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जानिए अष्ट सिद्धियों और नव निधियों का रहस्य

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हनुमान चालीसा
अष्ट सिद्धि नव निधि के दाता, अस बर दीन जानकी माता…………!! हनुमान चालीसा की ये पंक्तियां यह बताती हैं कि सीता माता की कृपा से पवनपुत्र हनुमान, अपने भक्तों को अष्ट सिद्धि और नव निधि प्रदान करते हैं। जो भी प्राणी उनकी सच्चे मन और श्रद्धा के साथ आराधना करता है, हनुमान उसे अलौकिक सिद्धियां प्रदान करके कृतार्थ करते हैं।

रहस्य
लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि जिन अष्ट सिद्धियों और नव निधियों के विषय में कई बार पढ़ा और उससे भी ज्यादा बार सुना जाता है, वे दरअसल हैं क्या, उनका रहस्य क्या है? नहीं जानते, तो चलिए आज हम आपको यही बताते हैं कि आखिर ये अष्ट सिद्धियां और नव निधियां हैं क्या।

सूक्ष्मता से विशालता
सबसे पहले बात करते हैं अष्ट सिद्धियों की, जिन्हें प्राप्त कर व्यक्ति किसी भी रूप और शरीर में वास कर सकता है। वह सूक्ष्मता की सीमा भी पार कर सकता है और जितना चाहे विशालकाय भी हो सकता है।

अणिमा
अष्ट सिद्धियों में सबसे पहली सिद्धि है अणिमा, जिसका अर्थ है अपने शरीर को एक अणु के समान सूक्ष्मता प्रदान कर पाने की शक्ति। जिस तरह नग्न आंखों से आप अणु को नहीं देख सकते उसी तरह अणिमा सिद्धि को प्राप्त करने के बाद कोई भी व्यक्ति आपको देख नहीं पाएगा। आप जब चाहे अपने शरीर को सूक्ष्म कर सकते हैं।

महिमा
अणिमा के ठीक उलट महिमा सिद्धि प्राप्त करने के बाद आप जब चाहे अपने शरीर को असीमित विशालता प्रदान कर सकते हैं। आप अपने शरीर को किसी भी सीमा तक फैला सकते हैं।

गरिमा
इस सिद्धि को प्राप्त करने के बाद आप अपने शरीर के भार को भी असीमित तरीके से बढ़ा सकते हैं। आपका आकार तो उतना ही रहेगा लेकिन आपके शरीर का भार इतना बढ़ जाएगा कि कोई आपको हिला तक नहीं पाएगा।

लघिमा
आपका शरीर इतना हल्का हो सकता है कि आप पवन से भी तेज गति से उड़ सकते हैं। आपके शरीर का वजन लगभग ना के बराबर हो जाएगा।

प्राप्ति
आप बेरोकटोक किसी भी स्थान पर जा सकते हैं। आप अपनी इच्छानुसार अन्य व्यक्तियों के सामने अदृश्य हो सकते हैं, जिसकी वजह से आप हर उस स्थान पर जा पाने में सक्षम होंगे जहां आप जाना चाहते हैं और वो भी अन्य किसी की नजरों में आए बगैर।

पराक्रम्य
किसी दूसरे व्यक्ति की मन की बात को समझना बहुत मुश्किल है, लेकिन पराक्रम्य सिद्धि प्राप्त करने के बाद आप किसी भी व्यक्ति के मन की इच्छाओं को भांप सकते हैं। आप यह आसानी से पता लगा सकते हैं कि सामने वाला व्यक्ति असल में चाहता क्या है।

इसित्व
भगवान की उपाधि, इसित्व सिद्धि प्राप्त करने से आप स्वामित्व प्राप्त कर सकते हैं। आप दुनिया पर अपना आधिपत्य स्थापित कर सकते हैं।

वसित्व
वसित्व प्राप्त करने के बाद आप दूसरों को अपना दास बनाकर रख सकते हैं। आप जिसे चाहे वशीभूत कर सकते हैं, जिसे चाहे पराजित कर सकते हैं।

नवनिधि
अष्ट सिद्धियों की चर्चा करने के बाद अब बात करते हैं नवनिधियों की जो किसी भी मनुष्य को असामान्य और अलौकिक शक्तियां प्रदान कर सकती हैं।

परकाया प्रवेश
किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में अपनी आत्मा का प्रवेश करवाना परकाया प्रवेश कहलाता है। आप अपनी आत्मा को किसी मृत शरीर में प्रवेश करवाकर उसे पुन: जीवित भी कर सकते हैं।

हादी विद्या
कई प्राचीन ग्रंथों में हादी विद्या का जिक्र किया गया है। इस विद्या को प्राप्त करने के बाद व्यक्ति को ना तो भूख लगती है और ना ही प्यास। वह अपनी इच्छानुसार बिना किसी परेशानी के कई दिनों तक बिना कुछ खाए-पीए रह सकता है।

कादी विद्या
हादी विद्या को प्राप्त करने के बाद जिस तरह व्यक्ति बिना कुछ खाए-पीए रह सकता है उसी प्रकार कादी विद्या की प्राप्ति के बाद व्यक्ति के शरीर और उसके मस्तिष्क पर बदलते मौसम का कोई प्रभाव नहीं होता। उसे ना तो ठंड लगती है ना गर्मी, ना बारिश का कोई असर होता है ना तूफान कुछ बिगाड़ पाता है।

वायु गमन सिद्धि
वायु गमन सिद्धि हासिल करने के बाद व्यक्ति हवा में तैर सकता है और कुछ ही पलों में किसी भी स्थान पर पहुंच सकता है।

मदलसा सिद्धि
मदलसा सिद्धि प्राप्त करने के बाद व्यक्ति अपने शरीर के आकार को अपनी इच्छानुसार कम या ज्यादा कर सकता है। लंका में प्रवेश करने के लिए पवनपुत्र हनुमान ने अपने शरीर को सूक्ष्म कर लिया था।

कनकधर सिद्धि
इस सिद्धि को प्राप्त करने वाला व्यक्ति असीमित धन का स्वामी बन जाता है, उसकी धन-संपदा का कोई सानी नहीं रह जाता।

प्रक्य साधना
इस साधना में सफल होने के बाद साधक अपने शिष्य को यह आज्ञा दे सकता है कि किसी विशिष्ट महिला की गर्भ से जन्म ले। या फिर इस साधना के बल पर योगी अपने शिष्य को संतानहीन महिला की गर्भ से जन्म लेने के लिए निर्देशित कर सकता है।

सूर्य विज्ञान
भारत की प्राचीन और बेहद महत्वपूर्ण विद्याओं में से एक सूर्य विज्ञान पर सिर्फ और सिर्फ भारतीय योगियों का ही आधिपत्य है। इसकी सहायता से सूर्य की किरणों की सहायता से कोई भी तत्व किसी अन्य तत्व में तब्दील किया जा सकता है।

मृत संजीवनी विद्या
इस विद्या की रचना असुरों के गुरु शुक्राचार्य द्वारा की गई थी। इस विद्या को प्राप्त करने के बाद किसी भी मृत व्यक्ति को दोबारा जीवित किया जा सकता है।

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