखों में चमकते हुए पानी के दुर्लभ दृश्य को देखा और साथ ही ये अनुभव किया कि भगवान तुम्हें कब किसकी मदद के लिए किसका भगवान बनाकर कहाँ भेज देंगे, ये खुद तुम भी नहीं जानते….!!
इसी लिए सनातन धर्म में यह अवधारणा स्पष्ट है की ईश्वर सबमें निवास करते हैं !
लेकिन “जिसका जैसा अन्न उसका वैसा मन”
यही अवधारणा व्यक्ति को शुद्ध अन्न खाने एवं सच्चरित्र,सहयोगी,ईमानदारी एवं शक्ति भर सेवा के लिए उद्वेलित करती है !!
भगवान का अंश तो कण कण में मौजूद है,मेरे अंदर,आपके अंदर, हम सबके अंदर ।वही हमारे हाथों से अच्छे बुरे कर्म कराता है।भगवान ने किसी के लिए अच्छा कराना है तो माध्यम हम ही हैं।किसी का बुरा कराना है तो भी हमें ही माध्यम बनाता है।
हां भगवान हैं अगर मन सच्चा है तो भगवान हैं कब किस रूप में मिल जाएं नहीं कह सकते हैं
पता नहीं किस रूप में आकर नारायण मिल जाएगा | निर्मल मन के दर्पण में वह राम के दर्शन पाएगा ||