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साहिवाल गाय भारतीय उपमहाद्वीप की एक उत्तम दुधारू नस्ल

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साहीवाल नस्ल की गाय पाकिस्तान में साहीवाल जिले से उत्पन्न मानी जाती हैं। गहरा शरीर, ढीली चमड़ी, खाल चिकनी होती है। पूंछ पतली और छोटी होती है। यह गाय 12 से 18 लीटर तक दूध देने कि क्षमता रखती है। बरेली के अखा गांव में साहीवाल का 21 लीटर दूध एक दिन में रिकार्ड किया गया था। इसके दूध में पर्याप्त वसा होता है। सहिवाल गायों में अफगानिस्तानी तथा गीर जाति का रक्त पाया जाता है। इन गायों का सिर चौड़ा, सींग छोटी और मोटी, तथा माथा मझोला होता है। ये स्वंत्रता पूर्व के संयुक्त पंजाब के मांटगुमरी जिले और रावी नदी के आसपास लायलपुर, लोधरान, गंजीवार आदि स्थानों में पाई जाती थी। साहिवाल गाय अधिकतर उत्तरी भारत में पाई जाती हैं। एक बार ब्याने पर ये 10 महीने तक दूध देती है। यह 10 से 16 लीटर तक दूध देने की क्षमता रखती है। 

साहिवाल के दूध कई रोगों में सहायक

  • साहीवाल के दूध में ए 1 दूध की तुलना में ए 2 बीटा कैसिइन स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है, ए 1 बीटा कैसिइन में उच्च होता है।
  • साहीवाल के दूध में 3 प्रकार के प्रोटीन होते हैं — अल्फा, बीटा और ग्लोबिन। बीटा प्रोटीन में ए 1 और ए 2 एलील होता है।
  • केवल साहीवाल नस्ल में एलील ए 2 शामिल है जिसमें अन्य नस्लों के दूध में पाए जाने वाले हिस्टिडीन प्रोटीन के बजाय प्रोलिन है। इस अतिरिक्त एलील की उपस्थिति के कारण साहीवाल का दूध मानवता के लिए एक वरदान के रूप में कार्य करता है जो कोलेस्ट्रॉल, मधुमेह और हृदय की समस्याओं जैसे कई रोगों को ठीक करने में सहायक है।

साहीवाल ‘ज़ेबु मवेशियों’ की नस्ल है और इसे भारत में सबसे अच्छी दुधारू मवेशियों में से एक माना जाता है। साहिवाल की उत्पत्ति शुष्क पंजाब क्षेत्र में हुई, जो भारतीय-पाकिस्तानी सीमा के साथ स्थित है। उन्हें एक बार बड़े-बड़े झुंडों में रखा जाता था, जिन्हें पेशेवर चरवाहे “जंगीज” कहते थे। यह सबसे होनहार नस्ल है जो दूध की सबसे अधिक मात्रा का उत्पादन करती है और इसके बाद लाल सिंधी और बुटाना नस्लों के समान है। इन जानवरों को “लैंबी बार”, “लोला”, “मॉन्टगोमेरी”, “मुल्तानी” और “लेली” के रूप में भी जाना जाता है। इसकी लोकप्रियता का कारण यह है कि दूध उत्पादन के मामले में साहिवाल तुलनात्मक रूप से अधिक कुशल हैं। इसके अलावा, इसके दूध में वसा की मात्रा अधिक होती है, जो अन्य आयातित गाय की नस्लों की तुलना में बहुत स्वस्थ है।

  • मुख्यतः पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, बिहार व मध्य प्रदेश में पाया जाता है।
  • दुग्ध उत्पादन- ग्रामीण स्थितियों में 1350 किलोग्राम
  • व्यावसायिक फार्म की स्थिति में- 2100 किलो ग्राम
  • प्रथम प्रजनन की उम्र – 32-36 महीने
  • प्रजनन की अवधि में अंतराल – 15 महीने
  • गहरा शरीर , ढीली चमड़ी, छोटा सिर व छोटे सींग इस गाय की प्रमुख विशेषताएँ हैं |
  • साहिवाल गाय का शरीर लंबा और मांसल होता है तथा इनकी टाँगे छोटी होती है ।
  • इनका स्वभाव कुछ आलसी होता है तथा इसकी खाल चिकनी होती है ।
  • इनकी पुंछ पतली और छोटी होती है।
  • ढीली चमड़ी होने के कारण इसे लोग लोला भी कहते हैं |
  • नर गाय का वजन 450 से 500 किलो और मादा गाय का वजन 300-400 किलो तक हो सकता है |
  • नर साहिवाल के पीठ पर बड़ा कूबड़ होता है व इसकी ऊंचाई 136 सेमी तक हो सकती है
  • मादा कि ऊंचाई 120 सेमी के आसपास होती है ।
  • ये लाल और गहरे भूरे रंग की होती है |
  • कभी-कभी इनके शरीर पर सफेद चमकदार धब्बे भी होते हैं ।
  • यह गाय एक दिन में 10 से 16 लीटर तक दूध देती है |
  • अपने एक दूग्ध्काल के दौरान ये गायें औसतन 2270 लीटर दूध देती हैं |
  • इनके दूध में पर्याप्त वसा होता है तथा यह विदेशी गायों की तुलना में दूध कम देती हैं |
  • इनके रखरखाव पर खर्च भी काफी कम होता है।
  • इसकी खूबियों और दूध की गुणवत्ता के चलते वैज्ञानिक इसे सबसे अच्छी देसी दुग्ध उत्पादक गाय मानते हैं।

इनकी कम होती संख्या से चिंतित वैज्ञानिक ब्रीडिंग के ज़रिए देसी गायों की नस्ल सुधार कर उन्हें साहीवाल में बदलने पर ज़ोर दे रहे हैं | जिसके तहत देसी गाय की पाँचवीं पीढ़ी पूर्णतः साहीवाल में बदलने में कामयाबी हासिल हुई है।

कौन से वातावरण में साहिवाल गाय रह सकती है

यह गाय ज्यादा गर्म इलाकों में भी रह सकती हैं | इनका शरीर गर्मी, परजीवी और किलनी प्रतिरोधी होता है जिससे इसे पालने में अधिक मशक्कत नहीं करनी पड़ती है और डेरी किसानों को इसे पालने में बहुत फायदा होता है ।

भारत में साहिवाल गाय की कीमत

भारत मे साहिवाल गाय अमूमन Rs.40,000 से Rs.60,000 के बीच मिल जाती है |
इसकी कीमत और भी कई बातों पर निर्भर करती है जैसे की दूध उत्पादन की क्षमता, उम्र, स्वास्थ्य आदि |
इन्ही बातों को ध्यान में रखकर ही कोई ख़रीदार इनकी सही कीमत का अनुमान लगा लेता है |

साहिवाल गाय का रखरखाव

इनके रखरखाव में और देसी गायों की तुलना में कम खर्चा होता है |
यह अन्य गायों की तुलना मे ज़्यादा दूध का उत्पादन करती है |
इनके दूध में अन्य गायों के मुकाबले ज़्यादा प्रोटीन और वसा पाया जाता है |

भारत मे जो साहिवाल गाय पाई जाती हैं वो Pure Breed मे नहीं पाई जाती है | यहाँ जो मिलती हैं वो Mixed Breed की होती है जिसकी वजह से यह भारत के वातावरण में बड़ी ही आसानी से Survive कर पाती हैं |

Dairy Farming में साहिवाल गाय के फायदे

  • उच्च दूध की पैदावार – साहिवाल गाय और देसी गायों के मुकाबले ज़्यादा दूध देती है |
  • प्रजनन की आसानी –साहिवाल गाय गर्म वातावरण में भी अच्छे से रह सकती हैं |
  • सूखा प्रतिरोधी
  • अच्छा स्वभाव अच्छी देखभाल करने पर ये कहीं भी रह सकती हैं ।

गर्मी सहने और उच्च दुग्ध उत्पादन के कारण इन्हें एशिया, अफ्रीका आदि देशों में भी निर्यात किया जाता है। भारत में दुधारु नस्ल की कई प्रजातियां हैं। इनमें साहीवाल, गिर, लाल सिंधी, कांकरेज, राठी और थारपारकर शामिल हैं। यह 20 से 24 लीटर प्रतिदिन तक दूध देती हैं। एक साल के लैक्टेशन पीरीयड में यह 4000 लीटर तक दूध दे देती हैं। वहीं ऐसी गायें, जिनकी नस्ल का पता नहीं है, वे रोजाना 3-4 लीटर ही दूध देती हैं।

इस नसल का पिछला जिला मोंटगोमेरी (पाकिस्तान) है। इस नसल के पशुओं के शरीर का रंग लाल-भूरा, आकार मध्यम, छोटी टांगे, सिर चौड़ा होता है। छोटे और भारी सींग, गर्दन के नीचे लटकती हुई भारी चमड़ी और भारी लेवा होता है। यह सबसे ज्यादा दूध देने वाली भारतीय नसल है। यह नसल पंजाब के फिरोजपुर और अमृतसर जिलों में और राजस्थान के श्री गंगानगर जिले में पायी जाती है। पंजाब में फिरोजपुर जिले के फाज़िलका और अबोहर कस्बों में शुद्ध साहीवाल गायों के झुंड उपलब्ध रहते हैं। इस नसल के बैल सुस्त और काम में धीमे होते हैं। इस नसल को लंबी बार, लोला, मोंटगोमेरी, मुल्तानी और तेली के नाम से जाना जाता है। इस नसल के प्रौढ़ बैल का औसतन भार 5.5 क्विंटल और गाय का औसतन भार 4 क्विंटल होता है।

चारा
इस नसल की गायों को जरूरत के अनुसार ही खुराक दें। फलीदार चारे को खिलाने से पहले उनमें तूड़ी या अन्य चारा मिला लें। ताकि अफारा या बदहजमी ना हो। आवश्यकतानुसार खुराक का प्रबंध नीचे लिखे अनुसार है।

खुराक प्रबंध
जानवरों के लिए आवश्यक खुराकी तत्व: उर्जा, प्रोटीन, खनिज पदार्थ और विटामिन।

खुराकी वस्तुएं:
अनाज और इसके अन्य पदार्थ: मक्की, जौं, ज्वार, बाजरा, छोले, गेहूं, जई, चोकर, चावलों की पॉलिश, मक्की का छिलका, चूनी, बड़ेवें, बरीवर शुष्क दाने, मूंगफली, सरसों, बड़ेवें, तिल, अलसी, मक्की से तैयार खुराक, गुआरे का चूरा, तोरिये से तैयार खुराक, टैपिओका, टरीटीकेल आदि।

हरे चारे: बरसीम (पहली, दूसरी, तीसरी, और चौथी कटाई), लूसर्न (औसतन), लोबिया (लंबी ओर छोटी किस्म), गुआरा, सेंजी, ज्वार (छोटी, पकने वाली, पकी हुई), मक्की (छोटी और पकने वाली), जई, बाजरा, हाथी घास, नेपियर बाजरा, सुडान घास आदि।

सूखे चारे और आचार: बरसीम की सूखी घास, लूसर्न की सूखी घास, जई की सूखी घास, पराली, मक्की के टिंडे, ज्वार और बाजरे की कड़बी, गन्ने की आग, दूर्वा की सूखी घास, मक्की का आचार, जई का आचार आदि।

अन्य रोज़ाना खुराक भत्ता: मक्की/ गेहूं/ चावलों की कणी, चावलों की पॉलिश, छाणबुरा/ चोकर, सोयाबीन/ मूंगफली की खल, छिल्का रहित बड़ेवे की ख्ल/सरसों की खल, तेल रहित चावलों की पॉलिश, शीरा, धातुओं का मिश्रण, नमक, नाइसीन आदि।

नस्ल की देख रेख

शैड की आवश्यकता
अच्छे प्रदर्शन के लिए, पशुओं को अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। पशुओं को भारी बारिश, तेज धूप, बर्फबारी, ठंड और परजीवी से बचाने के लिए शैड की आवश्यकता होती है। सुनिश्चित करें कि चुने हुए शैड में साफ हवा और पानी की सुविधा होनी चाहिए। पशुओं की संख्या के अनुसान भोजन के लिए जगह बड़ी और खुली होनी चाहिए, ताकि वे आसानी से भोजन खा सकें। पशुओं के व्यर्थ पदार्थ की निकास पाइप 30-40 सैं.मी. चौड़ी और 5-7 सैं.मी. गहरी होनी चाहिए।

गाभिन पशुओं क देखभाल
अच्छे प्रबंधन का परिणाम अच्छे बछड़े में होगा और दूध की मात्रा भी अधिक मिलती है। गाभिन गाय को 1 किलो अधिक फीड दें, क्योंकि वे शारीरिक रूप से भी बढ़ती है।

बछड़ों की देखभाल और प्रबंधन
जन्म के तुरंत बाद नाक या मुंह के आस पास चिपचिपे पदार्थ को साफ करना चाहिए। यदि बछड़ा सांस नहीं ले रहा है तो उसे दबाव द्वारा बनावटी सांस दें और हाथों से उसकी छाती को दबाकर आराम दें। शरीर से 2-5 सैं.मी. की दूरी पर से नाभि को बांधकर नाडू को काट दें। 1-2 प्रतिशत आयोडीन की मदद से नाभि के आस पास से साफ करना चाहिए।

सिफारिश किए गए टीके
जन्म के बाद कटड़े/बछड़े को 6 महीने के हो जाने पर पहला टीका ब्रूसीलोसिस का लगवाएं। फिर एक महीने बाद आप मुंह खुर का टीका लगवाएं और गलघोटू का भी टीका लगवाएं। एक महीने के बाद लंगड़े बुखार का टीका लगवाएं। बड़ी उम्र के पशुओं की हर तीन महीने बाद डीवॉर्मिंग करें। कट्डे/बछड़े के एक महीने से पहले सींग ना दागें। एक बात का और ध्यान रखें कि पशु को बेहोश करके सींग ना दागें आजकल इलैक्ट्रोनिक हीटर से ही सींग दागें।

इसकी विलुप्त होने के प्रमुख कारण है :-

  • देश भारतीय गौवंश की उत्पादकता बढ़ाने के लिए अंधाधुंध क्रासव्रिडिंग |
  • किसान का अधिक दूध देने वाली विदेशी नस्लों के प्रति आकर्षित होना |
  • डेयरी फार्मिंग का एक उधोग की तरह तेजी से विकसित होना |
  • अच्छे आहार तथा चारे की कमी |
  • आनुवांशिक रूप से उत्कृष्ट जर्मप्लाजम की कमी |
  • नस्ल सुधार एवं संरक्षण में लगी विभिन्न एजेंसियों के अलग थलग प्रयास |
  • नस्ल सुधार एवं उनके संरक्षण में जुडी गौशाला , मठों एवं गैर सरकारी संस्थाओं को सिमित वित्तीय सहयोग |

संरक्षण के उपाय :-

  • राज्यों को अपनी ब्रीडिंग पॉलिसी में सुधार करते हुये देशी नस्लों के संरक्षण की और ध्यान देना चाहिए तथा देशी नस्लों की क्रास ब्रीडिंग को बन्द करना चाहिए |
  • देश में साहीवाल नस्ल के विशेष प्रजनन कार्यक्रम को लागु करना चाहिए |
  • साहीवाल नस्ल के संरक्षण में लगी विभिन्न गौशाला, धार्मिक मठों एवं गैर सरकारी संस्थाओं को आर्थिक सहयोग एवं प्रोत्साहित करना |
  • जो किसान साहीवाल नस्ल के संरक्षण में लगे हुये है उन्हें उचित परुस्कार देकर सम्मानित करना चाहिए |
  • कृत्रिम गर्भधान, एम्बरियो ट्रान्सफर टेकनालजी एवं प्रोजेनी टेस्टिंग तकनीक का साहीवाल नस्ल के संरक्षण में इस्तेमाल |
  • फ्रोजन सीमेन तथा फ्रोजन एम्बरियो वाले नेशनल जिन बैंक का निर्माण |

बरेली जि़ला मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर दूर मजगवां ब्लॉक के अखा गाँव के रहने वाले राजीव कुमार बताते हैं, “मेरे पास तीन साल पहले साहीवाल नस्ल की एक गाय थी और अब कुल पांच गाय हैं जिससे अच्छा उत्पादन हो रहा है। एक दिन में इन गायों में आने वाले खर्च के बारे में राजीव बताते हैं, ”इनके खाने-पीने का ज्यादा खर्च भी नहीं होता है। एक दिन में एक गाय पर 200 रुपए का खर्चा आता है जबकि उनके दूध से 400 रुपए मिल जाते है। कम खर्च में ज्यादा मुनाफा होता है और मांग भी है इनके दूध की। ”

साहीवाल गाय की विशेषता बताते हुए इसी गाँव के निवासी देवेश कुमार (35 वर्ष) बताते हैं, ”यह ज्यादा मात्रा में दूध देती है और इसका दूध काफी गाढ़ा होता है। सर्दी-गर्मी और बरसात सभी में यह आराम से रह लेती हैं जबकि विदेशी नस्ल की गाय ज्यादा गर्मी नहीं झेल पाती हैं। साथ ही इनको जल्दी कोई बीमारी भी नहीं होती।” साहीवाल नस्ल की खासियत के बारे देवेश बताते हैं, ”एक भैंस को खिलाने में जितना खर्चा आता है, उतने में तीन साहीवाल गाय आराम से खा लें।” अखा गाँव के देवेश कुमार के पास तीन गाय और एक बछड़ा है, जिससे वह रोज 30-35 लीटर का दूध उत्पादन कर रहे हैं। दूध की मार्केटिंग के बारे में राजीव कुमार बताते हैं, ”दूध को बेचने में कोई दिक्कत नहीं होती है। इनके नाम से ही दूध आसानी से बिक जाता है। इनके गर्भाधान के लिए बरेली शहर में 32 सेंटर बनाए गए हैं, जहां पर किसान गायों की ब्रीडिंग करवा सकते हैं।

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