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महर्षि अंगिरा के वंशज और संहिताकार महर्षि पतंजलि

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पौराणिक भगवद्भक्त पतंजलि

ये महर्षि अंगिरा के वंशज और संहिताकार महर्षि प्राचीन योग के पुत्र थे। इन्होंने अपने पिता के गुरु कौथुम से ही वेदाध्ययन किया था और इनकी एक संहिता भी थी। परन्तु अब वह नहीं मिलती। कौथुम के शिष्यों में ये दोनों ही पिता-पुत्र संहिताकार हैं। कुछ लोगों ने ऐसा अनुमान लगाया है कि पाणिनि ने अपने सूत्रों में व्यासकृत महाभारत के वासुदेव, अर्जुन आदि व्यक्तियों की चर्चा की है, अतः वे व्यास के पीछे हुए हैं। और महर्षि पतंजलि ने पाणिनीय व्याकरण पर महाभाष्य लिखा है, अतः वे पाणिनि से पीछे हुए होंगे।

इसी आधार पर उनका कहना है कि पातंजलयोग दर्शन के भाष्यकार व्यास कोई दूसरे होंगे और ये पतंजलि भी कोई अर्वाचीन पुरुष होंगे। परन्तु यह सब बात ठीक होने पर भी इनके पहले पीछे होने का अनुमान एवं अर्वाचीनता की बात ठीक नहीं जँचती। क्योंकि इन ऋषियों के चिरकाल स्थायी सिद्ध शरीर एवं लंबी आयु पर दृष्टि न रखकर ही ऐसी बात कही जाती है। ये सब बातें भारतीय पौराणिक दृष्टिकोण से, जिससे कि इनपर विचार करना चाहिये, ठीक नहीं उतरतीं।

मत्स्य, वायु एवं स्कन्द पुराणों में पाणिनि एवं पतंजलि की चर्चा है, इससे सिद्ध है कि व्यास के समय में ये लोग थे और योग दर्शन का भाष्य करने से इनके समय में व्यास का होना सिद्ध होता है। पुराणों में एक-एक ऋषियों की स्थिति कई युगों तक मानी गयी है। इससे इनकी व्यवस्था बैठ जाती है।

महर्षि पतंजलि योग के आचार्य थे। व्यावहारिक जीवन से उनका बहुत कम सम्बन्ध रहा होगा, ऐसा अनुमान होता है। यही कारण है कि उनके जीवन की कोई विशेष घटना प्रसिद्ध नहीं है। परन्तु केवल एकान्त में रहने के कारण ही वे हमारे कल्याण के काम से अलग रहे हों, ऐसी बात नहीं। उनके बनाये हुए ग्रन्थोंसे सारे संसार का जो हितसाधन हुआ है और हो रहा है उसके लिये सभी उनके ऋणी हैं और रहेंगे। 

चरकसंहिता का प्रणयन करके उन्होंने हमारे स्थूल शरीर के दोषों का निवारण किया और उसमें सांख्योक्त प्रक्रिया का वर्णन करके हमें योग की ओर आकर्षित किया। व्याकरण के वर्णन के द्वारा हमें पद-पदार्थ का ज्ञान कराकर उन्होंने हमारी वाणी को शुद्ध किया और योग के द्वारा सम्पूर्ण चित्त-मलों को धोकर अपना स्वरूप पहचानने के योग्य बनाया। अन्त में परमार्थसार के द्वारा हमें अद्वैत तत्त्वज्ञान का उपदेश दिया, जो सम्पूर्ण जीवों और उनकी साधनाओं का लक्ष्य है। हम इस प्राचीन श्लोक के द्वारा उनके चरणों में श्रद्धाभक्ति पूर्वक नमस्कार करते हैं–

योगेन चित्तस्य पदेन वाचां मलं शरीरस्य च वैद्यकेन।
योऽपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि॥
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