इस ख़बर को शेयर करें:
चेतन शर्मा की गेंद पर जावेद मियांदाद का छक्का भला कौन भूल सकता है। शारजाह में एशिया कप का फाइनल था। भारतीय टीम जीत की कगार पर थी। पाकिस्तान के 9 विकेट गिर चुके थे और उसे आखिरी गेंद पर चार रन की ज़रूरत थी।
पाकिस्तान के ज़बर्दस्त बल्लेबाज़ जावेद मियांदाद ने चेतन शर्मा की फुलटॉस गेंद पर छक्का मारकर अपनी टीम को ऐतिहासिक जीत दिलाई थी। उस जीत के बाद भारतीय टीम को पाकिस्तान के ‘फोविया’ से निकलने में कई साल लगे। उस छक्के के बाद चेतन शर्मा की ज़िंदगी में क्या-क्या हुआ इसके कई क़िस्से मशहूर हैं। आख़िर क्यों भूखे पेट रातोरात दिल्ली छोड़कर भागे थे चेतन शर्मा?
वो छक्का हर एक क्रिकेट प्रेमी को याद है। उसकी कड़वी यादें अब भी कई बार दिल दुखाती हैं। सिर्फ इसलिए नहीं कि वो एक मैच भारत हार गया था बल्कि इसलिए क्योंकि उस मैच के बाद पाकिस्तान की टीम काफ़ी समय तक भारतीय टीम पर हावी रही। चेतन शर्मा के ओवर की वो आख़िरी गेंद थी।
पाकिस्तान को जीत के लिए 246 रन चाहिए थे और कपिल देव ने आख़िरी ओवर चेतन शर्मा को दिया था। आख़िरी गेंद से पहले भी कपिल देव चेतन शर्मा के पास गए थे। आख़िरी गेंद पर पाकिस्तान को जीत के लिए चार रन चाहिए थे और कपिल देव चेतन शर्मा को सिर्फ यह बताने गए थे कि चेतन चाहे जो गेंद फेंक दें लेकिन ‘नो बॉल’ न फेंके।
कपिल देव की सोच भी बिल्कुल सही थी। लेकिन नो बॉल न फेंकने का कप्तान का आदेश इस कवर दिमाग पर हावी था कि चेतन शर्मा के हाथ से निकाली वैष फुलटॉस रही और जावेद मियांदाद ने उस पर छक्का जड़ दिया। उस छक्के के बाद स्तब्ध भारतीय टीम और दौड़ते हुए जावेद मियांदाद की तस्वीर कई बरसों तक तकलीफ देती रही। भारतीय टीम उस मैच के तुरंत बाप वहाँ से रवाना हुई और हिंदुस्तान पहुँच गई।
एयरपोर्ट पर चेतन शर्मा के क़रीबी दोस्त उन्हें लेने आए थे। वहाँ से बाहर निकलते ही तय हुआ कि एक रेस्टोरेंट में खात्ता खाया जाए। चेतन शर्मा रेस्टोरेंट पहुँच तो गए, लेकिन पब्लिक ने उन्हें घेर लिया। हर कोई उनसे नाराज था। हालात को भाँपते हुए चेतन के दोस्त ने उन्हें वहाँ से किसी तरह निकाला और सीधे लेकर डिफेंस कॉलोनी गया। डिफेंस कॉलोनी में एक नाई की दुकान पर सबसे पहले चेतन शर्मा की दाढ़ी हटवाई गई। उसके बाद उन्हें रातोरात चंडीगढ़ भेज दिया गया।
चेतन शर्मा के पिता भी उनके साथ ही गए। चेतन को अब भी यह बात याद है। यहाँ तक कि उन्हें बस का सीट नंबर भी याद है, जो 3-4 था। रास्ते में चेतन शर्मा को किसी ने नहीं पहचाना। नाई के यहाँ ले जाने का मकसद भी यही था कि चेतन शर्मा को कोई पहचान न पाए।
रास्ते में एकाध बार जब बस रुकी और चेतन शर्मा ने कुछ खाने की इच्छा ज़ाहिर कि तो भी उनके पिता ने उन्हें बस से उतरने नहीं दिया। उन्होंने खुद नीचे उतरकर खाना लाना बेहतर समझा। चेतन के पिता दिखाना चाहते थे कि वो बिल्कुल डरे नहीं हैं लेकिन जिस तरह की नाराज़गी उस वक्त भारतीय क्रिकेट प्रेमियों में थी, उससे चेतन को जानने वाला हर कोई डरा हुआ था।
चंडीगढ़ पहुँचने के बाद चेतन शर्मा अपने कोच देशप्रेम आजाद से मिलने गए। आजाद साहब ने उन्हें सबसे पहले ये ताकीद दी कि वो अगले 4-5 दिन घर से बाहर न निकलें। चेतन शर्मा के पास उनकी बात न मानने की कोई वजह नहीं थी। वो चुपचाप घर पर ही रहते थे। फिर तीन-चार दिन बाद देशप्रेम आजाद ने उन्हें अपनी एकेडमी बुलाना शुरू तो किया लेकिन बदले हुए समय पर। देशप्रेम आजाद चेतन शर्मा को उस वक्त एकेडमी में बुलाते थे, जब कोई और बच्चा सीखने न आया हुआ हो। ऐसे करते-करते धीरे-धीरे चेतन शर्मा वापस क्रिकेट की प्रैक्टिस में लौटे। खैर, इस मैच में हार के तुरंत बाद भारतीय टीम को इंग्लैंड दौरे पर जाना था।
चेतन शर्मा को उस टीम में चुना गया था। चेतन शर्मा और रवि शास्त्री एक साथ मुंबई पहुँचे। नरीमन प्वाइंट से हाजी अली के रास्ते में एक बहुत बड़ी होर्डिंग है। यो होर्डिंग और उस पर लगा विज्ञापन काफ़ी दूर से दिखाई देता है। उन दिनों उसी होर्डिंग पर लिखा हुआ था- मियां की दाद, शरमा गए। रवि शास्त्री ने सबसे पहले चेतन शर्मा को वो होर्डिंग दिखाया था। मैंने एक चैनल के लिए एक कार्यक्रम किया था, जिसमें चेतन शर्मा व जावेद मियांदाद एक ही शो का हिस्सा थे और मियांदाद को जब चेतन को छेड़ने का मन करता था, वो सिर्फ इतना पूछते थे कि तेरे पास कुछ और फेंकने को नहीं था।
साभार- शिवेंद्र कुमार सिंह की किताब क्रिकेट के अनसुने किस्से।