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जप माला वर्गीकरण

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1. स्फटिक व मौक्तिक का माला भी सूत्र में पिरोकर् पहनते हैं परन्तु फिर भी रुद्राक्ष की माला से जप करने से सभी प्रकार के कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है।

2. वैष्णव भक्त के लिए तुलसी की माला

3. गणेश भक्तों के लिए हाथी दांत की माला प्रशस्त मानी गई है

4. त्रिपुरा सुन्दरी देवी के लिए रुद्राक्ष व लाल चन्दन की माला से जप करना चाहिए ।

5. रेखया की माला गुणों में आठ गुणा गुणवाला

6. पुत्रञ्जीव की माला दस गुना गुण फल वाला होता है।

7. चन्दन व शंख की माला सौ गुना फल वाला,

8. प्रवाल (मूंगा) की माला हजार गुना गुण वाला होता है।

9. स्फटिक की माला लक्ष सहस्त्र गुना गुण वाला होता है

10. मौक्तिक की माला लाख गुना फल वाला होता है।

11. चांदी की माला दस लाख गुना अधिक फल वाला

12. सोने की माला करोड़ गुना गुण फल वाला होता है

13. कुशग्रन्थि की माला तथा रुद्राक्ष की माला अनन्त गुण वाला होता है ।

१०८ दाने की माला, ५४ दाने की माला,(दो प्रकार की माला)

14. २७ दाने की माला सभी एक समेरु सहित होने पर लाभ करती है । दाने की माला बनाते समय मुख को मुख से तथा पुच्छ को पुच्छ से जोड़कर तथा श्वेत धागे में पिरो कर माला बनाने से पुण्य कर्मों के फल की प्राप्ति होती है।

15. पटसन के सूत्र की माला देवी के लिए प्रिय होता है।

16. उर्णाभिवल्कल की माला शैवी (शिव) को प्रिय होती है ।

17. कर्पास सूत्र में गुथे माला अन्य देवताओं के जप में प्रयुक्त होता है ।

18. माला परम पवित्र, परमगोप्य, परमोच्च तथा परम आदरणीय वस्तु है। हर जगह इसकी उच्चता, सुरक्षा व पवित्रता का विचार रखना चाहिए , साधक के मन में उसकी साधना और साध्य के साथ-साथ उसके साधन उपकरण के प्रति भी उसका तीव्र लगाव, अनन्य निष्ठा उसे सरलता से शीघ्र सफलता अथवा सिद्धि प्रदान करती है । इसलिये माला को पवित्र रखो, उसे गुप्त रखो, उसे सुन्दर सुघर सुगठित और सुरक्षित रखो। उसे एकाग्र होकर जपो, उस समय तुम्हारी भावना एकाग्रता की मुद्रा में हो, तुम्हारे सभी अंग प्रत्यंग, इन्द्रियों के क्रीड़ा-कलाप अवरुद्ध होकर केवल मन आत्मा और वाणी अपने मन्त्र में सन्निहित होकर माला के साथ साथ घूम रही हो अन्य सभी गतियाँ बन्द हों ।

Source:- मन्त्रखण्ड –

स्फाटिको मौक्तिको वापि प्रोतव्या सितत्रकैः । सर्वकर्म समृद्धयर्थ जपेरुद्राक्षमालया । १३४।।

वैष्णवे तुलसीमाला गजदंतर्गणेश्वरे। त्रिपुराया जपे शस्ला रुद्राक्षरक्तचन्दने ।।१३५।

रेखयाष्ट गुण विद्यात् पुत्रञ्जीवंदंश स्मृतम् । शतं चन्दन शंखैश्च प्रवालैस्तु सहस्त्रकम् ।।१३६।।

 स्फाटिकैलक्षसाहस्त्र मौक्तिकैर्लक्षमेव च। दशलक्ष राजताक्षः सौवर्णैः कोटिरुच्यते ।।१३७।।

कुशग्रन्थ्या च रुद्राक्ष रनन्तगुणितं भवेत् । अष्टोतर शतैर्माला पञ्चाशच्चतुराधिकैः ॥१३८॥

सविशतिभिः कार्या एकग्रीवा समेरुका। मुखं मुखेन संयोज्य पुच्छं पुच्छेन योजयेत् ॥१३६॥

प्रोतव्या सितसूत्रण सत्कर्मफल सिद्धये । पटसूत्रकृता माला देव्याः प्रीतिकरा मताः॥१४०।।

कार्याप्तवैष्णवी माला पद्म सूत्रं रथापि वा । उर्णाभिर्वल्कलैर्वापि शैवी माला प्रकीर्तिता ।।१४१।।

कार्यास सूत्र रन्येषां विद्ध्याज्जापमालिकाम् । त्रिशंद्धिः स्याद्धनं पुष्टिः सर्तावशतिभिर्भवेत् ॥१४२।।

पविशतिभिर्मोक्ष पंच स्यादभिचारणे । पञ्चाशद्भिः कुलेशानि सर्वसिद्धिरुदीरीता ॥१४३॥

जप्तवाक्षमालां सकलां श्रामयेदा शिरवामणः । प्रदक्षिण पुनर्वक्रमारस्य्येवं समाचरेत् ।।१४४।।

स्वयं वामेन हस्तेन जपमालां न संस्पृशेत् । अदीक्षितो द्विजो वापि स्पृशेच्चेच्छुद्धिमाचरेत् ।।१४५।।

न धारयेत्करे मूधित कण्ठे च जपमालिकाम् । जपकाले जपं कृत्वा सदा शुस्द्धथले क्षिपेत् ॥१४६॥

गुरु प्रकाशयेद्धीमान्मत्र नंव प्रकाशयेत् । अक्षमालां च मुद्रां च गुरोरवि न दर्शयेत् ।।१४७।।

कम्पनत्सिद्धिहा निस्स्याद्धननं बहुदुःखकृत् । शब्दे जाते अवेद्रोगी करश्रष्टा विनाशकृत ।।१४८।।

छिन्ने सूत्र भवन्मृत्युस्तस्माद्यत्नपरोभवेत् । जपांते कणदेश वा उच्चस्थानेथवा न्यसेत् ।।१४६।।

(मंत्रमहार्णव)

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