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खूंखार रंगा-बिल्ला को जब दी गई थी फांसी तो दो घंटे बाद भी जिंदा था रंगा?

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नई दिल्ली निर्भया के दोषी दरिंदों को फांसी देने के लिए जल्लाद पवन सिंह तिहाड़ जेल पहुंचने वाले हैं। लोग कहते हैं कि किसी को नहीं पता कि मौत कब आएगी लेकिन फांसी की सजायाफ्ता कैदियों को पता होता है कि उनको मौत कब आनी है। ऐसे में जाहिर सी बात है कि मौत के खौफ में इंसान जावनरों जैसी हरकतें करने लगता है। रातों की नींद उड़ जाती है, खाना पीना छोड़ देते हैं, हाथ पैर पटकने लगता है और चीखने-चिल्लाने लगता है। तिहाड़ जेल में लीगल ऑफिर रहे सुनील गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने 35 साल के करियर में कई बार फांसी देखी।

फांसी से पहले जेल में कैदियों की बिहैवियर स्टडी की जाती है। एक से एक खूंखार अपराधियों की भी फांसी से पहले हालत खराब हो गई लेकिन निर्भया के दोषियों के बारे में डॉक्टरों का कहना है कि वे पहले की ही तरह तिहाड़ में दिन बिता रहे हैं। अधिकारियों का कहना है कि जिस कैदी को फांसी दी जाने वाली होती है उसकी भूख-प्यास उड़ जाती है। वजन कम हो जाता है, बीपी घटने बढ़ने लगता है। लेकिन इन चारों में इस तरह के बदलाव नहीं दिख रहे हैं। दरअसल दो बार फांसी की तारीख टलने के बाद शायद इन्हें लगने लगा है कि हर बार पैतरेबाजी काम आ जाएगी और वे बच जाएंगे पर इस बार अगर कोई कानूनी अड़चन नहीं आई तो 20मार्च को सुबह 5:30 बजे उन्हें फांसी के फंदे से टांग दिया जाएगा।

पवन जल्लाद के दादा ने दी थी रंगा, बिल्ला को फांसी
खूंखार अपराधी रंगा बिल्ला को फांसी पवन जल्लाद के दादा कालू ने दी थी। किडनैप, रेप और हत्या के मामले में उसे फांसी की सजा सुनाई गई थी। उन दोनों ने 14 साल की किशोरी से रेप किया और उसके भाई का गला कृपाण से काट दिया। इसके बाद किशोरी को भी चाकू से गोदकर मार डाला। सुनील गुप्ता और सुनेत्रा चौधरी ने मिलकर एक किताब लिखी जिसका नाम है, ‘ब्लैक वॉरंट।’ इसमें उन्होंने बताया कि जब उन्होंने पहली बार रंगा, बिल्ला को देखा तो वे वैसे नहीं थे जैसा गुप्ता ने पहले सोचा था। अपनी किताब में उन्होंने लिखा, रंगा हमेशा खुश रहता था और बिल्ला हमेशा रोता रहता था और इस अपराध के लिए रंगा को जिम्मेदार ठहराता था।

फांसी के वक्त भी जोश में था रंगा
फांसी से पहले वाली रात भी रंगा चैन से सो गया जबकि बिल्ला पूरी रात सेल में इधर -उधर घूमता रहा। बड़बड़ाता रहा। यहां तक कि फांसी के वक्त भी बिल्ला रो रहा था जबकि रंगा चिल्ला रहा था, ‘जो बोले सो निहाल, सतश्री अकाल।’ एक लाल रुमाल को गिराया गया और इन दोनों को फांसी दे दी गई।

2 घंटे बाद भी नहीं मरा था रंगा?
फांसी देने में सारे नियमों का पालन किया गया था। दोद घंटे के बाद जब रंगा के शव को चेक किया गया तो ऐसा लगा उसकी नाड़ी चल रही है। डॉक्टरों ने बताया कि कई बार डर के मारे कैदी अपनी सांस रोक लेता है और इस वजह से हवा अंदर ही रह जाती है। यह वही हरकत रही होगी। गुप्ता ने करियर में 8 फांसी देखी। 1984 में मकबूल भट को फांसी दी गई थी।

बिना जल्लाद के हुई थी अफजल की फांसी
तिहाड़ में आखिरी बार अफजल गुरु को फांसी दी गई थी। अफजल गुरु की फांसी बहुत अलग तरह की थी। दरअसल तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने अफजल की दया याचिका खारिज की तो फांसी की तारीख 8 फरवरी 2013 मुकर्रर थी। सरकार को डर था कि जुमे के दिन अफजल की फांसी से जम्मू-कश्मीर में हालात बिगड़ सकते हैं। तत्कालीन गृह मंत्री सुशील शिंदे ने मीटिंग बुलाई। इस मीटिंग में बात हुई कि तिहाड़ में कोई जल्लाद नहीं है, ऐसे में फांसी कौन देगा। इसके बाद गृह मंत्री और गृह सचिव आरके सिंह ने फैसला किया कि जेल का ही कोई कर्मचारी यह काम करेगा।

अफजल को अचानक पता चला, होनी है फांसी
उस समय तिहाड़ में विमला गुप्ता डायरेक्टर जनरल थीं। अफजल जब सुबह 2 बजे के करीब सो रहा था तो दूसरी तरफ जेल के कर्मचारी डमी फांसी का ट्रायल कर रहे थे। इस दौरान बक्सर से मंगाई गई रस्सी एक बार टूट गई लेकिन फिर तीसरी बार में डमी को फांसी दी जा सकी। सुबह 6 बजे के करीब अफजल को बताया गया कि उसकी फांसी होनी है। उस समय अफजल ने कहा, ‘मुझे पता चल गया था।’

अफजल ने आखिरी बार गाया गाना
सुनील गुप्ता ने बताया कि अफजल ने जब फांसी की बात सुनी तो वह बिल्कुल नहीं घबराया। उसने कुछ दार्शनिकों की तरह बातें कीं। उसने कहा कि वह चाहता नहीं था कि कश्मीरी अलगाववादी बने। इसके बाद अफजल ने 1966 की फिल्म बादल का गीत गाना शुरू कर दिया। ‘अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ऐ दिल जमाने के लिए।’ फिल्म में संजीव कुमार ने यह गीत जेल में गाया था। अफजल उस वक्त चाय की चुस्की ले रहा था। उसने और चाय की मांग की लेकिन चायवाला तब तक जा चुका था। फांसी के 49 घंटे बाद अफजल का पत्र उसके परिवार के पास पहुंचा दिया गया।

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